क्यों पांडवों ने बनवाया था केदारनाथ मंदिर?… भोलेनाथ बने मुक्तिदाता

-जानें केदारनाथ मंदिर निर्माण के पीछे की पौराणिक कथा

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
विश्वभर में प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के कपाट विधि विधान और पूजा अर्चना के बाद सोमवार 17 मई 2021 को सुबह 5 बजे खोल दिए गए हैं। कपाट खुलने के मौके पर यहां तीर्थयात्री और स्थानीय लोगों की कमी साफ देखी गई। कोराना (CORONA) संकट के चलते यह दूसरा मौका है जब कपाट खुलने पर बाबा के दरबार में भक्तों की भीड़ नहीं थी। दरअसल कोरोना की वजह से यहां श्रद्धालुओं के आने-जाने पर अस्थायी रोक लगाई गई है। हालांकि उत्तराखंड सरकार में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने (Minister Satpal Maharaj) कहा है कि कोरोना खत्म होते ही चार धाम की यात्रा को दोबारा शुरू कराया जायेगा।
हिन्दू धर्म में हिमालय (Himalaya) की गोद में बसे केदारनाथ धाम को बारह ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlinga) में से एक माना गया है। वहीं यह उत्तराखंड (Uttarakhand) के चार धामों से एक है। हिन्दू पुराणों में साल के करीब 6 महीने हिम से ढके रहने वाले इस पवित्र धाम को भगवान शिव (Lord Shiva) का निवास स्थान बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव त्रिकोण शिवलिंग के रूप में हर समय विराजमान रहते हैं। पौराणिक ग्रंथों में केदारनाथ धाम से जुड़ी कई कथाओं का वर्णन मिलता है, लेकिन एक कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। इस कथा में बताया गया है कि यहां पांडवों को भगवान शिव ने साक्षात् दर्शन दिए थे, जिसके बाद पांडवों ने यहां इस धाम को स्थापित किया।
कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजय के पश्चात पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया गया। उसके बाद करीब चार दशकों तक युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर राज्य किया। इसी दौरान एक दिन पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठकर महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। समीक्षा में पांडवों ने श्रीकृष्ण से कहा हे नारायण हम सभी भाइयों पर ब्रम्ह हत्या के साथ अपने बंधु बांधवों की हत्या का कलंक लगा है।
युधिष्ठिर ने पूछा कि इस कलंक को कैसे दूर किया जाए? तब श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि ये सच है कि युद्ध में भले ही जीत तुम्हारी हुई है लेकिन तुमलोग अपने गुरु और बंधु बांधवों को मारने के कारण पाप के भागी बन गए हो.। इन पापों के कारण मुक्ति मिलना असंभव है। इन पापों से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं। इसलिए महादेव की शरण में जाओ। उसके बाद श्रीकृष्ण द्वारका लौट गए।
उसके बाद से ही पांडव पापों से मुक्ति के लिए चिंतित रहने लगे और मन ही मन सोचते रहे कि कब राज पाठ को त्यागकर भगवान शिव की शरण में जाएंगे। इसी उधेड़-बुन के बीच एक दिन पांडवों को पता चला कि वासुदेव ने अपना शरीर त्याग दिया है और वो अपने परमधाम लौट गए हैं। ये सुनकर पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना उचित नहीं लग रहा था। गुरु, पितामह और सखा सभी तो युद्धभूमि में ही पीछे छूट गए थे। माता, ज्येष्ठ पिता और काका विदुर भी वनगमन कर चुके थे। सदा के सहायक कृष्ण भी नहीं रहे थे। ऐसे में पांडवों ने अपना राज्य परीक्षित को सौंप दिया और द्रौपदी समेत हस्तिनापुर छोड़कर भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े।
हस्तिनापुर से निकलने के बाद पांचों भाई और द्रौपदी भगवान शिव के दर्शन के लिए सबसे पहले काशी पहुंचे, लेकिन यहां भोलेनाथ उन्हें नहीं मिले। उसके बाद उन लोगों ने कई और जगहों पर भगवान शिव को खोजने का प्रयास किया, लेकिन जहां कहीं भी ये लोग जाते शिव जी वहां से चले जाते। इस क्रम में पांचों पांडव और द्रौपदी एक दिन शिव जी को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। यहां पर भी शिवजी ने इन लोगों को देखा तो वो छिप गए लेकिन यहां पर युधिष्ठिर ने भगवान शिव को छिपते हुए देख लिया था। तब युधिष्ठिर ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु आप कितना भी छिप जाएं लेकिन हम आपके दर्शन किए बिना यहां से नहीं जाएंगे और मैं ये भी जनता हूं कि आप इसलिए छिप रहे हैं क्योंकि हमने पाप किया है।
युधिष्ठिर के इतना कहने के बाद पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे। उसी समय एक बैल उन पर झपट पड़ा। ये देख भीम उससे लड़ने लगे। इसी बीच बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छुपा लिया जिसके बाद भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे तो बैल का धड़ सिर से अलग हो गया और उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया और कुछ समय के बाद शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए। शिव ने पांडवों के पाप क्षमा कर दिए।
आज भी इस घटना का प्रमाण केदारनाथ में दिखने को मिलता है, जहां शिवलिंग बैल के कुल्हे के रूप में मौजूद है। भगवान शिव को अपने सामने साक्षात देखकर पांडवों ने उन्हें प्रणाम किया और उसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बताया और फिर अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद पांडवों ने उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना की और आज वही शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। यहां पांडवों को स्वर्ग जाने का रास्ता स्वयं शिव जी ने दिखाया था इसलिए हिन्दू धर्म में केदार स्थल को मुक्ति स्थल माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई केदारनाथ दर्शन का संकल्प लेकर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है।