अग्रिम जमानत के लिए जरूरी नहीं तय समयसीमा

-सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अहम फैसला
-कोई भी सीमा तय करना संबंधित कोर्ट का काम

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
अग्रिम जमानत (एंटीसिपेटरी बेल) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत में हमेशा समय सीमा तय करना जरूरी नहीं है। अग्रिम जमानत ट्रायल पूरा होने तक भी जारी रह सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अग्रिम जमानत देने वाली अदालत के विवेक पर है कि उसे जरूरी लगे तो वह समयसीमा तय कर सकती है। बुधवार 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अग्रिम जमानत से जुड़े कानूनी सवालों का जवाब देते हुए यह व्यवस्था दी है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, इन्दिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और एस रविन्द्र भट्ट की पीठ ने यह व्यवस्था दी है। पीठ ने अग्रिम जमानत की समयसीमा के बारे में संविधान पीठ को भेजे गए कानूनी प्रश्नों का जवाब दिया है। पीठ ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत (गिरफ्तारी से संरक्षण) के तहत मिले संरक्षण के लिए समयसीमा की जरूरत नहीं है।
ट्रायल समाप्त होने तक जारी रह सकती है
संविधान पीठ ने कहा है कि अग्रिम जमानत की समय सीमा सामान्य तौर पर अभियुक्त को अदालत से सम्मन जारी होने या आरोप तय होने पर खत्म नहीं होती। यह ट्रायल समाप्त होने तक जारी रह सकती है। कोर्ट ने साफ किया कि अगर मामले में कुछ विशिष्ट परिस्थितियां और जरूरत लगे तो अदालत को अग्रिम जमानत की समयसीमा तय करने का अधिकार है। लेकिन संबंधित अदालत ही ऐसा कर सकती है।
पांच जजों की पीठ ने दी नई व्यवस्था
अग्रिम जमानत के मामले में समयसीमा के बारे में सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व फैसलों में व्यवस्था दी गई है। लेकिन दोनों में व्यवस्थाओं में अंतर रहा था। इसके बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह कानूनी मुद्दा विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भेजा था। इसका जवाब में कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है। इतना ही नहीं संविधान पीठ ने अग्रिम जमानत देते समय अदालतों को ध्यान में रखने की बातें भी फैसले में बताई हैं।