केजरीवाल से दो-दो हाथ करेंगे कपिल, सीलमपुर से लड़ेंगी शाजिया!

-दिल्ली चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी का ‘मास्टर प्लान’
-‘आप’ से आए नेताओं को ‘आप’ से भिड़ाने की तैयारी

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने ‘मास्टर प्लान’ तैयार करना शुरू कर दिया है। इसके तहत आम आदमी पार्टी से भाजपा में आए नताओं को ‘आप’ से ही भिड़ाने की तैयारी की जा रही है। इसके तहत आप सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने उतारा जाएगा। इसके साथ ही आप के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं शाजिया इल्मी को सीलमपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने की तैयारी की जा रही है। इसके साथ ही गांधी नगर से विधायक अनिल वाजपेई और बिजवासन से विधायक कर्नल देवेंद्र सहरावत को भी ऐसी सीटों से उतारने पर विचार किया जा रहा है, जहां भाजपा कमजोर है और आम आदमी पार्टी को इनके द्वारा अच्छी टक्कर दी जा सकती है।
भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि आम आदमी से भाजपा में आए विधायक अपने लिए विधानसभा चुनाव में टिकट की मांग कर रहे हैं। इस तरह की सीटों पर भाजपा का अपना संतुलन बिगड़ सकता है। अतः पार्टी में विचार किया जा रहा है कि आप से आए नेताओं को आम आदमी पार्टी के खिलाफ ही इस्तेमाल किया जाए। कपिल मिश्रा फिलहाल उत्तर पूर्वी दिल्ली की करावल नगर सीट से विधायक रहे हैं। उन्होंने भाजपा में आने से पहले और बाद में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आप सरकार के खिलाफ जमकर मोर्चा खोल रखा है।
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लडाने के लिए फिलहाल दिल्ली बीजेपी के पास कपिल मिश्रा से अच्छा चेहरा नहीं है। पार्टी ने 2013 में केजरीवाल के खिलाफ विजेंद्र गुप्ता और 2015 में उनके खिलाफ नूपुर शर्मा को मैदान में उतारा था। लेकिन दोनों ही बार भाजपा नई दिल्ली सीट पर कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी। अतः पार्टी नेतृत्व ने तय किया है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली या फिर जिस सीट से चुनाव लड़ेंगे, उनके खिलाफ कपिल मिश्रा को उतारा जाएगा।
तीसरे स्थान पर रहे थे विजेंद्र गुप्ताः
साल 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के सामने नई दिल्ली सीट से विजेंद्र गुप्ता को मैदान में उतारा था। केजरीवाल को 44 हजार 269 वोट हासिल हुए थे। उन्होंने दूसरे स्थान पर रहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री और कांग्रेस उम्मीदवार शीला दीक्षित को 25 हजार 864 वोट से हराया था। भाजपा के विजेंद्र गुप्ता तीसरे स्थान पर रहे थे। इसी तरह केजरीवाल ने 2015 के विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट पर 57 हजार 213 वोट हासिल किए। उन्होंने भाजपा की नूपुर शर्मा को 31 हजार 583 वोट से शिकस्त दी। नूपुर को महज 25 हजार 630 वोट ही हासिल हो सके। कांग्रेस की किरन वालिया महज 4 हजार 781 वोट ही हासिल कर सकीं। 2015 में नई दिल्ली सीट पर तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। इसीलिए अब केजरीवाल के सामने कपिल मिश्रा को चुनाव लड़ाने पर विचार किया जा रहा है।
भाजपा के हाथ से दूर रहा सीलमपुरः
भारतीय जनता पार्टी उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सीलमपुर सीट पर भी 1993 से अब तक कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई है। पार्टी नेतृत्व 2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से शाजिया इल्मी को चुनावी मैदान में उतारने पर विचार कर रहा है। दरअसल यह सीट ज्यादातर कांग्रेस के कब्जे में रही है और यहां से चौधरी मतीन अहमद विधायक चुनकर विधानसभा में जाते रहे हैं। इस सीट पर 1993 में जनता दल के टिकट पर चौधरी मतीन अहमद ने भाजपा के जयकिशन दास गुप्ता को 1 हजार 438 वोट से हराया था। 1998 में मतीन अहमद ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और भाजपा के दाताराम को 16 हजार 375 वोट से हराया था। 2003 में मतीन अहमद ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा के संजय जैन को 21 हजार 712 वोट से हराया। वहीं 2008 में फिर से मतीन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और भाजपा के सीताराम गुप्ता को 26 हजार 274 वोट से हराया। 2013 में मतीन ने फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा के कौशल मिश्रा को 21 हजार 728 वोट से हराया। 2015 की आम आदमी पार्टी की आंधी में कांग्रेस के मतीन अहमद का विकेट उखड़ गया। मतीन तीसरे स्थान पर पहुंच गए और आम आदमी पार्टी के मोहम्मद इशराक ने भाजपा के संजय जैन को 27 हजार 887 वोट से हराकर यह सीट आम आदमी पार्टी की झोली में डाल दी थी।
सीलमपुर से मुस्लिम उम्मीदवार पर विचारः
सीलमपुर विधानसभा क्षेत्र में 1993 से लगातार पटखनी खाती आ रही भारतीय जनता पार्टी इस बार यहां से शाजिया इल्मी पर दांव लगाने पर विचार कर रही है। अब तक हुए छह चुनाव में पार्टी ने यहां से हिंदू उम्मीदवार ही उतारे हैं। इस बार पार्टी अपने कैटर वोट को साथ लेकर आप और कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने पर विचार कर रही है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को उम्मीद है कि यह प्रयोग सीलमपुर सीट पर सफल हो सकता है। कारण है कि इस बार भी कांग्रेस में ज्यादा दम नहीं है और आम आदमी पार्टी का ग्राफ भी 2015 के मुकाबले कुछ गिरा है।