मंडल अध्यक्षों की घोषणा के साथ दिल्ली BJP में बगावत शुरू!

-दिल्ली बीजेपी ने शनिवार को की थी 250 में से 204 मंडल अध्यक्षों की घोषणा
-आधा दर्जन से ज्यादा पूर्व मंडल अध्यक्षों ने की बीजेपी के साथ बगावत

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्लीः 05 मई।
मंडल अध्यक्षों की घोषणा के साथ ही दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में बगावत शुरू हो गई है। बीजपी भले ही दिल्ली में ट्रिपल इंजन सरकार बनाने में कामयाब हो गई हो, परंतु पार्टी के नेताओं की महत्वाकांक्षाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हालात यहां तक हैं कि जो नेता दो-दो बार मंडल अध्यक्ष रह चुके हैं और अब उनकी जगह पर किसी अन्य को नये मंडल अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है तो वह पार्टी छोड़ने की बात कर रहे हैं।

गौरतलब है कि दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने 250 मंडलों में से अपने 204 मंडल अध्यक्षों की सूची शनिवार को जारी की थी। इसके साथ ही पार्टी में पूर्व मंडल अध्यक्षों ने बगावत के स्वर अलापने शुरू कर दिये हैं। ज्यादातर बीजेपी नेताओं ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया जारी की है। इस तरह की प्रतिक्रियाएं पार्टी के लगभग हर जिला से देखने को मिल रही हैं।
नवीन शाहदरा जिला के मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के एक नेता ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर बीजेपी से अपने सभी पदों से त्याग पत्र देने की घोषणा की है। उन्होंने यह भी लिखा है कि बीजेपी अब कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं रही है। जो डराता-धमकाता है उससे डरती है। वहीं उत्तर पूर्वी जिला के करावल नगर विधानसभा क्षेत्र से एक और व्यक्ति ने मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति में ‘बहुत बड़ी डील’ की बात अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखी है।
दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि डॉ महेंद्र नागपाल को मडलों के चुनाव की जिम्मेदारी दी गई थी। संगठन की ओर से विभिन्न पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से इस बारे में फीडबैक भी लिया गया था। परंतु मंडल अध्यक्षों की जिस तरह की सूची जारी की गई है। उससे स्पष्ट हो गया है कि जिन लोगों के नामों की सिफारिश कार्यकर्ताओं ने की थी, उन सिफारिशों को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है।
दिल्ली बीजेपी के एक और वरिष्ठ नेता का कहना है कि यह जिम्मेदारी प्रदेश नेतृत्व की है कि पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को भरोसे में लिया जाये। बीजेपी 27 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद सत्ता में आई है। परंतु इस तरह की नकारात्मक और महत्वाकांक्षाओं के चलते पार्टी कमजोर होती है और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है। उन्होंने आगे कहा कि इतने बड़े संगठन में सभी लोगों को एक साथ संतुष्ट नहीं किया जा सकता।