‘‘हाई कमान की गलती को सुधारना मतदाता का कर्तव्य’’:उपाध्याय
बीजेपी संगठन के कार्यकर्ता कैसी भी परिस्थिति रही हो अपना वोट बीजेपी को दे ही देते हैं। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण में जिस प्रकार लेनदेन व फर्जीवाड़े की बातें सामने आ रही हैं, अंततः पार्टी के समर्पित व निष्ठावान कार्यकर्ताओं का मन डगमगा गया है। बड़ी संख्या में भाजपाई सोशल मीडिया पर जनसंघ-भाजपा के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की डायरी से एक टिप्पणी उद्धृत (कोट) कर बीजेपी उम्मीदवारों को वोट न देने की अपील कर रहे हैं। बकौल उनके 11 दिसंबर 1961 को दीनदयाल जी ने अपनी पॉलिटिकल डायरी में कहा है कि “कोई बुरा प्रत्याशी केवल इसलिए आपका मत पाने का दावा नहीं कर सकता कि वह किसी अच्छे दल की ओर से खड़ा है। दल के हाईकमान ने ऐसे व्यक्ति को टिकट देते समय पक्षपात किया होगा, अतः ऐसी गलती को सुधारना मतदाता का कर्तव्य है”।
यानि स्पष्ट है कि कार्यकर्ता दीनदयाल जी को सम्मान देते हुए अपने ‘खराब’ उम्मीदवार को हरा दें। वास्तव में घोषित उम्मीदवार इस कदर तंगदिल व स्वार्थी हैं कि भाजपा कार्यकर्ताओं की नजर में उनके प्रति सम्मान नहीं रहा है। उदाहरण के लिए, चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार को अपना वैकल्पिक उम्मीदवार (कवरिंग कैंडिडेट) का नामांकन भी दाखिल करना होता है। ताकि मूल उम्मीदवार के नामांकन में त्रुटि पाई जाए तो वैकल्पिक उम्मीदवार पार्टी की ओर से चुनाव लड़े। काफी वर्षों तक पार्टी मूल एवं वैकल्पिक दोनों उम्मीदवारों का नाम तय करती थी, सामान्यतः उस सीट पर दूसरे प्रमुख दावेदार जिसको टिकट नहीं दे पाए का नाम होता था। परन्तु अब बीजेपी उम्मीदवार ऐसा नहीं करते, वह अपनी पत्नी- बेटा या परिवार से ही कवरिंग कैंडिडेट भरवाते हैं। भले ही उनका उस पार्टी से कोई संबंध नहीं हो। उनका तर्क होता है कि माल हम खर्चें, भाग-दौड़ हम करें, नेताओं की फटीक हम भुगतें और नामांकन रद्द हो गया तो सारी मलाई दूसरा क्यों खाए। यह मानसिकता बीजेपी के लिए गिरावट का संकेत है। स्पष्ट है कि टिकट वितरण उम्मीदवार के पार्टी के लिए कार्य-समर्पण-निष्ठा या जनसेवा के आधार पर नहीं बल्कि माल-सेवा के आधार पर हुआ है। और पार्टी भी गर्व से ऐसा कर रही है कि धनसेवा व बाहुबल के चलते बलात्कार या अपराध के आरोपी को पत्नी के नाम पर उम्मीदवारी दे देती है।
बीजेपी नेता गृह मंत्री अमित शाह की हिम्मत और हौंसला अफजाई का जबाब नहीं, राष्ट्रवाद का परचम लहराने के लिए वह अपनी बहू से बलात्कार के आरोपी पूर्व बीजेपी विधायक के साथ मंच सांझा कर सकते हैं, दहेज प्रताड़ना के लिए आरोपित उसकी पत्नी को बीजेपी उम्मीदवार बना सकती है। जब देश के गृहमंत्री के साथ बलात्कार आरोपी बगलगीर होगा तो दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी की क्या हिम्मत कि वह आरोपियों के खिलाफ बलात्कार एवं दहेज उत्पीड़न की निष्पक्ष जांच की हिम्मत कर सके। वह भी एक मामूली सरकारी स्कूल की शिक्षिका की बेटी के साथ हुए बलात्कार की जांच! नामुमकिन है।
राष्ट्रवाद को समर्पित बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा के 67 उम्मीदवारों में में बलात्कार आरोपी, बलात्कार आरोपी की दहेज उत्पीड़न आरोपी पत्नी, कत्ल आरोपी का भाई, ठगी व धोखाधड़ी 420 का आरोपी, हथियार से जानलेवा हमले के आरोपी, जुआ सहित अपराधिक मामलों में नामजद 25 रंगीन लोगों को उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के 47 उम्मीदवार करोड़ोंपति हैं, जाहिर है साधारण कार्यकर्ता की दुहाई भाषणों तक ही सीमित है। असलियत में माल होगा तो ही बीजेपी का टिकट मिलेगा। गरीब व मध्यम वर्ग के कार्यकर्ताओं के लिए अब पद व टिकट उनकी पहुंच से बाहर है। पार्टी को अब वर्षों से पार्टी के लिए संघर्षरत पुराने निष्ठावान जमीनी कार्यकर्त्ताओं की खास जरूरत नहीं है। क्योंकि मालदार को टिकट देने से काम करने वाले तो पेड यानि पैसा फेंकने से मिल ही जाएंगे। स्वच्छ छवि, जनसेवा, शिक्षित की भाजपा की कसौटी अब आउटडेटिड हो गई है। इसीलिए पार्टी के 28 उम्मीदवार तो ऐसे हैं जिनकी सांसे स्कूली पढ़ाई में ही फूल गई। यह अलग बात है कि उम्मीदवार भले ही 8 वीं, 9 वीं, 10 वीं हो पर हैं करोड़ोंपति। इसी गुण की नई बीजेपी में आज सबसे ज्यादा मांग है।
(लेखक पूर्व निगम पार्षद, नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व चेयरमैन, राजनीतिक विश्लेषक और लोक शिल्पी व रंग बदलती दिल्ली नामक पुस्तकों के लेखक हैं)