धारा 35ए हटाने की तैयारी… होंगे महिला-पुरूष समान अधिकारी

-जम्मू कश्मीर में बढ़ाई सुरक्षा बलों की संख्या
-पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जताई नाराजगी

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
तीन तलाक के बाद मोदी सरकार ने अब जम्मू-कश्मीर में धारा 35ए हटाने के लिए कमर कस ली है। सरकार की तैयारियां जोरों पर हैं। सूत्रों का कहना है कि सरकार के अंदर इस बात को लेकर विचार शुरू हो गया है। इस पर जल्द फैसला हो सकता है। गौरतलब है कि सरकार को फूंक-फूंक कर कदम उठाना होगा। क्योंकि इस कदम से पाक को राज्य में भावनाएं भड़काने का मौका मिल जाएगा। बता दें कि गृह मंत्रालय के सुरक्षाबलों की तैनाती के ऑर्डर के बाद कश्मीर में काफी हलचल है। चर्चा है कि विवादित 35ए को हटाने का केंद्र ने मन बना लिया है। लोकसभा में अपने पहले संबोधन में गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस बात पर ज़ोर दिया था कि संविधान में धारा 370 स्थायी नहीं है।
सुरक्षा के साथ मिलेगा राजनीतिक फायदा
आर्टिकल 35ए को खत्म करना केंद्र सरकार के लिए चुनौती भरा होगा। लेकिन ये फैसला भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए बेहद अहम होगा। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी के लिए भी राजनीतिक तौर पर यह फैसला फायदेमंद साबित होगा। इसी के चलते बीते कुछ दिनों से क्षेत्रीय पार्टियों में घमासान मचा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती 35ए के समर्थन में एकजुट होने पर ज़ोर दे रहीं हैं। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फ़ारूक़ और उमर अब्दुल्ला पीएम मोदी से मिलकर हालात पर चिंता जाता चुके हैं।
जान लें, क्या है 35ए
अनुच्छेद 35ए से जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते हैं। 14 मई 1954 के पहले जो कश्मीर में बस गए थे वही यहां के स्थायी निवासी हैं। स्थायी निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, सरकारी रोजगार हासिल करने और सरकारी योजनाओं में लाभ के लिए अधिकार मिले हैं। किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थायी निवासी के तौर पर न जमीन खरीद सकता है, ना राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती है। अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छिन जाते हैं, हालांकि पुरुषों के मामले में ये नियम लागू नहीं है। आर्टिकल 35ए को लेकर एक बड़ी शिकायत ये भी है कि 1954 में इसे बिना संसद की अनुमति के सीधे राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ दिया गया था।
विशेष परिस्थितियों की वजह से उठाया कदम
बता दें कि ऐसा जम्मू-कश्मीर की विशेष परिस्थितियों के कारण किया गया था। जानकार मानते हैं कि राष्ट्रपति के आदेश से ही इस नियम को खत्म किया जा सकता है। यानी कि इसे संसद में पास कराने की भी जरूरत नहीं है। हालांकि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए जानकारों का मानना है कि सरकार को किसी बड़े फैसले से पहले सभी पक्षों को साथ लेकर चलना होगा।
35ए हटने से होने वाले बदलाव
धारा 35ए के हट जाने से देश का कोई भी नागरिक राज्य में ज़मीन खरीद पाएगा। सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में भी दाखिला मिल पाएगा। महिला और पुरुषों के बीच अधिकारों को लेकर भेदभाव खत्म हो जाएगा। कोई भी व्यक्ति कश्मीर में जाकर बस सकता है। वेस्ट पाकिस्तान के शरणार्थियों को वोटिंग का अधिकार मिलेगा।
स्थानीय नेताओं को डरा रहा सत्ता जाने का डर
धारा 35ए को लेकर कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं को डर सताने लगा है। उन्हें डर है कि इससे राज्य की स्वायत्ता और कम हो जाएगी। अगर अन्य राज्यों के लोग यहां बसने लगे तो इस मुस्लिम बहुल राज्य की जनसांख्यिकी बदल जाएगी। हालांकि बीते 70 वर्षों में यहां ऐसा कोई बदलाव नहीं हुआ है, जबकि जम्मू के हिंदू बहुसंख्यकों और लद्दाख के बौद्ध लोगों को घाटी में संपत्ति खरीदने व बसने का अधिकार है।
सरकार के लिए अलगाववाद है चुनौती
धारा 35ए को हटाने से केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अलगाववाद की होगी। कश्मीरी अलगाववादियों को यहां के युवाओं को भड़काने का मौका मिल जाएगा। दूसरी ओर पाकिस्तान भी कश्मीर के हालातों को खराब करने की पूरी कोशिश करेगा। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक बयान में कहा है कि जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक ढांचे में बदलाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।