-पत्रकारों की मदद के लिए पत्रकार संगठनों ने की मोदी सरकार से मांग
-मीडिया संस्थानों और पत्रकारों के लिए विशेष पैकेज लाने की उठाई मांग
टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
देश के चार शीर्ष पत्रकार संगठनों ने कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते पत्रकारों के बिगड़ते हालातों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। प्रेस एसोसिएशन (पीए), इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन (आईजेयू), नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया (एनयूजेआई) और वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन (डब्लूएनसीए) ने संयुक्त बयान जारी कर कोरोना की महामारी के चलते मीडिया संस्थानों द्वारा पत्रकारों की वेतन कटौती, वर्किंग और नॉन वर्किंग जर्नलिस्ट्स के निलंबन और प्रकाशन बंद करने जैसी समस्याओं पर सरकार से ध्यान देने की मांग की है।
भारत के चारों शीर्ष पत्रकार संगठनों ने अपने बयान में कहा है कि लॉकडाउन के तीसरे सप्ताह में इंडियन एक्सप्रेस और बिजनेस स्टेंडर्ड ने अपने कर्मचारियों से वेतन में कटौती के लिए कहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप ने अपनी रविवार पत्रिका की पूरी टीम को बर्खास्त कर दिया है। न्यूज नेशन न्यूज चैनल ने अपने अंग्रेजी डिजिटल के सभी 16 कर्मचारियों की सेवा को समाप्त कर दिया है। क्विंट ने अपनी लगभग आधी टीम को बिना वेतन दिए ही छुट्टी पर जाने को कह दिया है। क्विंट ने अपने ऑटो और टैक्नीकल सेक्शन को पूरी तरह से बंद कर दिया है।
चारों शीर्ष पत्रकार संगठनों ने लॉकडाउन के दौरान पत्रकारों की स्थिति पर गहरी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है कि इसी दौरान इंडिया टुडे गु्रप ने अपने 46 पत्रकारों, 6 कैमरामैन और 17 प्रड्यूसर्स को नौकरी से हटाने का निर्णय किया है। एक समाचार एजेंसी ने अपने कर्मचारियों को केवल 60 फीसदी वेतन ही जारी किया है। ईटी पनाचे और बांबे टाईम्स ने आपस में विलय करने का फैसला किया है। इसके चलते ईटी पनाचे ने अपने 50 फीसदी कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा है। इसी तरह हिंदुस्तान टाइम्स मराठी ने 30 अप्रैल से अपना प्रकाशन बंद करने का ऐलान किया है। एचटी मराठी ने संपादक सहित अपने सभी कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा है। केवल इतना ही नहीं उर्दू अखबार नई दुनिया, ईवनिंगर स्टार ऑफ मैसूर और आउटलुक ने अपने प्रिंट प्रकाशनों को बंद कर दिया है।
पत्रकार यूनियनों ने कहा है कि सरकार की ओर से लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों के साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अपील की गई है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपील की है कि सभी कर्मचारियों को समय से वेतन का भुगतान किया जाए। ऐसे समय में मीडिया संस्थानों द्वारा बड़े स्तर पर कर्मचारियों की छंटनी, उन्हें काम से हटाना या फिर वेतन में कटौती किया जाना गलत है। यह एक तथ्य है कि पिछले कुछ दशकों में मीडिया घरानों ने बड़े स्तर पर आधुनिकीकरण के साथ वृद्धि की है। लंबे समय तक बढ़ोतरी के बाद मीडिया घरानों द्वारा वित्तीय घाटे का दावा कहीं से भी उचित नजर नहीं आता। मोटा मुनाफा कमाने वाले मीडिया घराने लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से इस तरह से पीछे नहीं हट सकते। यदि दशकों पुराने अखबार लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मियों के प्रति इस तरह की गैरसंवेदनशीलता दिखा सकते हैं तो मध्यम और छोटे अखबारों व मीडिया घरानों के बारे में तो कल्पना किया जाना ही मुश्किल है।
भारत के शीर्ष पत्रकार संगठनों ने मीडिया घरानों से अपील की है कि देश पर इस संकट की घड़ी में मानवीयता की सोच बनाए रखें। लॉकडाउन के संकट के दौरान वह अपने कर्मचारियों और वर्किंग जर्नलिस्ट्स की कठिनाइयों को कम करने का प्रयास करें। जर्नलिस्ट्स यूनियनों ने मीडिया घरानों को सलाह दी है कि यदि उनके सामने कोई कठिनाई है तो वह उसे सरकार के सामने रखें। देश को महामारी के इस दौर में सही और भरोसेमंद खबरों स्रोतों की जरूरत है। इस जिम्मेदारी को भारत का मीडिया क्षेत्र पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा रहा है।
प्रेस ऐसोसिएशन के अध्यक्ष जयश्ांकर गुप्ता एवं महामंत्री सीके नायक इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष के श्रीनिवास रेड्डी और महासचिव बलविंदर सिंह जम्मू, नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के अध्यक्ष रास बिहारी और महासचिव प्रसन्ना मोहंती व वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएन सिन्हा और महासचिव सोनदीप शंकर के हस्ताक्षरों से जारी संयुक्त बयान में अपील की गई है कि सरकार मीडिया हाउसेज लॉकडाउन के दौरान वर्किंग एवं नॉन वर्किंग जर्नलिस्ट्स की गंभीर स्थिति पर तुरंत विचार कर इसका समुचित हल निकालने की मांग की है।