-बदला-बदला नजर आ रहा धरती का स्वर्ग
-अलग हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख
-अब केंद्र के हाथों में प्रदेशों की बागडोर
टीम एटूजेड/नई दिल्ली
बुधवार-गुरूवार की रात को जम्मू-कश्मीर से लद्दाख अलग हो गया। जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब दो केंद्र शासित प्रदेश हो गए हैं। आजाद भारत के 70 साल के इतिहास में यह पहला और ऐतिहासिक दिन है जब इन दो राज्यों में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू हो गया है। मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 की ताकतों खत्म करते हुए 31 अक्टूबर से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग राज्य बनाने का निर्णय किया था।
मुख्यमंत्री सहित 11 मंत्रीः
नए कश्मीर राज्य की विधानसभा में विधायकों की संख्या 107 होगी। इसे परिसीमन के द्वारा बढ़ाकर 114 तक किया जा सकता है। 10 फीसदी के हिसाब से अब जम्मू कश्मीर राज्य में मुख्यमंत्री सहित 11 मंत्रियों का मंत्रीमंडल हो सकता है। खास बात यह है कि राज्य की पुलिस अब सीधे गृह मंत्रालय के अधीन हो गई है।
किए गए यह बदलावः
–अब तक पूर्ण राज्य रहा जम्मू-कश्मीर गुरुवार 31 अक्टूबर से दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बंट गया। जम्मू-कश्मीर का इलाका अलग और लद्दाख का इलाका अलग-अलग दो केंद्र शासित प्रदेश बन गए हैं।
–जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन कानून के तहत लद्दाख को अब बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को विधानसभा सहित केंद्र शासित प्रदेश बनाया है।
–अब तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का पद होता था। लेकिन अब दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में उप-राज्यपाल की तैनाती की गई है। जम्मू-कश्मीर के लिए गिरीश चंद्र मुर्मू और लद्दाख के लिए राधा कृष्ण माथुर को उपराज्यपाल बनाया गया है।
–अभी दोनों राज्यों का एक ही हाईकोर्ट होगा लेकिन दोनों राज्यों के एडवोकेट जनरल अलग-अलग बनाए गए हैं। सरकारी कर्मचारियों को दोनों केंद्र शासित राज्यों में से किसी भी एक को चुनने का विकल्प दिया गया है।
–अब तक जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर केंद्रीय कानून लागू नहीं होते थे। केंद्र शासित राज्य बन जाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों राज्यों में कम से कम 106 केंद्रीय कानून लागू हो गए हैं।
–जमीन और सरकारी नौकरी पर अब तक केवल राज्य के स्थाई निवासियों का अधिकार था। धारा 35-ए के हटने के बाद अब केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में जमीन से जुड़े कम से कम 7 कानूनों में बदलाव होगा।
–राज्य पुनर्गठन कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के ऐसे करीब 153 कानून खत्म हो गए हैं। जिन्हें राज्य के स्तर पर बनाया गया था। दोनों केंद्र शासित राज्यों में 166 कानून अब भी लागू रहेंगे।
प्रशासनिक और राजनैतिक व्यवस्था में हुए बड़े बदलावः
–जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाने के साथ यहां विधानसभा भी रखी गई है। पहले जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता था। लेकिन अब भारत के दूसरे राज्यों की तरह इस विधानसभा का कार्यकाल भी 5 साल का ही होगा।
–जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अब अनुसूचित जाति के साथ अनुसूचित जनजाति के लिए भी सीटें आरक्षित होंगी।
–अब तक जम्मू कश्मीर की कैबिनेट में 24 मंत्री बनाए जा सकते थे। अब यहां दूसरे राज्यों की तरह कुल सदस्य संख्या के 10 फीसदी से अधिक मंत्री नहीं बनाए जा सकेंगे।
–जम्मू कश्मीर विधानसभा में पहले विधान परिषद होती थी लेकिन अब विधान परिषद नहीं होगी। राज्य की लोकसभा और विधानसभा की सीटों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
–पहले की तरह केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर राज्य से 5 और केंद्र शासित लद्दाख राज्य से एक लोकसभा सांसद चुन कर आएगा। केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर राज्य से पहले की तरह राज्यसभा के लिए 4 सांसद चुनकर आएंगे।
शुरू होगी परिसीमन की प्रक्रियाः
चुनाव आयोग के द्वारा अब राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसके तहत आबादी के साथ भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा। अब तक जम्मू कश्मीर में 87 सीटों पर चुनाव होता था। इनमें 4 लद्दाख की सीटें शामिल थीं। कश्मीर की 46 और जम्मू की 37 शीट शामिल होती थीं। लेकिन अब लद्दाख की 4 सीट अलग हो गई हैं। अतः जम्मू-कश्मीर में 83 सीट बची हैं। अतः राज्य में अब 83 सीटों का परिसीमन होना है।
बढ़ सकती है विधानसभा की सीटेंः
माना जा रहा है कि प्रस्तावित परिसीमन के तहत केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में 7 सीटें बढ़ सकती हैं। 7 सीटें बढ़ने के बाद राज्य में कुल 90 सीटें हो जाएंगी। बताया जा रहा है कि यह 7 सीट जम्मू क्षेत्र में बढ़ाई जाएंगी। बार-बार यह बात उठती रही है कि राज्य की विधानसभा में जम्मू संभाग को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। जम्मू क्षेत्र की आबादी करीब 69 लाख है। जबकि यहां विधानसभा की केवल 37 सीटें हैं। वहीं कश्मीर घाटी की आबादी करीब 53 लाख है जबकि यहां से विधानसभा की 43 सीट हैं।
केंद्र शासित राज्य के गठन के साथ ही पीएम मोदी के नए कश्मीर के नारे वाले जम्मू कश्मीर की शुरूआत हो गई है। ंमाना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर को अब उस खूनखराबे से मुक्ति मिलेगी जिसमें पाकिस्तान और उसके एजेंटों ने कश्मीर को झोंक रखा है।
जम्मू कश्मीर के दौरे पर आए यूरोपीय सांसदों ने राज्य के हालातों को ठीक पाया है। उन्होंने कहा कि धारा-370 भारत का आंतरिक मसला है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे दौरे को राजीनतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। आतंकवाद के मुद्दे पर सभी देश भारत के साथ हैं। हालांकि भारत और पाकिस्तान को आपस में बात करनी चाहिए।
मंगलवार को यूरोपीय संसद के 23 सांसद श्रीनगर गए थे। उन्होंने वहां स्थानीय नेताओं, सरपंचों और अधिकारियों से मुलाकात की थी। यह सांसद श्रीनगर की मशहूर डल झील भी गए। सेना ने इन सांसदों को कश्मीर के बारे में एक प्रेजेंटेशन भी दिया। कश्मीर जाने से पहले यूरोपीय सांसदों ने पीएम मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की थी।