50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की ना

-कहाः आरक्षित वर्ग में भी अमीर उठा रहे आरक्षण का फायदा
-आरक्षित वर्ग में अमीरों को आरक्षण देने पर विचार की जरूरत

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आरक्षण के खिलाफ सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने बुधवार को कठोर शब्दों में स्पष्ट किया कि किसी भी हालत में आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट की ओर से इंद्रा शाह मामले में अधिकतम 50 फीसदी आरक्षण तय करने के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि कोई सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह टिप्पणी आंध्र प्रदेश सरकार के साल 2000 के एक आदेश पर की। आंध्र प्रदेश सरकार ने 20 साल पहले अधिसूचित क्षेत्रों के स्कूलों के लिए शिक्षकों की भर्ती में अनुसूचित जनजातियों को 100 फीसदी आरक्षण देने का आदेश दिया था। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने आंध्र प्रदेश सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक, दुर्भाग्यपूर्ण, गैरकानूनी और मनमाना बताया।
संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि वर्ष 1986 में राज्य सरकार ने 100 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी। लेकिन राज्य सरकार के निर्णय को तब ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया था। बाद में अदालतों ने भी ट्रिब्यूनल के फैसले को सही ठहराया था। साल 1998 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी अपील वापस ले ली थी।
लेकिन राज्य सरकार ने वर्ष 2000 में दोबारा अधिसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों को 100 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी कर दिया था। संविधान पीठ ने कहा कि एक बार आदेश को खारिज किए जाने के बावजूद उसी तरह का आदेश दोबारा जारी करना बेहद दुखद है। पीठ ने कहा कि उम्मीद है कि राज्य सरकार इसके बाद फिर से 100 फीसदी आरक्षण देने का गैरकानूनी काम नहीं करेगी।
पीठ ने यह भी कहा है कि किसी भी अधिसूचित क्षेत्र में केवल अनुसूचित जनजातियों के लिए 100 फीसदी आरक्षण को जायज नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने फैसले में यह भी कहा कि केवल अनुसूचित जनजाति शिक्षकों के ही अनुसूचित क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ा पाने की सोच सही नहीं है और अतार्किक है। यह समझ से परे है।
नहीं जाएगी शिक्षकों की नौकरी
संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। लेकिन अपने फैसले में कहा कि इस मामले को अनोखा मानते हुए वर्ष 2000 के सरकारी आदेश के अनुसार जिन शिक्षकों की नियुक्तियां हुई हैं, उन्हें सशर्त जारी रखा जाएगा। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार को सख्त हिदायत दी है कि भविष्य में ऐसा प्रयास नहीं किया जाए।
आरक्षित वर्ग में अमीरों के लाभ पर हो पुनर्विचार
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि जातिगत आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच के जरूरतमंद लोगों को नहीं मिल रहा है। आरक्षण का लाभ केवल इस वर्ग के अमीर लोग उठा रहे हैं। अतः जातिगत आरक्षण के मामले में इस वर्ग के अमीरों को इसका लाभ देने पर दोबारा से गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।