जमात के नाम पर भारत को दहलाने की थी साजिश!

-अलग अलग मस्जिदों में छिपे मिले पर्यटक वीजा पर आए विदेशी
-पुलिस द्वारा तलाशी का हो रहा देशभर की मस्जिदों में विरोध

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
राजधानी के निजामुद्दीन इलाके में स्थित तबलीगी जमात के मरकज नामक ‘कोरोना के मरघट’ से निकले ‘मजहबी वायरसों’ ने देश के लाखों लोगों की जान खतरे में डाल दी है। बीते 24 घंटे में भारत में कोरोना के 386 नए मामले सामने आ चुके हैं। इसके बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या जमात के नाम पर यह देश को दहलाने की साजिश थी? क्योंकि फरवरी महीने में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान और उसके बाद दंगों और शाहीनबाग का जो पीएफआई और आतंकी कनेक्शन सामने आया था, वह एक बार फिर से पक्का हुआ है। दिल्ली पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में जुटे पुलिस कर्मियों पर आतंकी हमला होने की आशंका जाहिर की है।
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने बुधवार को कहा कि इस बात के इनपुट मिले हैं कि आईएसआईएस के आतंकी सुरक्षा व्यवस्था में हुटे पुलिसकर्मियों पर आतंकी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस बारे में शहर भर में तैनात पुलिसकर्मियों को जानकारी दे दी गई है। कोरोना की वजह से कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस को विभिन्न स्थानों पर तैनात किया गया है। 21 दिनों के लॉकडाउन में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। कई स्थानों पर पुलिस के साथ अर्धसैनिक बलों को भी लगाया गया है। जगह-जगह पुलिस बैरिकेडिंग कर लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों को रोक रही है। इसके साथ ही पुलिस लॉकडाउन के दौरान लोगों को हो रही परेशानियों को दूर करने में भी जुटी है।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या मरकज में कोरोना वायरस के ‘मानव बम’ तैयार किए जा रहे थे? क्या धर्म के प्रचार के नाम पर मरकज में कोरोना वायरस को फैलाने की खौफनाक साजिश रची जा रही थी? क्या इस साजिश में कोई आतंकी संगठन भी शामिल है? क्या इस साजिश का मकसद भारत को कोरोना की आग में झोंक देने का था? क्या इसीलिए मौलाना साद ने विदेशी मौलानाओं को मरकज में टूरिस्ट वीजा पर बुलाकर इकट्ठा किया था, ताकि जांच ऐजेंसियां जल्दी उनका पता नहीं लगा सकें? क्या इसीलिए कोरोना वायरस के वाहक इन ‘मजहबी बमों’ को दिल्ली सहित देशभर की अलग अलग मस्जिदों में छुपाया गया था, ताकि आसानी से इन्हें ढूंढा नहीं जा सके? देश की जांच ऐजेंसियां इन सवालों के जवाब पाने में जुट गई हैं।
खुफिया एजेंसियां परिस्थितियों पर नजर बनाए हुए हैं। जिस तरह से निजामुद्दीन के तबलीगी जमात के मरकज में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाए जाने का मामला सामने आया है, उससे जांच एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। क्या मरकज में लोगों को इकट्ठा करके देशभर में कोरोना की महामारी को फैलाने की साजिश रची जा रही थी? क्योंकि मरकज से निकाले गए लोग डीटीसी बसों से बाहर सड़क पर थूकते नजर आए हैं। यहां से निकाले गए बहुत से लोगों को अलग अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। यह लोग अपने ही इलाज में सहयोग करने के बजाय डॉक्टर्स के ऊपर थूक रहे हैं।
कोरोना वायरस को फैलाने की आशंका इस बात से भी पक्की हो रही है कि जमात में शामिल होने के लिए विभिन्न देशों से करीब 2100 लोग भारत आए थे। यह विदेशी पर्यटक वीजा पर भारत आए थे। इनमें से कुछ तो अपने-अपने देश वापस लौट गए। जबकि बहुत से लोग अब भी भारत में ही हैं। दिल्ली पुलिस को जांच के दौरान दिल्ली की कई मस्जिदों में यह विदेशी छिपे हुए मिले हैं। खास बात है कि बहुत से विदेशी मौलाना अब थी देशभर के अलग अलग इलाकों की मस्जिदों में छिपे हुए हैं। जांच ऐजेंसियों के मन में सवाल उठ रहा है कि यदि विदेशों से आए यह मौलाना अलग अलग इलाकों में जाकर क्यों छिपे हैं। यदि कोई साजिश नहीं है तो विदशों से आए इन ‘मजहबी वायरसों’ को यहां के लोगों ने मस्जिदों में क्यों छिपा रखा है?
पुलिस टीम पर हमलों के पीछे साजिश या कुछ और?
दिल्ली के मरकज से निकले ‘मजहबी वायरसों’ को ढूंढने के लिए 22 राज्यों का प्रशासन जुट गया है। स्थानीय पुलिस मस्जिदों में जा-जाकर इन मौत के सौदागरों ढूंढ रही है। आश्चर्य की बात है कि देश के कई राज्यों में मरकज से गए मौलानाओं को ढूंढने गई पुलिस टीम पर पथराव और हमलों की खबर आ रही है। कुछ इसी तरह का पथराव और हमले इसी खास वर्ग के लोगों ने दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस और हिंसाग्रस्त इलाकों में किए थे। दिल्ली के मरकज में हुई जमात में शामिल होकर गए ज्यादातर मौलाना कोरोना वायरस से ग्रस्त पाए गए हैं। इनमें से कई लोगों की अब तक कोरोना की बीमारी से मौत भी हो चुकी है।
दिल्ली दंगों के बाद सामने आया आतंकी कनेक्शन
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने 8 मार्च को इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रॉविंस (आईएसकेपी) मॉड्यूल से जुड़े कश्मीरी दंपती को गिरफ्तार किया था। जामिया नगर से जहांजेब सामी और हिना बशीर बेग को गिरफ्तार किया गया था। ये दोनों मूल रूप से श्रीनगर के रहने वाले थे। दोनों सीएए के खिलाफ प्रदर्शन का इस्तेमाल मुस्लिम युवाओं को भड़काकर आतंकी हमले के लिए करना चाहते थे। पुलिस को इनके पास से इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और जिहादी दस्तावेज भी मिले थे। यह लोग अफगानिस्तान में आईएसकेपी के टॉप लीडर्स के संपर्क में थे।