अखिलेश को ‘माया’ मिलीं न कन्नौज!

-मायावती को प्रधानमंत्री बनाने चले थे अखिलेश
-अपनी पत्नी को कन्नौज सीट भी हरवा बैठे अखिलेश

हीरेन्द्र सिंह/नई दिल्ली
गठबंधन के जरिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मायावती को प्रधानमंत्री और खुद को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सपना देखा था। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद न तो उन्हें बुआ मायावती का साथ मिला और ना ही कन्नौज की सीट। गठबंधन के बावजूद सपा ने अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव की कन्नौज लोकसभा सीट भी गंवा दी। अब बसपा प्रमुख मायावती ने अखिलेश यादव की पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक को हथियाने के लिए उनके ऊपर मुसलमानों को टिकट नहीं देने की बात कहने के गंभीर आरोप लगाए हैं।

लोकसभा चुनाव से पहले जब सपा और बीएसपी के गठबंधन का ऐलान हो रहा था तो दोनों दलों के नेताओं मायावती और अखिलेश यादव के हावभाव देखकर लग रहा था कि अब यह गठबंधन लंबे समय तक चलेगा। गोरखपुर-फूलपुर-कैराना के उपचुनाव में मिली जीत से इन नेताओं का उत्साह चरम पर था। यही कारण रहा कि दोनों ही नेता जमीनी हकीकत को भांप नहीं पाए। करारी हार मिली और गठबंधन भी बिखर गया। सपा को जहां 5 सीटें मिलीं वहीं बसपा को 10 सीटें। सीधे तौर पर बसपा को 10 सीटों का फायदा हुआ लेकिन सपा पहले की तरह 5 सीट पर सिमट कर रह गई। अब बसपा सुप्रीमो मायावती के निशाने पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं। उन्होंने कहा है कि सपा अपने कोर वोट यादवों का भी समर्थन नहीं पा सकी, यही वजह है कि उनकी पत्नी चुनाव हार गईं। मायावती ने उत्तर प्रदेश की 11 सीटों पर होने वाले विधानसभा उप चुनाव में अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है।

पुराना इतिहास, नहीं दिया किसी का साथः
अखिलेश यादव बड़ी आसानी से मायावती के झांसे में आ गए थे। उन्होंने गठबंधन करने से पहले एक बार भी यह नहीं सोचा कि बसपा सुप्रीमो मायावती का इतिहास रहा है कि उन्होंने केवल मतलब निकलने तक गठबंधन रखा है। उसके बाद किसी का साथ नहीं दिया। मायावती सत्ता में रहने के लिए इससे पहले भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुकी हैं। लेकिन जैसे ही सत्ता में मुख्यमंत्री रहने का तय समय गुजरा तो उन्होंने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली सपा के गठबंधन को लात मार दी थी। लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड अब तक चर्चा में है।
इसके साथ ही मायावती ने भारतीय जनता पार्टी के साथ भी गठबंधन किया था, लेकिन सत्ता में छह महीने रहने के बाद उन्होंने भाजपा की बारी आने पर गठबंधन तोड़ दिया था। ऐसा ही उन्होंने एक बार सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ किया है। लोकसभा चुनाव में शून्य से 10 सीटों पर पहुंचते ही अखिलेश यादव को बॉय-बॉय कह दिया।
अब मायावती ने कहा है कि गठबंधन के चुनाव हारने के बाद अखिलेश ने मुझे फोन नहीं किया। सतीश मिश्रा ने उनसे कहा कि वे मुझे फोन कर लें, लेकिन फिर भी उन्होंने फोन नहीं किया। मैंने बड़े होने का फर्ज निभाया और काउंटिग के दिन 23 तारीख को उन्हें फोन कर उनके परिवार के हारने पर अफसोस जताया।

मायावती ने यह भी कहा किः-
-तीन जून को जब मैंने दिल्ली की मीटिंग में गठबंधन तोड़ने की बात कही तब अखिलेश ने सतीश चंद्र मिश्रा को फोन किया, लेकिन तब भी मुझसे बात नहीं की।
-अखिलेश ने सतीश मिश्रा से मुझे मैसेज भिजवाया कि मैं मुसलमानों को टिकट न दूं, क्योंकि उससे और ध्रुवीकरण होगा, लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी।
-मुझे ताज कॉरिडोर केस में फंसाने में भाजपा के साथ मुलायम सिंह यादव का भी अहम रोल था। अखिलेश की सरकार में गैर यादव और पिछड़ों के साथ नाइंसाफी हुई, इसलिए उन्होंने वोट नहीं किया।
-समाजवादी पार्टी ने प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया था इसलिए दलितों, पिछड़ों ने उसे वोट नहीं दिया।
-बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को सलीमपुर सीट पर समाजवादी पार्टी के विधायक दल के नेता राम गोविंद चौधरी ने हराया। उन्होंने सपा का वोट भाजपा को ट्रांसफर करवाया, लेकिन अखिलेश ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।