सावधानः ब्लैक फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है व्हाइट फंगस!

-पूरे शरीर को संक्रमित करने की क्षमता रखती है ‘कैंडिडा’ नामक व्हाइट फंगस की बीमारी
-छोटे बच्चों को भी हो सकती है व्हाइट फंगस की बीमारी, कोरोना टेस्ट में नहीं चलता मालूम

एसएस ब्यूरो/ पटना-वाराणसी
कोरोना महामारी के बीच ब्लैक फंगस एक आफत के रूप में लोगों पर टूटकर पड़ी है। लेकिन अब ब्लैक फंगस के बाद व्हाइट फंगस की दस्तक से मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टर विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि व्हाइट फंगस को चिकित्सकीय भाषा में कैंडिडा कहा जाता है। यह फंगस इतना ज्यादा खतरनाक है कि फेफड़ों के साथ यह रक्त में घुसने की क्षमता रखता है और रक्त में पहुंचने पर इसे कैंडिडिमिया कहा जाता है।

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ब्लैक फंगस को लेकर केंद्र सरकार की चिंता भी बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर ब्लैक फंगस के लिए अलर्ट किया है। वहीं राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, तेलंगाना और तमिलनाडु ने इस ब्लैक फंगस को पहले ही महामारी घोषित कर दिया है और अब अन्य राज्य भी इसे लेकर सतर्क हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी इसे लेकर विचार कर रही है क्योंकि दिल्ली में भी इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। दिल्ली में इसके मरीजों के इलाज के लिए अलग से सेंटर्स बनाए जा रहे हैं।

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व्हाइट फंगस इसलिए ज्यादा खतरनाक है क्योंकि यह शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है। फेफड़ों तक पहुंचे तो इसे लंग बॉल कहते हैं। सीटी स्कैन जांच में फेफड़ों के भीतर यह गोल-गोल दिखाई देता है। कोरोना से सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़ों को हो रहा है। व्हाइट फंगस भी फेफड़ों पर हमला करता है। अगर कोरोना मरीजों में इसकी पुष्टि हुई, तो जान का खतरा बढ़ सकता है। डॉक्टर विजय नाथ मिश्रा का कहना है कि यह फंगस त्वचा, नाखून, मुंह के भीतरी हिस्से, आमाशय, किडनी, आंत व गुप्तागों के साथ मस्तिष्क को भी चपेट में ले सकता है। मरीज की मौत ऑर्गन फेल होने से हो सकती है। जो ऑक्सीजन या वैंटिलेटर पर हैं, उनके उपकरण जीवाणु मुक्त होने चाहिए जो ऑक्सीजन फेफड़े में जाए वह फंगस से मुक्त होनी चाहिए।
सीटी स्कैन के जरिये चलता है पताः
पटना में व्हाइट फंगस के दो मरीज कोरोना निगेटिव हैं। ऐसे में डॉक्टर मिश्रा का कहना है कि संभव है कि उनकी इम्युनिटी कमजोर हो। इससे वायरस ने नाक में प्रसार नहीं किया और सीधे भीतर चला गया। जब स्वैब से सैंपल लिया तो उसमें वायरस नहीं मिला। इस तरह के मामलों में सीटी स्कैन के जरिए ही असल संक्रमण की पुष्टि हो पाती है। दूसरी ओर पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के विभागाध्यक्ष डॉक्टर सत्येंद्र नारायण सिंह बताते हैं कि व्हाइट और ब्लैक फंगस कोई नया नहीं है। व्हाइट फंगस में चेस्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। यह नवजात शिशु में भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि जिन मरीजों का रैपिड एंटीजन और आरटीपीसीआर नेगेटिव है। उन्हें भी लक्षण दिखने पर फंगस का टेस्ट कराना चाहिए।
जानें क्या हैं व्हाइट फंगस के लक्षणः
संक्रमण जोड़ों तक पहुंच गया तो आर्थराइटिस जैसी तकलीफ महसूस होगी, चलने-फिरने में दिक्कत संभव है। यदि यह मस्तिष्क तक पहुंचा जाए तो सोचने विचारने की क्षमता पर असर पड़ता है, सिर में दर्द या अचानक दौरा आने लगता है। त्वचा पर छोटा और दर्द रहित गोल फोड़ा जो कि संक्रमण की चपेट में आने के एक से दो सप्ताह में हो सकता है। व्हाइट फंगस फेफड़ों में पहुंच गया तो खांसी आती है और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है, सीने में दर्द और बुखार भी हो सकता है।