-सियासी संकट सुलझाने मातोश्री नहीं गए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
-उद्धव ठाकरे को मातोश्री से बाहर आकर लगाने पड़ी मदद की गुहार
-बीजेपी की रणनीति में बदलाव या सहयोगियों को सबक सिखाने का चाव
टीम एटूजेड न्यूज/ नई दिल्ली-मुंबई
महाराष्ट्र के सियासी खेल ने इस बार ठाकरे परिवार को आसमान से जमीन पर लाकर रख दिया है। अपने पिता बाला साहब ठाकरे की तरह दूसरे दलों को आंखें दिखाते आए उद्धव ठाकरे की इस बार खूब फजीहत हुई है। ‘माया मिली न राम’ वाली कहावत महाराष्ट्र की सियासत में उद्धव ठाकरे पर सही बैठी है। राज्य की राजनीति में सबसे ज्यादा धमक रखने वाले ठाकरे परिवार के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। यहां यह जान लेना बेहद जरूरी है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को इस बार बीजेपी ने ज्यादा अहमियत नहीं दी। चुनावी नतीजे आने के बाद उद्धव अपने पुत्र को मुख्यमंत्री बनवाने पर अड़ गए। तो बीजेपी ने भी सरकार बनाने से अपने हाथ पीछे खींच लिए। इससे तमतमाए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को मातोश्री से बाहर आकर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से सरकार बनाने में मदद की गुहार लगानी पड़ी। यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि अब तक दूसरे दलों के नेता मातोश्री जाकर शिवसेना के साथ सियासी गठबंधन करते आए हैं।
सरकार बनाने पहली बार मातोश्री से बाहर आए ठाकरेः
ऐसा पहली बार हुआ है जब ठाकरे परिवार के मुखिया को मातोश्री से बाहर आकर सरकार बनाने में एनसीपी और कांग्रेस से मदद मांगनी पड़ी। इस बार किंग मेकर खुद किंग बनने चले तो राज-सत्ता ही चली गई। उद्धव ठाकरे पुत्र मोह में इतने डूबे कि उन्होंने बीजेपी के साथ 30 साल पुराने सियासी रिश्ते भी खत्म कर दिए। उन्होंने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। यहां यह बताना भी जरूरी है कि अब तक बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता मातोश्री जाकर ठाकरे परिवार के सामने माथा टेकते आए हैं।
बदली बीजेपी की रणनीति!
ऐसा पहली बार हुआ कि अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष बने लेकिन वह मातोश्री एक बार भी नहीं गए। यह बीजेपी की रणनीति में बदलाव की निशानी है। कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे की जिद को ज्यादा अहमियत नहीं दी। ना ही उन्होंने राज्य का सियासी संकट खत्म करने के लिए उद्धव ठाकरे से मिलना उचित समझा। यही कारण है कि महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री बनाने चली शिवसेना फिलहाल सरकार में हिस्सेदारी से भी दूर हो गई है। केंद्र ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया है। हालांकि बीजेपी सहित दूसरे दलों की ओर से सरकार बनाने की कोशिशें जारी हैं।
पूर्ण बहुमत के बावजूद नहीं बनी सरकारः
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला था। दोनों दलों के पास बहुमत के आंकड़े से कहीं ज्यादा विधायक हैं। इसके बावजूद शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पुत्र मोह में आकर आदित्य ठाकरे को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने पर अड़ गए। लेकिन बीजेपी को यह मंजूर नहीं था।
बीजेपी के साथ शिवसेना व एनसीपी को भी मौकाः
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी के सरकार बनाने से मना करने पर यह मौका शिवसेना को दिया। लेकिन शिवसेना तय समय में जरूरी बहुमत जुटाने में नाकाम रही। ऐसे में राज्यपाल ने राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी एनसीपी को सरकार बनाने का न्योता दिया। लेकिन वह भी तय समय में कोइ फैसला नहीं ले पाई। एनसीपी ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने के लिए और समय देने की मांग रख दी। इसके बाद कोश्यारी ने केंद्र से महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की। केंद्र की ओर से धारा 356 का इस्तेमाल करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
किसी के पास नहीं स्पष्ट बहुमतः
महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी के पास 105 विधायक हैं तो शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत हासिल की है। एनसीपी के पास 54 और कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार बनाने के लिए कुल 145 विधायकों की जरूरत है। स्पष्ट है कि किसी भी दल के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। ऐसे में बीजेपी एक बार फिर से सरकार बनाने के लिए सक्रिय हुई है। एनसीपी और कांग्रेस में भी सरकार बनाने को लेकर मंथन जारी है। वहीं शिवसेना ने राज्य में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है।
चुनाव पर हुआ 4 हजार करोड़ः
विधानसभा चुनाव पर अरबों रूपये खर्च होने के बावजूद नेताओं के निजी लालच और स्वार्थ की वजह से महाराष्ट्र के लोगों को चुनी हुई सरकार नहीं मिल सकी। बता दें कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव कराने पर जनता के 4 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए हैं। इसके साथ ही सरकारी मशीनरी का उपयोग अलग हुआ है।
तीसरी बार लगा राष्ट्रपति शासनः
महाराष्ट्र में इस बार तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। इससे पहले 1980 में सबसे पहली बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उस समय मुख्यमंत्री शरद पवार के पास पूर्ण बहुमत नहीं था। अतः राजनीतिक हालात बिगड़ने की वजह से राज्य में पहली बार 17 फरवरी 1980 से 8 जून 1980 तक 112 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
2014 में दूसरी बार यहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उस समय राज्य में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी। लेकिन दोनों दलों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर बात बिगड़ गई थी। तब विधानसभा को भंग कर 28 सितंबर 2014 से 30 अक्टूबर 2014 तक 32 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।