-पहली बार सीएम का चेहरा बनाने पर भाजपा, कांग्रेस और आप को मिला झटका
-अरविंद केजरीवाल को भी नहीं मिला था ‘सीएम का चेहरा’ बनने पर बहुमत!
-फेल हो चुके भाजपा के मलहोत्रा, सुषमा, हर्ष वर्धन और किरण बेदी जैसे चेहरे
-पहली बार कांग्रेस का चेहरा बने अजय माकन को भी मिल चुकी शिकस्त
इसे राजधानी दिल्ली की आबोहवा का असर कहें या सियासी अभिशाप कि किसी भी राजनीतिक दल के सीएम के चहरे का जादू पहली बार में नहीं चल सका। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तीनों ही असफल रहे हैं। एक बार सीएम बनाने के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोबारा हुए चुनावों में जरूर सफल रहे। लेकिन इस मामले में भाजपा को दिल्ली में कभी मौका नहीं मिल सका। भाजपा ने अब तक शुषमा स्वराज, विजय कुमार मलहोत्रा, डॉ हर्ष वर्धन और किरण बेदी को चुनावों में अपना सीएम का चेहरा बनाया लेकिन असफल रही।
कांग्रेस ने पहली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को अपना सीएम का चेहरा बनाया लेकिन वह भी असफल रही। ऐसा ही आम आदमी पार्टी के साथ हुआ। 2013 में आप ने अरविंद केजरीवाल को अपना सीएम का चेहरा बनाया लेकिन वह पूर्ण बहुमत तक नहीं पहुंच सकी। यह बात अलग है कि उसने पहली बार में ही कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली थी।
दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 27 मार्च 1952 कों हुए थे। तब दिल्ली विधानसभा में कुल 48 सीट होती थीं। कांग्रेस ने 47 सीट पर चुनाव लड़ा और 39 सीट पर जीत दर्ज की थी। तब भारतीय जन संघ 31 सीट पर चुनाव लड़कर 5 सीट जीता था। सोशलिस्ट पार्टी को 2, अखिल भारतीय हिंदू महासभा को 1 और निर्दलीय के खाते में एक सीट गई थी। इस लिहाज से कांग्रेस के चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने थे। 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया और चुनाव व्यवस्था बंद कर दी गई।
इसके लंबे अंतराल के बाद 1992 में संविधान में 69 वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया। 1993 में दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्गीय मदन लाल खुराना के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। पार्टी ने तब किसी को भी अपना मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था। कांग्रेस ने भी इस चुनाव में किसी को अपना मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया। 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीट जीत कर सरकार बनाई थी। कांग्रेस को 14 सीट हासिल हुई थीं। जनता दल को 4 और निर्दलीयों को 3 सीट पर जीत हासिल हुई। तब मुदन लाल खुराना को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया।
लेकिन 1998 में महंगी प्याज के मुद्दे पर भाजपा की सरकार चली गई थी। 1998 में कांग्रेस ने 52 सीट जीतकर सरकार बनाई थी। भाजपा को केवल 15 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। 1998 में भी कांग्रेस बिना किसी सीएम के चेहरे के चुनाव मैदान में उतरी थी। हालांकि बीजेपी ने तब सुषमा स्वराज को सीएम का चेहरा बनाया था। लेकिन बीजेपी को इस चुनाव में कांग्रेस के हाथों करारी शिकस्त मिली और विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सीएम का चेहरा उतारना असफल साबित हुआ। 1998 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पहली बार कांग्रेस ने शीला दीक्षित को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद उन्होंने लगातार 15 साल दिल्ली पर राज किया।
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर 47 सीट जीतकर भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई। भाजपा को इस बार 20 सीट हासिल हुईं और 3 सीट एनसीपी, जनता दल सेक्युलर और निर्दलीय के खातों में गईं। इस बार बीजेपी ने विजय कुमार मलहोत्रा को अपना सीएम का चेहरा बनाया, लेकिन बीजेपी का सीएम का चेहरा एक बार फिर सियासी मैदान में पिट गया। जबकि कांग्रेस ने पहले से सीएम चली आ रही शीला दीक्षित को ही इस पद के लिए पेश किया था। शीला दींक्षत एक बार फिर सीएम बनीं।
2008 में भी कांग्रेस ने 43 सीट जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई और भाजपा को इस बार 23 सीट हासिल हुईं। इस बार बहुजन समाज पार्टी ने दिल्ली में 2 सीट जीतकर खाता खोला। 1 सीट रामबिलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और एक 1 सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। एक बार फिर से बीजेपी ने विजय कुमार मलहोत्रा को अपना सीएम का चेहरा बनाया और वह असफल रहे।
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी ने अपने-अपने सीएम के चेहरे बनाकर चुनाव लड़ा। पहली बार दिल्ली में लोगों के सामने मुख्यमंत्री के तीन चेहरे उतारे गए। कांग्रेस ने शीला दीक्षित, भाजपा ने डॉ हर्ष वर्धन तो आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल को अपना सीएम का चेहरा बनाया। लेकिन इस बार चुनाव के नतीजे त्रिशंकु विधानसभा के आए। भाजपा ने सबसे ज्यादा 31 सीट पर जीत हासिल की। लेकिन वह सरकार बनाने के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। आम आदमी पार्टी ने 28 और कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत हासिल की। अंततः आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से 49 दिन की सरकार बनाई। इस बार आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की शीला दीक्षित के तिलस्म को तोड़ दिया।
2015 में फिर से सीएम के तीन चेहरेः
दिल्ली विधानसभा चुनाव में 2015 में एक बार फिर से मुख्यमंत्री के तीन चेहरे उतारे गए। आप की ओर से केजरीवाल तो भाजपा की ओर से किरण बेदी और कांग्रेस की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को सीएम का चेहरा बनाया गया। लेकिन भाजपा और कांग्रेस को इस बार भी सफलता हाथ नहीं लगी। इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ। पार्टी का सारा वोट बैंक आम आदमी पार्टी की ओर शिफ्ट हो गया। आप ने 67 और भाजपा ने 3 सीट जीतीं। कांग्रेस इस बार खाता भी नहीं खोल सकी। क्योंकि अरविंद केजरीवाल पहले से दिल्ली के मुख्यमंत्री थे, अतः वह मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में अपनी पार्टी की ओर से सफल रहे।
भाजपा के नाम तीन मुख्यमंत्री देने का रिकॉर्डः
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का पांच साल का केवल एक कार्यकाल ही रहा है। लेकिन दिल्ली में एक कार्यकाल में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री देने का रिकॉर्ड भाजपा के नाम पर है। 1993 से 198 के बीच भाजपा सरकार के दौरान पार्टी ने दिल्ली वालों को तीन मुख्यमंत्री दिए। इनमें मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज के नाम शामिल हैं। यह तीनों ही दिवंगत हो चुके हैं। 1993 में विधानसभा चुनाव में जीत के बाद स्वर्गीय मदन लाल खुराना को एनसीटी दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया था।
जैन हवाला में नाम आने पर दिया इस्तीफाः
मशहूर जैन हवाला कांड के मुख्य आरोपी जैन की डायरी में मदन लाल खुराना का नाम आने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया था। कुछ दिन पश्चात खुराना को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई। लेकिन उनके लिए साहिब सिंह वर्मा ने मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा। पार्टी में झगड़े को बढ़ता देख भाजपा ने बीच का रास्ता निकाला और साहिब सिंह वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस तरह बीजेपी ने पांच साल के एक कार्यकाल में दिल्ली को तीन मुख्यमंत्री दे दिए।
कांग्रेस ने दिया तीन कार्यकाल में एक मुख्यमंत्रीः
दिल्ली में अब तक सबसे ज्यादा सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस ने 1998 से 2013 तक इंद्रप्रस्थ का सिंहासन संभाला है। पार्टी ने 1998 में शीला दीक्षित को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था। इसके पश्चात पार्टी 2003 और 2008 का चुनाव जीती। समय के साथ मंत्रियों के पदों में बदलाव किए गए लेकिन कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के पद पर उसने कोई बदलाव नहीं किया। इस तरह पांच-पांच साल के तीन कार्यकाल में कांग्रेस ने दिल्ली वालों को एक मुख्यमंत्री दिया है।