जामा मस्जिद यानी मस्जिद-ए-जहां नुमा

यादों के झरोखे से . . . . . . .

पूनम सिंह/ नई दिल्ली
राजधानी में ऐसी बहुत सी इमारतें हैं जिनके पीछे की कहानियां बेहद दिलचस्प हैं। मुगलकाल से पहले की तो ऐसी इमारतें हैं ही, मुगलकाल में भी ऐसी बहुत सी इमारतें बनवाई गईं, जो आज भी अपनी आलीशान विरासत को संभाले हुए हैं। उन्हीं में से एक है जामा मस्जिद। बहुत कम लोग ही होंगे जो यह जानते हों कि जामा मस्जिद का असली नाम कुछ और है। जी हां, जब इसका निर्माण हुआ तब इसे जामा मस्जिद के नाम से नहीं जाना जाता था। करीब-करीब लाल किला के सामने स्थित जाम मस्जिद यों तो कई बार धरना-प्रर्शनों को लेकर भी चर्चा में रहती है। लेकिन इससे पहले शाही इमाम अहमद बुखारी के बयानों को लेकर भी यह कई बार चर्चा में रही है। दिल्ली की जामा मस्जिद को शाही मस्जिद भी कहा जाता है।
यहां हम आपको देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक और मशहूर दिल्ली की जामा मस्जिद का इतिहास बता रहे हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद को मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था। इस मस्जिद के निर्माण का काम वर्ष 1650 में शुरू हुआ था और यह 1656 में बनकर तैयार हुई थी। करीब छह साल में बनकर तैयार हुई इस मस्जिद के बरामदे में करीब 25 हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। इस मस्जिद का उद्घाटन बुखारा (जो कि वर्तमान समय में उज्बेकिस्तान में है) के इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी ने किया था।
जामा मस्जिद का वास्तविक नामः ‘मस्जिद-ए-जहां नुमा’ है। इसका अर्थ ‘दुनिया को नजरिया देने वाली मस्जिद’ होता है। इतिहासकारों का कहना है कि जामा मस्जिद को पांच हजार से ज्यादा मजदूरों ने मिलकर बनाया था। इसे बनवाने पर उस समय करीब 10 लाख रुपये का खर्च आया था। इसमें प्रवेश के लिए तीन बड़े दरवाजे हैं। मस्जिद में दो मीनारें हैं जिनकी ऊंचाई 40 मीटर (करीब 131.2 फुट) है। पाकिस्तान के लाहौर में बनी बादशाही मस्जिद भी दिल्ली की जामा मस्जिद से मिलती जुलती है। बादशाही मस्जिद के वास्तुशिल्प का काम शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने किया था।
दिल्ली की जामा मस्जिद का निर्माण कार्य सदाउल्लाह खान की देखरेख में किया गया। जो उस समय शाहजहां के शासन में वजीर (प्रधानमंत्री) के रूप में कार्यरत थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जीत हासिल करने के बाद अंग्रेजों ने जामा मस्जिद पर कब्जा कर लिया था और वहां अपने सैनिकों का पहरा लगा दिया था। इतिहासकारों के मुताबिक अंग्रेज शहर को सजा देने के लिए मस्जिद तोड़ना चाहते थे। लेकिन दिल्ली वालों के विरोध के चलते अंग्रेजों को झुकना पड़ा था।
यह मस्जिद लाल और संगमरमर के पत्थरों से बनाई गई है। लाल किले से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित यह मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। जामा मस्जिद में उत्तर और दक्षिण के द्वारों से ही प्रवेश किया जा सकता है। पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार के दिन खोला जाता है। बताया जाता है कि सुल्तान केवल पूर्वी द्वारा का प्रयोग करते थे। इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला महराब अन्य सभी मेहराबों से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबदों को सफेद और काले संगमरमर के पत्थरों से सजाया गया है जो कि निजामुद्उद्दीन की दरगाह की याद दिलाते हैं।
चौड़ी सीढियां और मेहराबदार प्रवेश द्वार इस मशहूर मस्जिद की विशेषताएं हैं। पश्चिम की दिशा में मुख्य प्रार्थना कक्ष में ऊंचे ऊंचे मेहराब सजाए गए हैं। यह 260 खम्भों पर है और इनके साथ लगभग 15 संगमरमर के गुम्बद विभिन्न ऊंचाइयों पर हैं। दक्षिण की मीनारों का परिसर 1076 वर्ग फुट चौड़ा है। दिल्ली की जामा मस्जिद को आगरा में स्थित मोती मस्जिद की एक अनुकृति भी कहा जाता हैं। इसकी वास्तुकला शैली के अंदर हिन्दु और मुस्लिम दोनों ही तत्वों का समावेश है।
निजाम ने कराई मरम्मतः
समय के साथ जामा मस्जिद की इमारत कुछ जर्जर होती गई। साल 1948 में हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान से मस्जिद के एक चौथाई हिस्से की मरम्मत के लिए 75 हजार रुपये मांगे गए थे। लेकिन निजाम ने उस समय तीन लाख रुपये आवंटित करते हुए कहा था कि मस्जिद का कोई भी हिस्सा पुराना नहीं दिखना चाहिए।
झेले कई आतंकी हमलेः
अंग्रेजों के समय में ही नहीं बल्कि जामा मस्जिद ने बाद के समय में भी झटके खाए हैं। 14 अप्रैल 2006 के दिन शुक्रवार को जुमे की नमाज के ठीक बाद आतंकियों ने एक के बाद एक दो धमाके हुए थे। यह धमाके किय तरह हुए, इसका पता नहीं चल पाया था। इस घटना में नौ लोग घायल हुए थे। फिर नवंबर 2011 में दिल्ली पुलिस ने इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया तो पता चला कि वह लोग इंडियन मुजाहिद्दीन से ताल्लुक रखते थे। 15 सितंबर 2010 को एक मोटरसाइकिल पर आए बंदूकधारियों ने मस्जिद के गेट नंबर 3 पर खड़ी बस पर फायरिंग करना शुरू कर दिया। इस घटना में दो ताइवानी पर्यटक घायल हुए थे।