शाहजहानाबाद… यादों के झरोखे से…
पूनम सिंह/शाहजहानाबाद
बादशाह शाहजहां ने 1639 में शाहजहांनाबाद बसाने का मन बनाया। हालांकि पहले उन्होंने अपने महल यानी लाल किला के निर्माण पूरा मन लगाया। सन् 1648 के बाद शाहजहां ने शहर बसने की ओर ध्यान दिया। असली शाहजहांनाबाद की बनावट धनुष के आकार की आधी गोल है। लाल किला का यमुना की ओर का हिस्सा एकदम सीधा है। शाहजहांनाबाद को घेरती दीवार 6 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है। इसमें 13 बड़े दरवाजे और कई छोट-छोटे रास्ते बनाए गए थे।
लाल किला के पष्चिमी गेट यानी लाहौर दरवाजा के ठीक सामने की ओर चांदनी चौक है। दक्षिण गेट या कहें दिल्ली दरवाजे के सामने दरियागंज तक के हिस्से को फैज बाजार कहा जाता था। शाहजहांनाबाद की सबसे मशहूर इमारत जामा मस्जिद को कहा जाता है। यह मस्जिद कुदतरी भोजला पहाड़ पर बनी है। इसकी नींव 6 अक्टूबर 1650 को रखी गई और इसे बनने में 6 साल का समय लगा था। जामा मस्जिद को वास्तुकला की बेमिसाल धरोहर कहा जा सकता है। जामा मस्जिद का पूर्वी द्वार लाल किले के दिल्ली दरवाजा की ओर खुलता है। इसी के जरिए बादशाह शाहजहां लाल किले से जामा मस्जिद नमाज अदा करने आता-जाता था। बीच में, करीब एक किलोमीटर का रास्ता था, जिस पर कई दुकानें थीं। यह खास बाजार कहा जाता था।
जामा मस्जिद के उत्तरी दरवाजे के नजदीक हवेली धर्मपुरा को जाती गली में, बाईं ओर पहला दरवाजा नुमा रास्ता गली चाह राहत है। गली के थोड़ा सा अंदर पुरानी-सी दीवार और पुराने दरवाजे पर ताला लटका रहता है। ऊपर पत्थर लगा है, जिसपर फारसी में ’चाह राहत’ लिखा है। यानी फारसी पहिए वाला कुआं। लोगों का कहना है कि इसकी चाबी जामा मस्जिद के शाही इमाम के पास रहती है। बताया जाता है कि मुगल काल में इस कुएं का पानी जामा मस्जिद को सप्लाई किया जाता था।
उस्ताद हामिद थे लाल किला के शिल्पकार
बहुत कम लोग जानते हैं कि बादशाह शाहजहां ने जब लाल किला बनवाने का मन बनाया तो इसे बनाने की पूरी जिम्मेदारी उस्ताद हामिद को सोंपी गई थी। ऐतिहासिक जामा मस्जिद से पैदल की दूरी पर ही कूचा उस्ताद हामिद है। गली के मुंहाने पर ही ऊपर से झांकता खंडहरनुमा घर है। गली का नक्काशीदार दरवाजा हाल के सालों में ही लगवाया गया है। उस्ताद हामिद यहीं रहते थे। उन्हीं की देखरेख में लाल किले का निर्माण हुआ। उस्ताद हामिद का नाम इस गली के नाम के रूप में आज भी जिन्दा है। वैसे, कुछ लोग कूचा उस्ताद हामिद को अब कृष्णा गली के नाम से भी ज्यादा जानते हैं।
आगे बाजार गुलियान से धर्मपुरा होते हुए, संकरी गलियां आगे की ओर आभूषणों के अंदाज में सजे-धजे दो मंजिला श्री दिगम्बर जैन नया मन्दिर तक जाती हैं। मन्दिर के साथ बेशक ’नया’ जुड़ा है, लेकिन यह 1807 में बना था। मन्दिर लाला हरसुखराय ने बनवाया था। इसकी नींव 1800 में रखी गई और 7 साल में यह बनकर तैयार हुआ था। मुगलकाल के दौरान, जैन समुदाय की अहम भूमिका रही है। बताया जाता है कि जैन समुदाय के लोग ज्यादातर सौदागर और साहूकार थे। उन्हीं के पैसे से शाही फौज का खर्च चलता था। जैनियों की दौलत का कुछ हिस्सा मन्दिरों के निर्माण में भी खर्च होता था। मन्दिर की बाहरी और भीतरी सजधज देखने लायक है। बताते हैं कि आज भी मन्दिर में बिजली का क्नेक्शन नहीं है। इसलिए मन्दिर केवल सुबह की पारी (7 से दोपहर 12 बजे तक) ही खुलता है और शाम को बंद रहता है।
अब लाल किला होगा ज्यादा हरा-भरा
राजधानी की पहचान लाल किला अब पहले से ज्यादा हरा-भरा दिखाई देगा। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की ओर से ऐतिहासिक लालकिला के हैरिटेज वैल्यू को देखते हुए कायापलट किया जा रहा है। एएसआई के मुताबिक किला परिसर के ग्रीन एरिया को 15 एकड़ से बढ़ाकर 52 एकड़ किया गया है। आजादी के बाद भारतीय सेना की ओर से परिसर में आवासीय क्षेत्र सहित बनाए गए करीब 400 ढांचों को गिराकर अतिरिक्त 35 एकड़ हरियाली क्षेत्र में जोड़ा गया है। हालांकि ब्रिटिश आर्मी द्वारा बनाए गए 10 बैरक को उनके हैरिटेज महत्व के चलते नहीं तोड़ा गया है। लाल किला परिसर में 5 बैरकें म्यूजियम में तब्दील की गई हैं।
धातु के बजाय पत्थर की सड़क
भारतीय पुरातत्व विभाग ने लाल किले के अंदर की धातु की बनी सड़कों की जगह क्वार्ट्ज पत्थरों का इस्तेमाल कर सड़क निर्माण करने का फैसला किया है। छत्ता बाज़ार की तरफ से लाहौरी गेट को दिल्ली गेट से जोड़ने वाली सड़क 1.2 किमी है। यहीं पुरातत्व विभाग क्वार्ट्ज पत्थरों का इस्तेमाल कर नई सड़क बना रहा है। पुरातत्व विभाग के अधीक्षक एन के पाठक का कहना है कि एक बार सड़क बन गई तो पर्यटकों के लिए यह आरामदायक होगी। यह सड़क मुमताज महल से जुड़ेगी। जब हमने बिटुमेन परतों को हटा दिया तो सड़क का स्तर अपनी मूल स्थिति में आ गया जिसके कारण हम एक बार फिर से किले के विशाल दरवाजे को खोला और बंद किया जा सकता है।
क्रमशः जारी…