पश्चिम बंगाल- ओडिशाः शाह की नीति से ध्वस्त विरोधियों की रणनीति

सचिन अरोड़ा / नई दिल्ली।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पश्चिम बंगाल और ओडिशा के अभेद्य किलों में सेंध लगाने में कामयाब रहे। शाह की नीति ने दोनों राज्यों में कमल खिला दिया। पश्चिम बंगाल में भाजपा की जीत इसीलिए भी ऐतिहासिक है कि वहां भाजपा वहां बिना किसी चेहरे के लड़ी थी। दूसरी ओर ममता बनर्जी ने भाजपा को रोकने के लिए सारी सीमाएं पार कर दी थीं। इसी तरह भाजपा ओडिशा में भी भाजपा विपक्ष की भूमिका में आ गई है। शाह की रणनीति का नतीजा है कि भाजपा को ओडिशा में 38 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 40 फीसदी वोट मिले, जबकि 2014 में पार्टी को क्रमशः 21 और 17 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
भाजपा नेतृत्व को इतना भरोसा तो पहले ही था कि पार्टी इस बार पश्चिम बंगाल में अच्छे नतीजे हासिल करेगी। लेकिन इतनी बड़ी शक्ति के रूप में उभरने की कल्पना नहीं की थी। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सामने वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए अमित शाह ने भाजपा के रूप में मतदाताओं के सामने मजबूत विकल्प पेश किया। पश्चिम बंगाल के नतीजों के लिए राज्य के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय व शिव प्रकाश और प्रमुख रणनीतिकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
पश्चिम बंगाल को लेकर अमित शाह की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद को स्वाइन फ्लू होने पर अमित शाह ने तय रैली को दो दिन के लिए आगे बढ़ा लिया लेकिन अपनी जगह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलाने के सुझाव को खारिज कर दिया। शाह का मानना था कि शुरू में ही योगी आदित्यनाथ को पश्चिम पश्चिम बंगाल में उतार देने पर जनता के बीच गलत संदेश जाएगा और असली मुद्दे गौण हो जाएंगे।

पूरी की बंगलाभाषी नेताओं की कमी
बंगला बोलने वाले नेता के रूप में अमित शाह ने तृणमूल कांग्रेस से मुकुल राय को लाकर भाजपा की कमी को पूरा कर दिया। इसके बाद कई दलों के नाराज नेताओं को भी भाजपा में शामिल किया गया। इसी तरह ओडिशा में भी राज्य के पूर्व आइएएस व आइपीएस अधिकारियों के साथ ही बीजद के नाराज नेताओं को जोड़ा गया। इसके साथ ही बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की गई। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की हिंसा से बचने के लिए भाजपा ने राज्य में ’चुपचाप, फूल छाप’ का नारा दिया। ओडिशा में ’राधे-कृष्ण’ के नारे के सहारे मतदाताओं को समझाने की कोशिश की गई कि विधानसभा और लोकसभा में अलग-अलग पार्टियों को वोट देना है। राधे को लक्ष्मी बताते हुए उनके आसन कमल को भाजपा के चुनाव चिन्ह से जोड़ा गया, वहीं कृष्ण को शंख से जोड़ा गया, जो बीजद का चुनाव चिन्ह है।