पीएम मोदी ने छोड़ा तीर-धू धू कर जला रावण

पीएम के साथ राष्ट्रपति कोविंद पहुंचे लाल किला मैदान
केंद्रीय मंत्री हर्ष वर्धन और प्रदेश भाजपा मनोज तिवारी रहे साथ

टीम एटूजैड/ नई दिल्ली
शुक्रवार को देशभर में बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का दशहरा पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। राजधानी दिल्ली के लाल किला मैदान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे। उनके साथ केद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी भी मंच पर रहे। पीएम मोदी ने लवकुश रामलीला के मंच से रावण, कुंभकरण और मेघनाद की ओर परंपरागत रूप से तीर चलाया और तीनों पुतले धूधू कर जलने लगे। प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान श्री राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान की आरती के बाद रावण की ओर परंपरागत तीर चलाया।
पुतला दहन से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने देशवासियों को विजयादशमी पर्व की बधाई दी। उन्होंने कहा कि अनैतिक कार्यों के कारण ही रावण का दहन किया जाता है। विजयादशमी का पर्व नैतिकता और सदाचार का पर्व है और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन पूरे मानव समाज के लिए एक संदेश है। इसमें राम-केवट मिलन या फिर सबरी के बेर खाना एक ऐसा उदाहरण है जो समाज को आज भी सद्भाव का संदेश देता हैं।
कोविंद ने कहा कि देश के सामने कई प्रकार की चुनौतियां है। इसका निरावरण धैर्य और साहस के साथ करने की जरूरत है। भगवान राम ने प्रकृति के सामंजस्य के साथ लंकापति रावण पर विजय प्राप्त की थी। आइए हम सब मिलकर रावण के पुतले के साथ अपना अहंकार, आतंकवाद और अन्य बुराइयों का भी दहन करें।

दूसरी ओर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी शुक्रवार को राजधानी के ऐतिहासिक रामलीला मैदान पहुंचीं। यहां उन्होंने परंपरागत रूप से तीर छोड़कर रावण के पुतले का दहन कराया।

नोएडा के बिसरख में होती है रावण की पूजाः

हर साल दशहरा के दिन भले ही रावण के पुतलों का दहन किया जाता हो। लेकिन देश में कई स्थान ऐसे हैं जहां रावण की पूजा भी होती है। ऐसा ही एनसीआर के तहत नोएडा का गांव बिसरख है। बिसरख में रावण का पुतला जलाना वर्जित है। मान्यता है कि रावण का जन्म बिसरख में हुआ था। उनके पिता महर्षि विश्रवा का आश्रम यहीं था। गांव में एक शिव मंदिर है। जो ‘रावण का मंदिर’ के नाम से मशहूर है। इस प्राचीन शिव मंदिर के महंत राम दास का कहना है कि लंका नरेश इस गांव में पैदा हुए थे। इस मंदिर को रावण मंदिर के नाम से जाना जाता है। रावण का जन्म ऋषि विश्रवा के यहां हुआ था। उनका बचपन बिसरख में बीता था। रावण मंदिर में एक शिवलिंग हैं, जो आठ भुजाओं वाला है। यहां के निवासी राजवीर सिंह भाटी बाताते हैं कि इसे अष्टभुजा शिव कहा जाता है। इसकी स्थापना महर्षि विश्रवा ने की थी। यहां रावण की मूर्ति स्थापित करने पर भी विवाद हुआ था। बता दें कि रावण की पूजा मंदसौर में भी होती है। मंदसौर शहर के खानपुरा क्षेत्र के रूण्डी पर रावण की मूर्ति स्थापित है। उज्जैन के चिखली गांव में मान्यता है कि यहां रावण की पूजा नहीं करने पर गांव जलकर भष्म हो जाएगा। विदिशा के नटेरन गांव में रावण को देवता मानकर पूजा की जाती है। जोधपुर में रावण की ससुराल मानी जाती है। कहा जाता है कि वह यहां का दामाद था, इसलिए यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता।