-भाजपा की हवा तो बना दी पर उम्मीदवार दमदारी नहीं दिखा पा रहे
-कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भर पाए राहुल-प्रियंका
-मुफ्त की राजनीति सब पर भारी, फिर से केजरीवाल की बारी
रास बिहारी/ नई दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में अपना चुनाव प्रचार कच्ची कॉलोनियों को पक्का करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धन्यवाद रैली से शुरु करते हुए यह तो जता दिया था कि पूरा चुनाव उनके नाम और काम पर लड़ा जाएगा। हुआ भी यही। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में भाजपा को जिताने के लिए दो रैलियां की और पूर्व भाजपा अध्यक्ष तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सभी 70 सीटों पर जनसभाएं की। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने भी कई रैलियां और रोड शो किए।
इसके चलते चुनाव में हिन्दू-मुसलमान की राजनीति तेज हो गई। कई केंद्रीय मंत्रियों, 300 सांसदों, भाजपा मुख्यमंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी प्रचार किया। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की सभाओं में भी भीड़ उमड़ी। सभी नेताओं ने शाहीन बाग को लेकर आप और कांग्रेस पर हमले किए। मुस्लिम बहुल सीटों पर आप के उम्मीदवार दमदार दिखाई दे रहे हैं।
भाजपा के जोरदार प्रचार से मुख्यमंत्री केजरीवाल को रणनीति बदलनी पड़ी और प्रचार के आखिरी दौर में मतदाताओं को शाहीन बाग के मुद्दे पर सफाई देते रहे। उन्हें मतदाताओं से इस मुद्दे पर भ्रमित न होने की अपील करनी पड़ी। इतना तो जरूर हुआ है कि भाजपा के आक्रामक प्रचार ने केजरीवाल को कड़ी टक्कर दी है। ‘अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल’ के नारे को लेकर आप ने बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं को मुफ्त बस की यात्रा और बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा को मुद्दा बनाया।
भाजपा नेताओं के केजरीवाल को आतंकवादी कहने पर उन्हें अपनी पत्नी और बेटी से सफाई दिलानी पड़ी। आप का प्रचार केजरीवाल पर ही निर्भर रहा। आप का आखिर में नारा हो गया है ‘अच्छे होंगे पांच साल, दिल्ली में तो केजरीवाल’। भाजपा के जोरदार प्रचार और नेताओं की भारी भीड़ के बाद हिले केजरीवाल को कहना पड़ा कि यदि भाजपा के साथ प्रचार में लंबी चौड़ी फौज है तो उनके साथ उनका पांच साल का काम है।
रही बात कांग्रेस की तो उसकी हालत 2008 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी जैसी हो गई है। राहुल और प्रियंका समेत कई ब़ड़े नेता चुनाव में जोश नहीं भर पाए। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के उम्मीदवार कांग्रेस के उम्मीदवारों को ताकत दिखाने के लिए खुद ही मेहनत कर रहे हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस के उम्मीदवार जितने वोट लेंगे, उतना ही फायदा भाजपा को होगा।
चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में भाजपा ने अपनी दमदार मौजूदगी तो दिखाई है पर लग रहा है कि दिल्ली वालों को मुफ्त के माल की आदत पड़ गई है। पांच साल तक केंद्र पर काम न करने देन के आरोप लगाते रहे केजरीवाल अब काम के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं। लेकिन उनका पूरा जोर मुफ्त के माल की राजनीति करने पर ही है। दिल्ली में मुफ्त की बिजली और पानी सब मुद्दों पर भारी पड़ गए हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के जोरदार और आक्रामक प्रचार ने भाजपा को दमदार तो दिखाया पर उसके उम्मीदवार उतने जानदार नहीं लग रहे।
इतना जरूर माना जा रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत 67.12 रहा और आप ने 54.34 प्रतिशत वोट लेकर 67 जीतों पर कब्जा जमाया। भाजपा ने 32.7 प्रतिशत वोट लेकर केवल तीन सीटें जीती। पिछले चुनाव में 9.7 प्रतिशत वोट लेने वाली कांग्रेस और नीचे खिसकती जा रही है। इस बार माना जा रहा है कि भाजपा को वोट बैंक में बढ़ोतरी होगी और सीटें भी बढ़ेगी।
अमित शाह का 45 सीटें जीतने का दावा 8 फरवरी को होने वाले मतदान के आधार पर तय होगा। यह तो माना जा रहा है कि पिछली बार ज्यादा मतदान का फायदा आप को मिला और इस बार भाजपा को मिलेगा। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 56.6 फीसदी वोट हासिल किए थे। लोकसभा चुनाव में 60.6 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले और कांग्रेस ने 22.5 फीसदी तथा आप ने 18 फीसदी वोट लिए थे।