दंगाईयों के खिलाफ योगी सरकार का ‘अमोघ अस्त्र’

-दंगाईयों के मामले में पीछे हटने को तैयार नहीं योगी सरकार
-यूपी विधानसभा में पास हुआ दंगाईयों के पोस्टर का अध्यादेश

टीम एटूजैड/ लखनऊ
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दंगाईयों के पोस्टर लगाने के मामले में अदालती सवालों का तोड़ निकाल लिया है। सीएम योगी आदित्य नाथ दंगे के आरोपियों से संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई के मामले में बिलकुल पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। ऐसे आरोपियों के फोटो वाले होर्डिंग्स अब लखनऊ शहर के चौराहों पर से नहीं हटाए जाएंगे। योगी सरकार ने अध्यादेश के रूप में ‘अमोघ अस्त्र’ चला है। यह मामला जिस तरह से अदालती घेरे में आया था, उससे लगा था कि सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़ेंगे। लेकिन अब योगी सरकार ने इसका तोड़ निकल लिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में एक बात समान दिखाई दी थी कि दोनों ही जगह सरकार से पूछा गया कि आखिर उसने किस कानून के आधार पर आरोपियों के होर्डिंग शहर में लगाये।.
कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि किस कानून के तहत सरकार ने ऐसा किया है। जब ऐसा कानून अस्तित्व में है ही नहीं तो सरकारी वकील ने कोर्ट को यही बताया कि ऐसा कोई कानून राज्य में नहीं है। कोर्ट ने इसपर नाराजगी भी जाहिर की थी। तब ऐसा लगने लगा था कि योगी सरकार का ये दांव उलटा पड़ गया है। अब 16 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट में फिर से सुनवाई होनी है। इस तारीख से पहले ही यूपी सरकार ने कोर्ट के उस सवाल का हल खोज निकाला है।
यूपी सरकार लाई नया अध्यादेश
यूपी की योगी सरकार ने ‘‘यूपी रिकवरी फॉर डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश-2020’’ को मंजूरी दे दी है। राज्यपाल से हरी झंडी मिलने के बाद इसने कानून का रूप ले लिया है। यूपी में अब यह कानून अगले 6 महीने तक लागू रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए एक गाइडलाइन पहले से ही जारी की हुई है। जिसके आधार पर दिल्ली में हुए दंगे से हुए नुकसान की भरपाई करने की बात गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में भी कही थी। लेकिन अब यूपी सरकार के पास अपना कानून होगा।
सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वेशन का इंतजार
हालांकि इस मामले अभी सुप्रीम कोर्ट की ओर से निजता यानी प्राइवेसी को लेकर अपना रूख स्पष्ट किया जाना बाकी है। कोर्ट में यह बात कही गयी थी कि आरोपियों के होर्डिंग लगाना निजता का उल्लंघन है। हालांकि इस दौरान होने वाले विधान सभा सत्र में सरकार अध्यादेश की जगह बिल लाएगी और विधानमंडल से पास होने के बाद यह हमेशा के लिए एक्ट (कानून) अस्तित्व में आ जायेगा। भविष्य में जब भी कोई सरकार ऐसे आरोपियों की होर्डिंग चौराहों पर लगाएगी और उसे अदालत में चुनौती दी जाएगी तो सरकारी वकील को बगलें नहीं झांकनी पड़ेंगी।
सीएए की खिलाफत में दंगाईयों ने पहुंचाया संपत्तियों को नुकसान
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की खिलाफत के नाम पर लखनऊ में दंगाईयों ने हिंसा और उपद्रव के दौरान सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया था। सुनवाई के दौरान दंगा करने वालों की सुप्रीम कोर्ट ने जमकर खबर ली है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों के किनारे से दंगा फैलाने वालों के पोस्टर फौरन हटाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार भी कर दिया। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि बेशक दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें दंडित भी किया जाना चाहिए। फिर भी ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे सड़क के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर लगाने को सही ठहराया जा सके।
चीफ जस्टिस के सामने मामला रखने की सिफारिश
मामले की सुनवाई के दौरान अवकाशकालीन पीठ ने इसके सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को इस मामले को तत्काल मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के सामने रखने को कहा। ताकि कम से कम तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जा सके। ताकि अगले सप्ताह इस मामले की सुनवाई की जा सके। यूपी सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को गंभीर मानते हुए कहा कि इस मसले पर बड़ी पीठ द्वारा परीक्षण करने की जरूरत है। मामले में अपेक्षाकृत विस्तित व्याख्या और विचार की जरूरत भी बताई।

कोर्ट ने उठाए यूपी सरकार पर सवाल
यूपी सरकार की ओर से कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला बेहद संवेदनशील है। इस पर पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास पोस्टर लगाने की ऐसी कोई शक्ति है? पीठ ने कहा कि हिंसा और तोड़फोड़ की निंदा हो, मगर क्या अपराधियों को बार-बार पीड़ित किया जाना चाहिए? आरोपियों के लिए भुगतान करने का समय अभी भी बाकी था और वसूली की कार्रवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिकाएं लंबित हैं। जिन लोगों के फोटो लगाए गए हैं कोर्ट ने उन्हें मामले में पक्षकार बनने की मंजूरी भी दे दी।
हाईकोर्ट ने किया ‘घालमेल’: यूपी सरकार
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में पेश मेहता ने कहा कि असामाजिक तत्वों व उनकी हरकतों को निजता के अधिकार के तहत संरक्षण नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निजता के अधिकार पर जोर दिया लेकिन मूल समस्या का ‘घालमेल’ कर दिया। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाने की राज्य सरकार की कार्रवाई को अन्यायपूर्ण करार देते हुए निजता का उल्लंघन माना था। इसी आधार पर पोस्टरों को फौरन हटाने का आदेश देते हुए जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को 16 मार्च तक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को अनुपालन रिपोर्ट (एक्शन टेकन रिपोर्ट) पेश करने का आदेश दिया था।
सबक सिखाने को लगाए पोस्टर
यूपी सरकार की ओर से दलील रखते हुए सीनियर एडवोकेट तुषार मेहता ने कहा कि निजता के अधिकार के कई आयाम होते हैं। पोस्टर हटाने के हाईकोर्ट के आदेश में कई खामियां हैं। यह लोग प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल थे। दंगाइयों के पोस्टर उन्हें सबक सिखाने के लिए लगाए गए हैं। ताकि भविष्य में लोग इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में शामिल होने से डरें।
सबूतों के आधार पर आया दंगाईयों का नाम
एडवोकेट मेहता ने कहा कि इंगाईयों का ना पोस्टर में यूं ही नहीं आया है। नोटिस के बाद उनका नाम आया है। यह बैनर इसलिए लगाए गए थे क्योंकि स्थगन प्राधिकरण ने 95 लोगों को सुना था और पाया कि 57 लोग दंगे के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि इन 57 लोगों में विभिन्न समुदायों के दंगाई शामिल हैं।
खुलेआम बंदूक लहराने वालों को नहीं निजता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सवालों के जवाब में एडवोकेट मेहता ने दलील दी कि प्रदर्शन के नाम पर दंगाई खुले में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं। मीडिया ने उनके वीडियो बनाए थे। सबने वीडियो देखा है। यह लोग खुलेआम बंदूकें लहरा रहे थे और फायरिंग कर रहे थे। ऐसे में यह दावा नहीं कर सकते कि पोस्टर लगाने से उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। पुट्टास्वामी मामले में दिए फैसले के अनुसार, किसी व्यक्ति का नाम सार्वजनिक डोमेन में होना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। अगर किसी व्यक्ति को सार्वजनिक स्थानों पर हिंसक गतिविधियों में लिप्त होते हुए वीडियोग्राफी का सबूत है तो वह निजता के अधिकार के संरक्षण का दावा नहीं कर सकता।
बचाव पक्ष ने बताया लिंचिंग का मामला
बैनर में लगाए गए एक फोटो वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि सरकार की कार्रवाई में लिंचिंग की अपील नजर आती है। बच्चों के दुष्कर्मी और गंभीर अपराधियों के नाम भी प्रकाशित नहीं किए जाते। नुकसान की वसूली का मुद्दा अभी विचाराधीन है। एक और याचिकाकर्ता वकील मोहम्मद शोएब की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने कहा कि उनके मुवक्किल पर अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाने के चलते अतीत में कई बार हमले हो चुके हैं। ऐसे में बैनर में उनके नाम और पता प्रकाशन के बाद उन पर हमला हो सकता है।