मायावती की नजर… ‘डीएम’ फैक्टर पर

-सपा को गच्चा दे, मुस्लिम वोटों के लिए बिछाई बिसात
-बुआ-बबुआ गठबंघन खत्म, हमेशा को जुदा हुई राहें

हीरेन्द्र सिंह / नई दिल्ली-लखनऊ
बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती हमेशा के लिए समाजवादी पार्टी गठबंधनसे अलग हो गई हैं। मायावती ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद एक बार भी सपा अध्यक्ष अखिलेष यादव ने उनसे बात नहीं की। इसलिए अब बसपा आने वाले समय में सभी चुनाव अपने दम पर ही लड़ेगी। बसपा सुप्रीमो ने अखिलेष यादव के खिलाफ कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेष ने लोकसभा चुनाव के दौरान सतीश चंद्र मिश्रा के जरिए उनके पास संदेश भेजे थे कि वह मुस्लिम उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट नहीं दें, क्योंकि इससे हिंदू वोटों का धु्रवीकरण हो सकता है। मायवतीन ने यह आरोप भी लगाया कि अखिलेष अपने यादव वोटों को बसपा की ओर ध्रवीकरण में नाकाम रहे।
दूसरी ओर राजनीति के जानकारों का कहना है कि बहन जी ने सपा के साथ गठबंधन तोड़कर एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है। पहला यह कि बसपा सुप्रीमो ने अपने कैडर वोटर्स को यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी अभी कमजोर नहीं हुई है। दूसरे उन्होंने सपा के ‘पीएम’ फैक्टर यानी पिछड़ा और मुस्लिम वोटर्स में से मुस्लिम को अलग कर अपना ‘डीएम’ फैक्टर यानी दलित-मुस्लिम वोट बैंक खड़ा करने की कोशिश की है। बहन जी ने सीधे तौर पर अब तक समाजवादी पार्टी के साथ रहे मुस्लिम वोट बैंक पर डाका डालने की कोशिश की है। यही कारण है कि चुनाव से पहले तक यह बातें सामने नहीं आई थीं कि सपा और बसपा के बीच गठबंधन के दौरान क्या-क्या बातें हुईं, लेकिन उन्होंने सपा से मुस्लिमों को दूर करने के लिए सार्वजनिक तौर पर यह बयान दिया है कि अखिलेष ने उनके पास मुस्लिमों को ज्यादा टिकट नहीं देने का संदेश भेजा था।

‘डीएम’ गठजोड़ बनाने को शुरू की मुहिमः
बसपा सुप्रीमो मायावती ने डीएम फैक्टर को मजबूत बनाने के लिए मुहिम षुरू कर दी है। मायावती ने अमरोहा के सांसद दानिश अली को पार्टी की ओर से राज्य के मुस्लिमों का बड़ा चेहरा बनाते हुए इस समुदाय को जोड़ने के लिए मैदान में उतारा है। दानिश अली को जिम्मेदारी दी गई है कि वह मुस्लिम समाज को बीएसपी की नीतियों के बारे में बताएं और उन्हें अपने आंदोलन से जोड़कर उनकी लड़ाई भी लड़ें। मायावती ने मुस्लिमों के अलावा ब्राह्मणों को फिर से पार्टी के साथ जोड़ने की रणनीति बनाई है। इसके लिए सतीश चंद्र मिश्रा की अगुआई में पूरी टीम गठित की गई है। ताकि मिश्रा की सोशल इंजीनियरिंग के सहारे 2007 की तरह फिर से बसपा सत्ता में आ सके। मायावती ने बैठक में खुद कहा कि जल्द ब्राह्मणों को अपनी पार्टी में जोड़ने का अभियान शुरू किया जाएगा। मायावती का मानना है कि उनके पास दलित वोटर पहले से ही है, अतः उसको अपने साथ जोड़े रखने के लिए उन्होंने अपने भतीजे को मैदान में उतार रखा है।

मुस्लिमों को लुभाने का सही वक्त‘
बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए यह सही वक्त है जब वह मुस्लिम समुदाय को अपने साथ जोड़ सकती हैं। क्योंकि उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा का मुस्लिम वोटर खिसका है। सपा के वोटों में आई गिरावट में बसपा अपना लाभ देख रही है। इसको लेकर ही पूरी राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है। दरअसल बसपा में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के जाने के बाद से कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं था। ऐसे में पार्टी को अमरोहा के सांसद दानिश अली सबसे माफिक नजर आए।

सबसे बड़ा सवाल… दूसरे नंबर पर कौन?…सतीश, आनंद या आकाश!

अखिलेश यादव, मायावती, अजीत सिंह, आकाश आनंद, सतीश चंद्र मिश्रा एवं अन्य

पिछले समय में बसपा में मायावती के बाद दूसरे सबसे बड़े कद्दावर नेता के रूप में राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ही रहे हैं। लेकिन मायावती के भाई आनंद और भतीजे आकाश को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि अब बसपा में नंबर दो पर कौन है? हालांकि, सूत्रों का कहना है कि मायावती ने अभी सब बैलेंस कर रखा है। उन्होंने सतीश चंद्र मिश्रा को अब भी पार्टी में ब्राह्मणों के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर घोषित किया है।
मायावती ने भरी बैठक में कहा कि सतीश चंद्र मिश्रा बीएसपी के मजबूत स्तंभ हैं। पार्टी में उनका योगदान किसी से छिपा नहीं है। इसलिए उनके बारे में कुछ भी बोलने वालों को सुधर जाना चाहिए। हालांकि सियासी जानकारों का मानना है कि बसपा में पहले जहां मायावती के बाद सतीश चंद्र मिश्रा की तूती बोलती थी, अब भाई और भतीजे को अहम पद मिलने से उनका कद थोड़ा कम हुआ है। इसे संतुलित करने के लिए मायावती ने ऐसे लोगों को सुधरने की नसीहत दी जो उन्हें निशाने पर ले रहे थे।
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दलित वोट बैंक पर असरः आकाश बनाम चंद्रशेखर

आकाश आनंद

पिछले कुछ समय में भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित और मुस्लिम वोट बैंक में अपनी अच्छी पकड़ बनाई है। गाहे-बगाहे चंदशेखर मायावती की नीतियों की आलोचना भी करते रहते हैं। इससे बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक को खिसकने से बचाने के लिए मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को मैदान में उतार दिया है। दरअसल चुनाव में चंद्रशेखर ने मायावती की पार्टी को अपना समर्थन देने की बात कही थी तब मयावती ने उन्हें पार्टी में षामिल होने के लिए कहा था। लेकिन उन्होंने मना कर दिया था।

चंद्रशेखर

चंद्रशेखर के साथ युवाओं को ज्यादा संख्या में जुड़ते देख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। आकाश आनंद को जहां एक ओर मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं वह बसपा का युवा चेहरा भी बन गए हैं। दरअसल, भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर के दलित युवाओं के बीच बढ़ते कद को देखते हुए मायावती को एक युवा चेहरे की तलाश थी। इसलिए उन्होंने करीब दो साल पहले ही लंदन से मैनेजमेंट की डिग्री लेकर लौटे आकाश आनंद को राजनीति की एबीसीडी सिखाना शुरू कर दिया था। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने इस बात के संकेत भी दे दिए थे कि वह आकाश को पार्टी में अहम जिम्मेदारी देंगी।

मायावती के लिए खतराः चंद्रशेखर का बढ़ता सियासी कद
चंद्रशेखर बसपा प्रमुख मायावती को भले ही अपनी बुआ मानते हों लेकिन उनका बढ़ता सियासी कद मायावती की सियासत के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। यही कारण है कि बसपा सुप्रीमो लगातार चंद्रशेखर पर सियासी हमले करती रही हैं और उन्हें भाजपा की ’बी’ टीम बताती रही हैं। इतना ही नहीं मायावती ने चंद्रशेखर को समर्थन देने की जगह बसपा ज्वाइन कर कैडर के लिए काम करने की नसीहत भी दे डाली थी। सियासी खेल में अखिलेष यादव जैसे खिलाड़ियों को धूल चटाने वाली मायावती भलीभांति जानती हैं कि चंद्रशेखर का जो क्रेज दलित युवाओं में देखने को मिल रहा है, उससे कहीं न कहीं बसपा के बेस वोट बैंक को ही खतरा है। अब आकाश आनंद को पार्टी में अहम जिम्मेदारी देते हुए उन्हें चंद्रशेखर की लोकप्रियता को कम करने के अभियान पर लगाया गया है।

आकाश के पीछे तीन खास कारणः

आकाश एवं आनंद

वरिष्ठ पत्रकार रामगोपाल शुक्ला बताते हैं कि आनंद के बाद पार्टी में आकाश को लाने के पीछे तीन कारण रहे हैं। पहला यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता देष के युवाओं में तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में किसी भी राजनीतिक दल को अपने युवा नेताओं को आगे लाने का समय है। दूसरे कांग्रेस, सपा और रालोद के युवा नेता राहुल गांधी, जयंत चौधरी और अखिलेष यादव पहले ही फेल हो चुके हैं। तीसरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित युवाओं में चंद्रशेखर का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में बसपा को अपने भविष्य के नेता के रूप में आकाश आनंद को उतारने का सबसे अच्छा समय यही था।
आकाश आनंद के रूप में दलित युवाओं को एक नया चेहरा मिला है, राहुल, जयंत और अखिलेष के नकारे जाने के बाद खाली हुई जगह को भरने के लिए यह चेहरा सबसे मुफीद है और भाजपा को कुछ हद तक टक्कर देने के साथ बसपा को पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटव और मुस्लिमों में भी चंद्रशेखर के प्रभाव की निष्क्रिय करने में उन्हें मदद मिलेगी।
राष्ट्रीय समन्वयक के तौर पर आकाश आनंद की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी से युवाओं को जोड़ने की होगी। दूसरी ओर उन्हें राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी में ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्रा और लोकसभा में बसपा के नेता व मुस्लिम चेहरा दानिश अली के साथ सभी वर्गों को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अमायावती को लगता है कि 24 साल के आकाश आनंद पार्टी को सोशल मीडिया पर भी एक्टिव करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।