दिल्ली कांग्रेसः बागी को ‘फ्रंटल संगठनों’ की कमान

-अप्रैल 2017 में अरविंदर लवली के साथ ज्वाइन की थी भाजपा
–अमित मलिक को बनाया युवक कांग्रेस व एनएसयूआई का इंचार्ज
-दिल्ली प्रदेश कांग्रेस संगठन में सुलगने लगी विरोध की चिंगारी

टीम एटूजेड/ नई दिल्ली
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में एक बार फिर बगावत का दौर शुरू हो सकता है। पार्टी अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने दिल्ली प्रदेश युवक कांग्रेस और एनएसयूआई की कमान ऐसे व्यक्ति को सोंपी है, जो हाल ही में पार्टी से बगावत कर चुके हैं। पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली के साथ मिलकर कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में जाकर वापस आने वाले अमित मलिक को पार्टी के फ्रंटल संगठनों की कमान सोंपी गई है। मंगलवार 3 दिसंबर को इसकी घोषणा पार्टी संगठन की ओर से की गई।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि प्रदेश नेतृत्व के इस कदम से पार्टी को दिल्ली में मजबूत करने में समस्या आ सकती है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी में ऐसे कई नेता हैं जिन्हें अब तक कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। जबकि पार्टी छोड़कर जाने और पार्टी के नेताओं के ऊपर गंभीर आरोप लगाने वालों को वरीयता दी जा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि जो आरोप लगाकर अरविंदर सिंह के साथ अमित मलिक ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की थी। अब उसी अनदेखी का आरोप पार्टी के दूसरे नेता पार्टी के वर्तमान प्रदेश नेतृत्व पर लगा रहे हैं।
अमित मलिक ने कांग्रेस छोड़कर 18 अप्रैल, 2017 मंगलवार को अमित शाह के सामने भाजपा ज्वाइन की थी। उस समय कांग्रेस छोड़ भाजपा में पहुंचे दोनों नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए थे। भाजपा में पहुंचे दोनों नेताओं ने तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व पर नगर निगम चुनाव में टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए कहा था कि दिल्ली में कांग्रेस संगठन मृत अवस्था में है। दिल्ली में नगर निगम चुनाव के लिए मतदान होने से ठीक एक सप्ताह पहले दोनों नेताओं ने भाजपा ज्वाइन की थी। इसके बाद निगम चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस संगठन के नेताओं में पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली को लेकर इतनी चर्चा नहीं है, जितनी कि अमित मलिक को जिम्मेदारी देने के बाद शुरू हो गई है। क्योंकि तब दोनों नेताओं ने कहा था कि ‘‘द चाइल्ड हैड डाइड, द पार्टी इज फिनिश्ड’’। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पहले ही संघर्षरत है, ऐसे में पार्टी के अंदर ही प्रदेश नेतृत्व के फैसलों पर सवाल उठने से संगठन को मजबूत बनाने पर असर पड़ सकता है।