-निगम का पिछड़ रहा काम… ठोकना पड़ रहा जूनियर्स को सलाम
-जूनियर्स के बॉस बन जाने से निगमकर्मियों में बढ़ रही नाराजगी
-एडीशनल कमिश्नर ने सीनियर अधिकारी को बनाया अपना ओएसडी
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
उत्तरी दिल्ली नगर निगम में अव्यवस्थाएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। निगम के ज्यादातर पदों पर जूनियर अधिकारियों के बैठ जाने से निगमकर्मियों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। प्रतिनियुक्ति पर आए एक एडीशनल कमिश्नर ने तो अपने से काफी सीनियर अधिकारी को अपना ओएसडी ही बना कर रख लिया है। इसको लेकर सबसे ज्यादा नाराजगी निगम के स्वास्थ्य विभाग में है कि नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारी को अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं हैं। आरोप है कि प्रतिनियुक्ति पर आए इन अधिकारियों ने नगर निगम को निजी संपत्ति समझ रखा है।
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यही कारण है कि कोरोना और लॉकडाउन के दौरान उत्तरी दिल्ली नगर निगम के ज्यादातर काम पिछड़ते नजर आए हैं। मुश्किल यह है कि नगर निगम के अधिकारियों को मजबूरी में अपनी नौकरी बचाने के लिए इन बेलगाम अधिकारियों की जी-हुजूरी में लगना पड़ रहा है। यदि कोई अधिकारी इनकी जी-हुजूरी नहीं करता है तो बना किसी कारण के उसका ट्रांसफर कर दिया जाता है। यह अधिकारी लॉकडाउन के दौरान अपनी मनमानी के जरिए कई अधिकारियों को हटा चुके हैं।
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तीन महीने से वेतन नहीं मिलने की मार झेल रहे निगम कर्मियों को दूसरे मोर्चों पर भी परेशानी झेलनी पड़ रही है। केशवपुरम, करोलबाग, सिटी-सदर पहाड़गंज जोन उपायुक्तों के पदों से लेकर विज्ञापन विभाग, केंद्रीय संस्थापना विभाग, समुदाय सेवा विभाग, सेंट्रल लाइसेंसिंग विभाग, शिक्षा विभाग, फैक्टरी लाइसेंसिंग, भूमि एवं संपदा विभाग, लाभकारी परियोजना विभाग सहित कई विभाग ऐसे हैं, जिनकी कमान बहुत ज्यादा जूनियर अधिकारियों के पास है।
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इससे भी बड़ी बात है कि इन सभी अधिकारियों के पास एक से ज्यादा विभागों का कामकाज है। जिसकी वजह से उत्तरी दिल्ली नगर निगम का कामकाज लगातार पिछड़ता जा रहा है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम में सबसे ज्यादा चर्चा अतिरक्त आयुक्त संदीप जे जेक्स और रश्मि सिंह के नामों की है। बताया जा रहा है कि इनमें से एक किसी और की बात नहीं सुनते और दूसरे की बात उनके ही मातहत (जूनियर से सीनियर बनाए गए) अधिकारी नहीं सुनते।
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बता दें कि नगर निगम में अतिरिक्त आयुक्त पद के लिए पे लेवल-14 (ग्रेड पे- 10000 रूपये) वाले अधिकारी या फिर ग्रेड पे- 8700 रूपये के पे लेवल-13 के साथ कम से कम इसी लेवल में तीन साल का अनुभव होना जरूरी है। लेकिन नगर निगम में स्वास्थ्य विभाग की कमान संभाल रहे एजीएमयूटी केडर के अतिरिक्त आयुक्त संदीप जे जेक्स 5 नवंबर 2019 को ही जूनियर एडमिनिस्ट्रिटिव ग्रेड के लेबल 12 में प्रमोट हुए हैं।
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हालांकि लेबल-12 में उनकी प्रमोशन को 1 जनवरी 2018 से माना गया है। तीन साल के अनुभव की बात तो बाद में आती है, जैक्स तो निगम की सेवा शर्तों के मुताबिक अतिरिक्त आयुक्त पद के लिए तय न्यूनतम योग्यता से भी एक लेवल नीचे के अधिकारी हैं। खास बात है कि वह पे बैंड, ग्रेड पे और सर्विस लेबल में से कोई भी शर्त या औपचारिकता को पूरा नहीं करते। इसके बावजूद उन्हें अतिरिक्त आयुक्त जैसा अहम पद दिया गया है।
अतिरिक्त आयुक्त संदीप जे जैक्स दूसरे कई विभागों के साथ जिस अहम् स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, उसी में करीब 125 अधिकारी ग्रेड पे- 10,000 और सर्विस लेबल-14 के शीर्ष अधिकारी मौजूद हैं। ऐसे में अपने से बहुत ज्यादा जूनियर अधिकारी को अतिरिक्त आयुक्त के पद पर होने की वजह से उन्हें सलाम ठोंकना पड़ रहा है। आश्चर्य की सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने अपना ओएसडी डॉक्टर दिनेश नेगी को बनाया है।
डॉ नेगी 2011 से सीनियर लेबल में हैं और फिलहाल पे लेबल-14 के अधिकारी हैं। जबकि संदीप जे जैक्स 2018 से महज लेबल 12 के अधिकारियों में शुमार हुए हैं। कुछ यही स्थिति दूसरी अतिरिक्त आयुक्त रश्मि सिंह की है। वह नई दिल्ली नगर पालिका परिषद से उत्तरी दिल्ली नगर निगम में आई हैं। वह 2007 बैच की प्रमोटी आईएएस हैं। जबकि संदीप 2009 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।
केंद्रीय मंत्रियों के ओएसडी भी नहीं बनते लेबल-13 से ऊपर के अधिकारी
बता दें कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधिकारी सभी नियमों, कायदे और कानूनों की धज्जियां उड़ाने में जुटे हैं। सामान्य तौर पर केंद्रीय मंत्रियों के ओएसडी भी पे लेबल 13 से नीचे के अधिकारी ही बनाए जाते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि संदीप खुद किसी मंत्री के ओएसडी से ऊपर के ओहदे तक अभी नहीं पहुंचे हैं। खास बात है कि किसी अधिकारी का ओएसडी उससे नीचे के लेबल का अधिकारी ही हो सकता है। जबकि डॉक्टर नेगी संदीप जैक्स से दो लेवल ऊपर के अधिकारी हैं। फिर भी उत्तरी दिल्ली नगर निगम में यह अधिकारी उलटी गंगा बहाने में जुटे हैं।
कमजोर होती जा रही बीजेपी
नगर निगम में बेलगाम अधिकारियों की मनमानी लगातार बढ़ती जा रही है। निगम के नेता इन अधिकारियों के सामने बेचारे साबित हो रहे हैं। पूर्व आयुक्त वर्षा जोशी ने इन अधिकारियों को भी रास्ता दिखा दिया है। वह खुद स्थायी समिति और सदन की बैठकें छोड़कर चली जाती थीं। लेकिन अधिकारी उन्हें कुछ नहीं कर पाते थे। वही अब तीनों नगर निगमों में हो रहा है। महापौरों से लेकर स्थायी समिति अध्यक्ष और नेता सदन तक इन अधिकारियों से कोई काम नहीं ले पा रहे हैं। इस संबंध में जब निगम के कई नेताओं से प्रतिक्रिया मांगी गई लेकिन कोई अधिकारिक तौर पर बोलने को तैयार नहीं हुआ।
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