एनजीटी के निशाने वाटर प्यूरिफायर

-हर जगह नहीं आरओ लगाने की जरूरत
-पानी के अच्छे खनिज बरबाद करता है आरओ

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी के निशाने पर अब पीने का पानी साफ करने वाले आरओ यानी वाटर प्यूरीफायर हैं। इनके इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार को निर्देश जारी किए हैं। एनजीटी ने कहा है कि ऐसी जगह पर इनके प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया जाए जहां पानी में कुल घुलनशील द्रव (टीडीएस) की मात्रा प्रति लीटर 500 एमजी से कम हो। इसका मतलब है कि जहां पानी ज्यादा खारा नहीं हो वहां पर वाटर प्यूनिफायर का प्रयोग बंद किया जाना चाहिए। एनजीटी ने आदेश जारी किया है कि सरकार जनता को वाटर प्यूरिफायर्स के बुरे प्रभावों के बारे में भी जागरूक करे।
एनजीटी ने सरकार को निर्देश जारी किया है कि जहां भी आरओ को लगाने की मंजूरी दी गई है वहां 60 फीसदी पानी की वसूली को अनिवार्य किया जाए। इस मामले में एनजीटी द्वारा गठित कमेटी रिपोर्ट दी है कि पानी में प्रति लिटर 500एमजी होने पर आरओ काम नहीं करता। बल्कि आरओ उसमें मौजूद कई महत्वपूर्ण खनिजों को समाप्त करने के साथ ही पानी भी बर्बाद करता है।
टीडीएस (घुलनशील द्रव) अकार्बनिक लवण के साथ ही कार्बनिक लवण की थोड़ी सी मात्रा से मिलकर बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि प्रति लीटर पानी में 300 एमजी से नीचे टीडीएस स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा माना जाता है। जबकि 900 एमजी खराब और 1200 एमजी प्रतिबंधित होता है। रिवर्स ओसमोसिस के जरिए पानी में मौजूद अशुद्धियों को दूर किया जाता है।