एससी/एसटी एक्ट के विरोध में 2 दिसंबर को होगा प्रचंड प्रर्शन

-परशुराम सेना को स्वराज जनता पार्टी का समर्थन
-व्यवस्था के विरोध स्वरूप नोटा का बटन दबाएं लोगः मुकेश शर्मा
-चुनाव आयोग से मांगः नोटा को ज्यादा वोट मिलें तो चुनाव हो रद

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
एक ओर कई राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। दूसरी ओर एससी/एसटी एक्ट में संशोधन का मुद्दा ठंडा होने का नाम नही ले रहा है। देश भर में इसको लेकर सामान्य जाति वर्ग के लोगों में नाराजगी है। राष्ट्रीय परशुराम सेना आगामी 2 दिसंबर 2018 को संसद मार्ग पर प्रदर्शन कर अपना विरोध जताएगी।

परशुराम सेना के दिल्ली प्रमुख मुकेश शर्मा ने कहा कि इस धरना-प्रदर्शन में भारी संख्या में लोग भाग लेंगे। केवल दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और कई अन्य राज्यों से भारी संख्या में लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि जब से केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को किनारे करते हुए इस कानून में संशोधन किया है। तब से सवर्ण जाति के लोगों का उत्पीड़न तेजी से बढ़ा है।
मुकेश शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने एससी/एसटी कानून में संशोधन कर समाज को अलग अलग हिस्सों में बांट दिया है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने लोगों से अपील की कि जिन राज्यों में चुनाव हैं वहां के लोग एससी/एसटी कानून के विरोध स्वरूप किसी उम्मीदवार के बजाय नोट को वोट करें। उन्होंने चुनाव आयोग से भी मांग की है कि यदि ज्यादा संख्या में लोग नोटा का बटन दबाकर व्यावस्था के प्रति अपना विरोध जताते हैं तो आयोग उन इलाकों के चुनाव को रद कर दोबारा चुनाव की घोषणा करे।

स्वराज जनता पार्टी का समर्थन
2 दिसंबर को संसद मार्ग पर एससी/एसटी कानून के विरोध में राष्ट्रीय परशुराम सेना के बैनर तले होने जा रहे विरोध प्रदर्शन को स्वराज जनता पार्टी ने अपना समर्थन दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रिजेश शुक्ला ने कहा कि मोदी सरकार का यह कदम गलत है। कानून में संशोधन से सवर्ण वर्ग के लोगों को भारतीय संविधान में मिले प्राकृतिक न्याय और समानता के अधिकार का हनन हो रहा है। समाज के लोगों में आपसी भेदभाव बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को इस बारे में पुनर्विचार करना चाहिए। ब्रिजेश शुक्ला ने आगे कहा कि स्वराज जनता पार्टी एससी/एसटी कानून के वर्तमान स्वरूप के खिलाफ है। केवल आरोप के आधार पर किसी को गिरफ्तार कर तुरंत जेल भेजा जाना सही नहीं है। पहले किसी भी तरह के आरोपों की सक्षम अधिकारी के द्वारा जांच होनी चाहिए और किसी को प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर ही उसकी गिरफ्तारी की जानी चाहिए। क्योंकि यदि आरोपी बेगुनाह निकलता है तो उसके साथ यह घोर अन्याय होता है।