दिल्लीः कांग्रेस में चार अध्यक्ष… बढ़ी गुटबाजी

जाट-गुर्जर और पूर्वांचल के नेताओं में नाराजगी
दलित नेताओं में भी पार्टी के निर्णय के प्रति रोष

टीम एटूजैड/नई दिल्ली
कांग्रेस आलाकमान भले ही शीली दीक्षित को 20 साल बाद दिल्ली कांग्रेस की कमान थमाकर अच्छे नतीजों का इंतजार कर रही हो, लेकिन चार अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी बयार तेजी से बहने लगी है। गुटबाजी और विरोध फिलहाल खुलकर सामने नहीं आ रहा है, लेकिन विरोध की चिंगारी धीरे धीरे सुलगने लगी है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस में शीला दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर ज्यादा विरोध नहीं है, लेकिन हारून यूसुफ को लेकर पार्टी के मुस्लिम नेताओं, राजेश लिलोठिया को लेकर दलित नेताओं, देवेंद्र यादव को लेकर प्रदेश कांग्रेस के गुर्जर व जाट नेताओं में भारी नाराजगी है।

तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाने पर बिखराव
प्रदेश कांग्रेस में तीन कार्यकारी अध्यक्षों के नाम पर बिखराव शुरू हो गया है। हारून यूसुफ, देवेंद्र यादव और राजेश लिलोठिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के साथ ही दूसरे नेताओं में नाराजगी के स्वर उभरने लगे हैं। कांग्रेसी सूत्र बताते हैं कि पार्टी नेताओं में ज्यादा नाराजगी इस बात को लेकर है कि पार्टी नेतृत्व ने इस मामले में कई वरिष्ठ नेताओं को अनदेखा करने के साथ ही जातिगत और क्षेत्रवादी समीकरणों का ध्यान भी नहीं रखा है। आने वाले दिनों में देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कांग्रेस को दिल्ली में एक बार फिर मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।

हारून यूसुफः
प्रदेश कांग्रेस में हारून यूसुफ को तीन में से एक कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन पार्टी के मुस्लिम नेताओं में इस बात को लेकर नाराजगी है कि भले ही वह प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के साथ कई साल मंत्री रहे हैं। लेकिन मुस्लिम कम्युनिटी में उनकी बहुत ज्यादा पैठ नहीं है। पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि उनसे ज्यादा समर्थक तो चौधरी मतीन अहमद, आसिफ खान, शुएब इकबाल और हसन अहमद के साथ हैं। दिल्ली का ज्यादातर मुस्लिम मतदाता इस समय आम आदमी पार्टी के साथ है। हारून यूसुफ पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन के साथ भी रहे, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में विशेष उत्साह नहीं भर पाए।

देवेंद्र यादवः
देवेंद्र यादव दिल्ली की यादव कम्युनिटी से हैं। पार्टी ने उनके रूप में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी यादव-गुर्जर-जाट और स्थानीय यानी गांव-देहात के नेतृत्व को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। यादव दो बार विधायक और एक बार निगम पार्षद रह चुके हैं। वह शीला दीक्षित के करीबी माने जाते हैं लेकिन पार्टी के गांव-देहात के कार्यकर्ताओं में उतनी स्वीकार्यता नहीं है, जितनी होनी चाहिए। दूसरी ओर वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार के जेल जाने के बाद पार्टी में जाट या गूजर जाति के नेता की जरूरत है। ऐसे में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री जैसे नेता का महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती थी। प्रदेश कार्यालय में तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था की जा रही है। एक-दो दिन में वह अपना कार्यभार संभाल लेंगे।

राजेश लिलोठियाः
राजेश लिलोठिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने पर खुद कांग्रेस के दलित नेताओं में सवाल उठ रहे हैं। लिलोठिया दो बार विधायक रहे है और इसके साथ ही यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। लिलोठिया को भी शीला दीक्षित का करीबी होने का फायदा मिला है। पार्टी के दलित नेताओं में चर्चा है कि कि पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान या पार्टी के पांच बार विधायक रहे जयकिशन ज्यादा अच्छा विकल्प साबित हो सकते थे। क्योंकि कांग्रेस का परंपरागत वोट रहे दलित मतदाताओं को आम आदमी पार्टी से दूर करना आसान नहीं है।

और बढ़ेगी गुटबाजीः
कांग्रेसी सूत्र बताते हैं कि आने वाले दिनों में गुटबाजी और ज्यादा बढ़ेगी। दिल्ली में कांग्रेस के चार अध्यक्ष होने की वजह से सबके अपने अपने गुट काम करेंगे। ऐसे में शीला दीक्षित, हारून यूसुफ, देंवेंद्र यादव और राजेश लिलोठिया के अपने-अपने गुट हावी रहेंगे। इसके साथ ही अजय माकन समर्थक और शीला दीक्षित व उनके सहयोगी कार्यकारी अध्यक्षों का विरोधी खेमा भी पार्टी के कामों में रोड़ा अटकाने का काम करेगा। सूत्रों का कहना है कि शीला दीक्षित का स्वास्थ्य भी अब 20 साल पहले जैसा नहीं है। जबकि पार्टी को दिल्ली में खड़ा करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की जरूरत है।

पूर्वाचल को प्रतिनिधित्व न मिलने पर नाराजगीः
प्रदेश कांग्रेस में तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं। लेकिन इनमें पूर्वांचल को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इसको लेकर पार्टी के पूर्वांचली कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में करीब 30 फीसदी आबादी पूर्वांचल की है। भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मनोज तिवारी को पूर्वांचल का चेहरा बनाया है। वहीं आम आदमी पार्टी ने संजय सिंह और गोपाल राय के रूप में दो चेहरे पूर्वांचली मतदाताओं के लिए दिए हैं। जबकि कांग्रेस ने महाबल मिश्रा को भी कोई अहम जिम्मेदारी देना उचित नहीं समझा। हालांकि पार्टी में महाबल के अलावा भी पूर्वांचल के कई नेता हैं, जिन्हें अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।

हर लोकसभा क्षेत्र को मिलेगा उपाध्यक्षः
दिल्ली में फिर से अपने कदम जमाने के लिए प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व हर संभव कोशिश में है। जनवरी महीने में ही प्रदेश पदाधिकारियों सहित कार्यकारिणी का गठन किया जाना है। इसमें ज्यादातर नेताओं की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की जाएगी। इसी कड़ी में हर लोकसभा क्षेत्र को एक प्रदेश उपाध्यक्ष दिया जाएगा। हर प्रदेश उपाध्यक्ष को अपने लोकसभा क्षेत्र में पार्टी खड़ी करने की जिम्मेदारी दी जाएगी।