-नहीं चली अय्यारी, राष्ट्रीय मुद्दे भाजपा पर भारी
-हरियाणा व महाराष्ट्र के नतीजे, भाजपा के लिए सबक
-भाजपा को नहीं मिली पिछली बार के बराबर सफलता
-भाजपा पर भारी दूसरे दलों से लाकर चुनाव लड़ाने की नीति
हीरेन्द्र राठौड़/नई दिल्ली
हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए सबक हैं। दोनों राज्यों में इज्जत तो बच गई लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसी स्थिति बनते बनते रह गई। हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बीजेपी जम्मू-कश्मीर से 370 को हटाने, एनआरसी, चंद्रयान-2 और पाकिस्तान के मुद्दों को उठाती रह गई। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सहित पार्टी के तमाम नेता इन्हीं मुद्दों को अपने भाषणों शामिल करते रहे। फिर भी दोनों राज्यों में बीजेपी की सीटों की संख्या घटने से साफ है कि इस चुनाव में ये मुद्दे पूरी तरह से बेसर रहे। इन मुद्दों पर बीजेपी लोगों का दिल नहीं जीत सकी है। सियासी जानकारों की मानें तो भाजपा को अपनी रणनीति और कार्य प्रणाली पर फिर से विचार करना होगा। दोनों ही राज्यों में दूसरे दलों से लाकर चुनाव लड़ाने की भाजपा की नीति को गहरा आघात लगा है। क्योंकि हरियाणा में बीजेपी का ‘मिशन 75 के पार’ हवा में ही रह गया। वहीं महाराष्ट्र में भी बीजेपी को जितनी सफलता 2014 के विधानसभा चुनाव में अकेले के दम पर मिली थी। उतनी इस बार शिवसेना के साथ मिलकर लड़ने पर भी नहीं मिली।
हरियाणा में बीजेपी को मतदाताओं का साथ नहीं मिला। इस बात का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 11 में से 2 मंत्रियों को टिकट नहीं दिया था। बाकी 9 में से 7 मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए। मंत्रियों में केवल अंबाला से अनिल विज और बावल से बनवारी लाल ही चुनाव जीत पाए। यहां बीजेपी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में 47 सीट हासिल की थीं। लेकिन इस बार बहुमत के आंकड़े से बीजेपी ठीक 6 सीट पीछे रह गई।
महाराष्ट्र में बीजेपी के देवेंद्र फणनवीस सरकार के 8 मंत्री चुनाव हार गए। ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे अपने चचेरे भाई धनंजय मुंडे से 30 हजार से ज्यादा मतों से चुनाव हार गईं। महाराष्ट्र में कांग्रेस व दूसरे दलों से बीजेपी में आए 19 में से 11 नेता चुनाव हार गए। महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी एनसीपी एक बार फिर अच्छी स्थिति में उभरी है। एनसीपी को मिली 54 सीट पर जी बताती है कि महाराष्ट्र में बीजेपी ही नहीं दूसरे दल भी मतदाताओं के लिए महत्व रखते हैं। एनसीपी नें 2014 के मुकाबले महाराष्ट्र में इस बार 13 सीट ज्यादा हासिल की हैं।
विधानसभा चुनाव से पहले शरद पवार की पार्टी एनसीपी से जिस तरह भाजपा की ओर भगदड़ देखी गई उससे ऐसा लग रहा था कि महाराष्ट्र में पवार के सियासी सूर्य का अस्त निकट है। लेकिन उम्र की इस दहलीज पर भी उन्होंने जिस तरह धुआंधार चुनाव प्रचार किया और किसानों की समस्याओं, आर्थिक मंदी, बेरोजगारी आदि मुद्दों को शिद्दत से उठाया वह काबिले तारीफ रहा। इतना ही नहीं, पवार ने पार्टी छोड़कर गए नेताओं की हार सुनिश्चित करने की भी रणनीति बनाई और इसमें कामयाब रहे। एनसीपी छोड़कर जाने और चुनाव हारने वालों में छत्रपति शिवाजी के वंशज भी शामिल हैं।
हरियाणा में नहीं मिला स्पष्ट बहुमतः
भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 90 सीटों में से ‘इस बार 75 के पार’ का लक्ष्य रखा था। लेकिन कांग्रेस और नव गठित जननायक जनता पार्टी ने बीजेपी के विजय रथ को रोक दिया। भाजपा को विधानसभा चुनाव में केवल 40 सीट ही मिल पाईं। दूसरी ओर अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए 31 सीट पर जीत हासिल की। वहीं जेजेपी के खाते में 10 और अन्य के खाते में 9 सीटें चली गईं। खास बात यह रही कि टिकट बंटवारे से नाराज भाजपा के बागी भी 4 सीटों पर अपनी विजय पताका फहराने में कामयाब रहे। खास बात यह रही कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला भी चुनाव हार गए। उन्हें जेजेपी उम्मीदवार देवेंद्र बवली ने 52 हजार से ज्यादा मतों से हराया। हरियाणा में बीजेपी के उम्मीदवार 6 सीटों पर 2 हजार से कम और 3 सीटों पर 1 हजार से कम वोट से हारे हैं।
आश्चर्य की बात तो यह रही कि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पैराशूट के सहारे जो सितारे जमीन पर उतारे थे। वह भी बुरी तरह से हार गए। पहलवान योगेश्वर दत्त और दंगल गर्ल बबीता फोगाट उनके प्रतिद्वंदियों ने जबरदस्त शिकस्त दी। दानों ही पहलवान सियासी अखाड़े में चारों खाने चित हो गए। बरोद सीट से योगेश्वर दत्त और दादरी सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ी बबीता फोगाट तीसरे स्थान पर रहे। बता दें कि दोनों ही हरियाणा पुलिस की अच्छी खासी अधिकारी की नौकरी छोड़कर सियासी मैदान में कूदे थे।
महाराष्ट्र में गिरा भाजपा का ग्राफः
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा का ग्राफ काफी नीचे रहा। इस बार बीजेपी और शिवसेना ने यहां मिलकर चुनाव लड़ा था। बीजेपी ने 105 और शिवसेना ने 56 सीट पर जीत हासिल की। खास बात यह रही कि इस बार शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) 54 सीट जीतने में कामयाब रही। जबकि कांग्रेस को 44 और महानगर नव निर्माण सेना को एक सीट हासिल हुई।
राज्य में कांग्रेस और एनसीपी के पास केवल 100 सीट हैं। सरकार बनाने के लिए 145 सीटों की जरूरत है। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए 45 सीट की जरूरत पड़ी। जबकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने बहुमत का आंकड़ा नतीजों के आधार पर पार कर लिया।
भाजपा का मत प्रतिशत घटाः
2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में भाजपा को 58 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा चुनपाव में पार्टी लुढ़क कर 36.5 फीसदी वोट पर आ गई है। महाराष्ट्र में भी एनडीए गठबंधन का मत प्रतिशत घटा है। विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 42 फीसदी वोट हासिल हुए हैं। जबकि अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए को 51 फीसदी वोट मिले थे। 2014 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा को इस विधानसभा चुनाव में जरूर 3.3 फीसदी वोट का फायदा हुआ है।
एनसीआर में भाजपा का दबदबाः
दिल्ली से सटे एनसीआर क्षेत्र में भाजपा का दबदबा रहा। गुरुग्राम, फरीदाबाद और पलवल जिले में भाजपा को अच्छी सफलता मिली है। गुरुग्राम की तीन सीट गुरुग्राम, पटौदी और सोहना में पार्टी ने जीत दर्ज की। हालांकि, बादशाहपुर सीट पर भाजपा को निर्दलीय प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा। फरीदाबाद और पलवल जिले में नौ सीटों में से सात सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की। हालांकि फरीदाबाद की एनआईटी सीट बीजेपी मामूली अंतर से हार गई।
जाट बेल्ट में कांग्रेस मजबूतः
2019 के विधानसभा चुनाव में जाट बेल्ट में कांग्रेस एक बार फिर से मजबूती के साथ उभरी है। इस बार टिकट बंटवारे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ज्यादा चली। उसका नतीजा यह रहा कि पार्टी को पिछली बार 15 सीट मिली थीं और इस बार राज्य में 30 सीट हासिल हुईं। खास बात यह रही कि सोनीपत से लेकर सिरसा तक जाट बेल्ट की ज्यादातर सीट कांग्रेस ने जीती हैं।
किंग मेकर बनकर उभरे चौटालाः
हरियाणा की राजनीति में 11 महीने पहले उभरी दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी इस बार के विधानसभा चुनाव में 10 सीट लेकर चर्चा में आई है। पार्टी के मुखिया दुष्यंत चौटाला राज्य के सियासी समर में किंग मेकर बनकर उभरे हैं। हालांकि भाजपा ने दुष्यंत चौटाला के मुकाबले निर्दलीयों को ज्यादा तरजीह दी है। सोशल मीडिया पर छाई रहने वाली योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज इंडिया जमीन पर कहीं दिखाई नहीं दी। दूसरी ओर दिल्ली में सत्ता पर काबिज अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कहीं दिखाई नहीं दी।
बढ़ी क्षेत्रीय दलों की धारः
2019 के हरियाणा और महराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बार फिर साबित हुआ है कि क्षेत्रीय क्षत्रप अप्रासंगिक नहीं हुए हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी की सीटें 40 से बढ़कर 54 हो गई हैं। शिवसेना भी 56 सीटें जीतने में कामयाब रही है। इसी तरह हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस को 15 से 31 सीटों पर पहुंचा दिया है। केवल यही नहीं बल्कि 11 महीने पहले बनी जेजेपी भी 10 सीटें जीतने में कामयाब रही। विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ जाहिर है कि मौजूदा राजनीति में क्षेत्रीय दलों और छत्रपों की सियासत अभी खत्म नहीं हुई है।