संपादकीयः नहीं आती शर्म… पीड़ा बड़ी या धर्म!

सबसे बड़ा सवाल! मुस्लिम मरे तो लिंचिंग और हिंदू मरे तो चुप्पी क्यों?

तबरेज अंसारी के नाम खूब राजनीति हो रही है। सभी धर्मों के लोग इस घटना की निंदा कर रहे हैं। लेकिन कुछ खास मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम परस्त राजनीतिक दलों को तबरेज के नाम पर राजनीतिक मसाला मिल गया है। फिर से टुकड़े-टुकड़े, मोमबत्ती और अवार्ड वापसी गैंगों के लोग सक्रिय हो गए हैं। किसी भी तरह से मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराने में जुटे हैं। हर रोज, हर घड़ी नए-नए बयान आ रहे हैं। कुछ खास नेता इस घटना में फिर से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में जुटे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि यदि मुस्लिम मरता है तो ‘लिंचिंग’ और हिंदू मरे तो सारे गैंग चुप्पी साध लेते हैं। यह कैसा सेकुलरिज्म है?
भारतीय कानून किसी को भी मारने या उत्पीड़ित करने की इजाजत नहीं देता। लेकिन भारत में यह फैषन बनता जा रहा है कि जैसे ही एक धर्म विषेष के किसी व्यक्ति के साथ कोई घटना होती है तो खास गैंग के लोग सड़कों पर उतरकर विरोध में ष्षामिल हो जाते हैं। छाती पीट-पीटकर दर्द का ढिंढोरा पीटने लगते हैं। देश में आपातकाल की बात करने लगते हैं। यह वही लोग हैं जिन्हें अखलाक और पहलू खान तो याद रहते हैं लेकिन दिल्ली के बसई दारापुर का धु्रव त्यागी हत्याकांड याद नहीं रहता।
मुसलमानों के सबसे बड़े रहनुमा होने का दावा करने वाले असदुद्दीन आवैसी ने फिर एक बार अपनी जहरीली जुबान खोली है। उन्होंने प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए कहा कि ‘प्रधानमंत्री को शाहबानो तो याद हैं, लेकिन तबरेज अंसारी, पहलू खान और अखलाक याद नहीं हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘आप मुसलमानों को आरक्षण क्यों नहीं देते, हम गटर में हैं तो हमें इससे ऊपर उठाईये।’
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री के बयान का उल्लेख किया था। जिसमें कांग्रेस के पूर्व मंत्री ने कहा था कि ‘मुसलमानों के उत्थान की जिम्मेदारी उनकी नहीं है, यदि वो गड्ढे में पड़े रहना चाहते हैं तो पड़ा रहने दिया जाए।’ जबकि मोदी सरकार ने जो योजनाएं देश में शुरू की हैं वह सभी के लिए हैं। हिंदू और मुसलमान समान रूप से इन योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं।
असदुद्दीन और उन्हीं जैसे दूसरे मौकापरस्त नेताओं का तबरेज खान पर छाती पीटना और इस पीड़ा को धर्म विशेष के साथ जोड़ना कुछ अखरता है। झारखंड की तबरेज अंसारी से जुड़ी घटना के पीछे का सच वहां की पुलिस को पता है। स्थानीय पुलिस का कहना है कि तबरेज पेशेवर चोर था और उसके ऊपर वाहन चुराने का आरोप है। हालांकि फिर भी उसके साथ जो हुआ, इसकी इजाजत भारतीय कानून नहीं देता और जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कानून अपना काम कर रहा है।
दिल्ली के बसई दारापुर में धु्रव त्यागी की हत्या एक धर्म विशेष के लोगों के द्वारा की गई थी। त्यागी का दोष यह था कि वह अपराधियों के सामने उनकी बेटी के साथ छेड़छाड का विरोध कर रहे थें। इसके लिए जहांगीर खान, जहांगीर के तीन बेटों, उसकी पत्नी, बहन कुछ लोगों ने त्यागी को सरेआम चाकुओं से गोदकर मार डाला। त्यागी को बचाने आए उनके बेटे अनमोल पर भी हत्यारों ने चाकुओं से गोदकर गंभीर रूप से घायल कर दिया था।
आश्चर्य की बात है कि तबरेज की हत्या पर फेसबुक, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दूसरे मंचों पर बयानबाजी करने वालों में से एक भी बयानबाज ने उस घटना पर दुख नहीं जताया था। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं के हलक सूख गए सूख गए थे। असदुद्दीन ओवैसी और अबू आसिम आजमी जैसे नेता उस घटना पर बोलने से बचने के लिए भूमिगत हो गए थे।
क्योंकि भीड़ के गुस्से का निशाना बनने वाले का नाम ‘तबरेज’ है तो यह सारे नेता कुकरमुत्तों की तरह गली गली में उग आए हैं। धर्म विशेष ही नहीं पार्टी विशेष के प्रति जहर उगलने में लगे हैं। ज्यादातर हिंदुस्तानी गंगा-जमुनी तहजीब को समझते हैं। बस इन कट्टरपंथियों और जहर उगलने वालों को यह समझाना होगा कि भारत में सदियों से हिंदू-मुसलमान एक साथ मिलकर रहते आ रहे हैं। अपनी-अपनी जगह धर्म और पीड़ा दोनों बड़े हैं। जो आग लगाने का काम करते हैं उन्हें शर्म आनी चाहिए। क्योंकि गांव-देहात में एक-दूसरे को आज भी मुसलमान ‘राम राम’ और हिंदू ‘सलाम’ कहते हैं। जरूरत है एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलने वालों को रोकने की।