-लॉकडाउन का असर, एनसीआर में बही दो लाख लिटर फ्रैश बियर
-माइक्रोबुअरीज को उत्पादन से महंगा पड़ रहा था बियर का रखरखाव
टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
‘‘उन्हीं के हिस्से में आती है प्यास भी अक्सर… जो दूसरों को पिलाकर शराब पीते हैं’’ तसनीम फारूकी का यह शेर लॉकडाउन के दौरान शराब के शौकीनों पर पूरी तरह से सही बैठ रहा है। लेकिन फर्क इतना है कि लोग प्यासे रह गए और दिल्ली-एनसीआर में करीब दो लाख लीटर फ्रैश बियर नालियों में बह गई। जी हां कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते माइक्रोब्रुअरीज को महंगे रखरखाव की वजह से ऐसा करना पड़ा।
दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सुरा के शौकीन सरकार से अंगूर की बेटी से मुलाकात कराने की मांग कर रहे हैं। आए दिन दिल्ली, ग्रुरूग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद जैसे एनसीआर के शहरों में शराब माफिया के खिलाफ छापेमारी की जा रही है। पुलिस अवैध शराब के बेचने वालों के खिलाफ धरपकड़ कर रही है। दूसरी ओर मांग के अभाव और महंगे रखरखाव की वजह से उत्पादकों को करीब दो लाख लीटर फ्रैश बियर नालियों में बहानी पड़ी।
बता दें कि लॉकडाउन से पहले माइक्रोब्रवरीज का फ्रैश बियर का उत्पादन पूरी क्षमता से चल रहा था। गर्मी की शुरूआत की उम्मीद से उत्पादकों ने अपने प्लांटों की क्षमता बढ़ा दी थी। इसी बीच 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन शुरू हो गया और शराब व बियर की बिक्री बंद कर दी गई। इस दौरान लाखों लिटर फ्रैश बियर प्लांटों में पड़ी रह गई। इसे बोतलों में भी नहीं भरा जा सका। इसे खराब होने से बचाने के लिए लागत ज्यादा आ रही थी। इसलिए बियर प्लांट इसे बहाने के लिए मजबूर हो गए।
गुरूग्राम के प्रैंकस्टर के प्रमोटर्स को अपनी 3 हजार लीटर फ्रैश बियर नालियों में बहानी पड़ी। वहीं स्ट्राइकर ऐंड सोइ 7 के ललित अहलावत का कहना है कि उन्हें अपने गुरुग्राम के साइबर-हब आउटलेट से 5 हजार लीटर बियर नाली में बहा दी है। वहीं माइक्रोब्रअरीज एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने दावा किया है कि एनसीआर में फ्रैश बियर का उत्पादन करने वाली करीब 50 माइक्रोब्रुअरीज हैं। इन उत्पादकों को करीब 2 लाख लीटर ताजा बियर को नालियों में फेंकना पड़ा है।
एसोसिएशन के मुताबिक बोतलबंद बियर के मुकाबले फ्रेश बियर बहुत कम समय तक अच्छी हालत में रह पाती है। बियर को ताजा बनाए रखने के लिए प्लांटों में उसे एक निश्चित तापमान पर रखा जाता है। इसके साथी इसकी देखभाल रखनी होती है। 25 मार्च से ही प्लांट स्टॉक का रखरखाव कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन का समय बढ़ने के साथ ही इस बियर को फेंकना पड़ा। कारण है कि लॉकडाउन के बाद भी सही स्थिति का अंदाजा अभी नहीं लग पा रहा है।
दिल्ली-एनसीआर मे ंपहले ही कोरोना वायरस के पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में कब तक दुकानों को खोलने का आदेश आ पाएगा या फिर रेस्तराओं और पब आदि की क्या स्थिति रहेगी। इस विषय में सही ढंग से कुछ कहा नहीं जा सकता। उन्होंने बताया कि उत्पादकों ने सरकार से होम डिलीवरी की अनुमति मांगी है, लेकिन इस मामले में भी सरकारें कोई निर्णय नहीं ले पा रही हैं। ब्रअरीज सलाहकार राजीव खन्ना ने बताया कि सरकार की ओर से फ्रेश बियर को जग, जार या गिलासों में पैक करके होम डिलीवरी की इजाजत दी जा सकती थी। लेकिन कोरोना ने हालातों को ज्यादा खराब कर दिया है। अतः माइक्रोब्रुअरीज को नुकसान उठाना पड़ा है।
राजीव खन्ना ने बताया कि ब्रुअरीज संचालकों को बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है। यहां तक कि एक्साइज डिपार्टमेंट भी सिर्फ शराब की दुकानों को खोलने की बात कर रहा है जबकि उनके प्रॉडक्ट्स लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं। उन्होंने बताया कि ब्रअरीज को रखरखाव, बिजली और मेनपॉवर बचाने के लिए यह बियर नालियों में बहानी पड़ी है। खास बात है कि उत्पादकों को माल का नुकसान तो हुआ ही है, बल्कि उन्हें एडवांस में जमा कराई गई लाइसेंस फीस और ड्यूटी का नुकसान भी हो रहा है।
नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने राज्यों के एक्साइज विभागों को पत्र लिखकर मार्च और अप्रैल महीनों में लाइसेंसों के नवीनीकरण की फीस नहीं लेने की मांग की है। उन्होंने बताया कि माइक्रोब्रुअरी लाइसेंस पर हर महीने लाखों रूपये का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि हमारा काम पूरी तरह से बंद है। इसके अलावा लाइसेंस फीस, ड्यूटीज और अन्य टैक्स से आने वाले 6 महीने तक छूट दी जाए। ताकि रेस्टोरेंट्स अपनी आर्थिक स्थिति को संभाल पाएं और स्टाफ को सेलरी देने की स्थिति में आ पाएं। उन्होंने राज्य सरकारों से मांग की कि ज्यादातर कारोबारियों को लॉकडाउन की स्थिति से उबरने में ज्यादा समय लगेगा, अतः जिन चीजों का शुल्क सालाना के आधार पर लिया जाता है, उसे तिमाही के आधार पर लिया जाए।