कांग्रेस की कमजोरी… बनी बीजेपी की मजबूरी

-दिल्ली में कमजोर होती कांग्रेस बन रही बीजेपी की राह का रोड़ा
-वोट नहीं बंट पाने से आम आदमी पार्टी को मिल रही सफलता

शक्ति सिंह/ नई दिल्ली/ 16.01.2020
दिल्ली विधानसभा चुनाव का पारा एक दम हाई लेबल पर चल रहा है। इंद्रप्रस्थ के सिंघासन से दो दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता से बाहर चल रही भारतीय जनता पार्टी की ब्यूह रचना हर बार फेल हो रही है। 1998 में सत्ता जाने के बाद से बीजेपी लगातार कमजोर बनी हुई है। दिल्ली में वोट नहीं बंट पाने की वजह से बीजेपी लगातार सत्ता से दूर बनी हुई है और आम आदमी पार्टी सत्ता पर काबिज है। माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस इसी तरह कमजोर बनी रही और विरोधी वोट नहीं बंट पाया तो 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी का सत्ता तक पहुंच पाना मुश्किल नजर आ रहा है।
सियासी जानकार बताते हैं कि यदि कांग्रेस का वोट बैंक जितना ज्यादा वापसी करेगा, उतना ज्यादा बीजेपी को फायदा होगा। 2017 के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 21 फीसदी तक पहुंच गया था। इसके बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 22.46 फीसदी हो गया था। यदि कांग्रेस को वोट शेयर विधानसभा चुनाव में इस स्तर से कुछ और बढ़ता है तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
बता दें कि आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में 14.09 फीसदी की गिरावट आई है। यही कारण रहा कि कांग्रेस अप्रत्यक्ष रूप से चांदनी चौक, बल्ली मारान, मटिया महल, सीलमपुर और ओखला सीटें जीतने में कामयाब रही थी। बीते कुछ महीनों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस की सरकारें बनी हैं। इसका फायदा दिल्ली में भी कांग्रेस को मिला है। लेकिन दिल्ली में जिस तरह से कांग्रेस के कुछ नेता पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी में गए हैं, उसका नुकसान भी कांग्रेस को ही उठाना पड़ रहा है। यही कारण है कि दिल्ली में कांग्रेस की कमजोरी भारतीय जनता पार्टी की मजबूरी बनी हुई है।
बता दें कि 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई थी। इसका फायदा बीजेपी को हुआ। तब बीजेपी 23 सीट से बढ़ते हुए सबसे ज्यादा 32 सीट जीतने में कामयाब रही थी। आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस 43 सीट से घटते हुए सीधे 8 सीट पर सिमट गई। दो सीट अन्य के खाते में गई थीं और बीजेपी सरकार नहीं बना पाई थी। बीजेपी को तब 3.4 फीसदी की गिरावट के साथ 33 फीसदी, आप को पहली बार 29.5 फीसदी और कांग्रेस को 15.7 फीसदी की गिरावट के साथ 24.6 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाने में कामयाब रही। कांग्रेस का वोट बैंक पूरी तरह से आम आदमी पार्टी की ओर शिफ्ट हो गया और आप ने 67 सीट जीतकर सरकार बनाई। आम आदमी पार्टी को 24.8 फीसदी की बढ़त के साथ 54.3 फीसदी, बीजेपी को 0.8 फीसदी की गिरावट के साथ 32.3 फीसदी और कांग्रेस को 14.9 फीसदी की गिरावट के साथ कुल 9.7 फीसदी वोट हासिल हुए थे। कांग्रेस इस चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई और उसके ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
1993 में 47.42 फीसदी वोट शेयर
1993 में बीजपी ने 47.42 वोट हासिल करते हुए 49 सीट जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई थी। कांग्रेस को उस चुनाव में 34.48 फीसदी वोटों के साथ 14 सीट ही हासिल हुई थीं। इससे बाद 1998 में बीजेपी विरोधी वोट कांग्रेस को पड़े और कांग्रेस की सरकार बनी थी। बीजेपी 49 सीट से घटकर 15 सीट पर सिमट गई थी। जबकि कांग्रेस इस चुनाव में 14 सीट से उछलते हुए 52 सीट पर पहुंच गई थी। उस वक्त कांग्रेस को 47.76 फीसदी वोट हासिल हुए थे। जबकि बीजेपी को 34.02 फीसदी वोट शेयर पर ही संतोष करना पड़ा था।
2003 में सीट बढ़ीं पर नहीं मिली सत्ता
इसी तरह 2003 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी विरोध वोट नहीं बंट पाया। इसके चलते इस चुनाव में बीजपी 5 सीट की बढ़त के साथ 20 तक तो पहुंच गई लेकिन वोट शेयर 35.22 फीसदी तक ही पहुंच पाया। जबकि कांग्रेस की पांच सीटों की कमी के साथ 47 पर तो आई लेकिन उसका वोट शेयर बढ़कर 48.13 फीसदी तक पहुंच गया।
बढ़ा वोट शेयर पर नहीं लगी सेंध
2008 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी अपनी विरोधी पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा पाने में नाकामियाब रही। कांग्रेस को इस बार 4 सीट का नुकसान और उठाना पड़ा। उसे इस चुनाव में 43 सीट मिलीं। बीजेपी को 3 सीट का फायदा हुआ और वह 20 से बढ़कर 23 तक पहुंच गई। कांग्रेस को इस बार 40.31 फीसदी वोट हासिल हुए। लेकिन इस बार भी बीजेपी वोट शेयर के मामले में 36.34 फीसदी तक ही पहुंच पाई।