उत्तर भारत में दरकने लगीं स्थानीय दलों के सियासी महलों की दीवारें

-यूपी में सपा, बसपा और आरएलडी चारों खाने चित
-बिहार में आरजेडी गठबंधन का नहीं खुला खाता
-हरियाणा में एक सीट को तरसे राज्यस्तरीय दल

शक्ति राठौर/ नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर भारत में अब राज्य स्तरीय दलों का अस्तित्व खत्म हो रहा है। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद महज 15 सीट ही जीत पाए। जबकि बिहार में यदि कांग्रेस को मिली 1 सीट छोड़ दें तो आरजेडी गठबंधन अपना खाता तक नहीं खोल पाया। दूसरी ओर हरियाणा में भी क्षेत्रीय दलों को एक भी सीट हासिल नहीं हो सकी। खास बात यह रही कि आम आदमी पार्टी और दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी सहित कोई दल अपना खाता नहीं खोल सका।
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का बुरा हालः
राज्य में सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन को महज 15 सीट मिली हैं। इनमें से बसपा को 10 और सपा को 5 सीट हासिल हुई हैं। अजीत सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर अपना खाता खोल पाने से चूक गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा और आरएलडी अपना खाता नहीं खोल सकी थीं। जबकि सपा को इतनी ही सीटें हासिल हुई थीं। कभी राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त करने वाली बसपा अब क्षेत्रीय दल का दर्जा भी खोने के कगार पर है।
बिहार में पिछड़ी आरजेडीः
2019 की मोदी लहर में बिहार में लालू की लालटेन बह गई। रावड़ी देवी के नेतृत्व वाला आरजेडी ही नहीं बल्कि इस महागठबंधन में शामिल कोई भी दल अपना खाता नहीं खोल पाया। बिहार की 40 लोकसभा सीट में से कांग्रेस को महज एक सीट हासिल हुई है। बाकी 39 सीटें भाजपा, जेडीयू, एलजेपी और सहयोगी दलों के खाते में गई हैं।
हरियाणा में हारे चौटालाः
हरियाणा में मोदी की लहर ने ऐसा काम किया कि जाटों को आरक्षण के नाम पर कांग्रेस द्वारा बुने गये जाल के चीथड़े उड़ गए। इंडियन नेशनल लोकदल, हरियाणा जनहित कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी अपने उम्मीदवारों की जमानत तक नहीं बचा सकीं।