दुनिया का दिल दिल्ली, दिल्ली का दिल पुरानी दिल्ली और पुरानी दिल्ली का दिल चांदनी चौक को कहा जाता है। आज जिस चांदनी चौक को एशिया का सबसे बड़ा बाजार कहा जाता है। उसकी शिल्पकार मुगल बादशाह शाहजहां की बड़ी बेटी जहांआरा थीं। जहांआरा को शाहजहानाबाद का शिल्पकार कहा जाता है। यहां की डेढ़ दर्जन इमारतों में से पांच इमारतें जहांआरा के द्वारा डिजाइन की गई थीं और उन्हीं की देखरेख में बनी थीं। सन् 1638 में शाहजहां ने अपनी राजधानी आगरा से बदलकर दिल्ली को बनाया था। उन्होंने तब दिल्ली में एक नया शहर शाहजहांनाबाद को बसाया था। यहां का चांदनी चौक जहांआरा की ही देन है। इसकी 18 में से 5 इमारतें जहांआरा की देखरेख में बनी थीं। उन्होंने एक कारवां सराय
भी बनवाया था, जो चांदनी चौक में ही था और आज के टाउन हॉल की जगह पर था। इतिहासकार बर्नियर ने इसे दिल्ली की शानदार इमारत लिखा था।
बता दें कि जहांआरा का जन्म सन् 1614 में हुआ था। सन् 1631 में मुमताज महल के मरने के बाद बादशाह शाहजहां अपनी बड़ी बेटी जहांआरा और बेटे दाराशिकोह पर पूरी तरह से निर्भर हो गए थे। मां के मरने के बाद केवल 17 साल की उम्र में जहांआरा को पादशाह बेगम बनाया गया, जो उस समय किसी भी महिला के लिए सबसे बड़ा ओहदा हुआ करता था। पादशाह बेगम यानी मुगल साम्राज्य की पहली महिला। यह उस समय हुआ जब मुमताज महल के मरने के बाद भी शाहजहां की तीन पत्नियां और थीं। हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से दक्षिण की ओर एक कब्र है। यह जालीदार संगमरमर के पर्दों से घिरी हुई है। दीवारों के नाम पर बस पर्दे भर हैं। इसके ऊपर छत नहीं है। इसे देखकर नहीं कहा जा सकता कि यहां कोई शाही घराने शख्स दफन हो सकता ह।ै इस कब्र के ऊपर लिखा है-‘सिवाय हरी घास के मेरी कब्र को किसी भी चीज से न ढका जाए, क्योंकि केवल घास ही इस दीन की कब्र ढकने के लिए काफी है।’ यह कब्र मुगल शहजादी जहांआरा की है जो कि मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज महल की बड़ी बेटी थी। जहांआरा बेहद खूबसूरत, धनवान और महान ज्ञानी महिला थी। उनकी सलाह के बिना मुगलिया षासन में उस समय कुछ भी होना मुमकिन नहीं था। मगर खुद के लिए उन्होंने शानदार मकबरा नहीं बनवाया। सूफी विचारों से पभ््र ावित इस शाही महिला ने इंतकाल के बाद दफन होने के लिए हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास की जगह चुनी। जहांआरा ने फारसी में दो किताबें भी लिखीं। जहांआरा के हिस्से में सूरत बंदरगाह से मिलने वाली पूरी आय आती थी। मुमताज महल की मौत के बाद निजी संपत्ति में से शाहजहां ने आधा हिस्सा जहांआरा को दिया। बाकी आधे में से सारे बच्चों को दिया गया। कहा जाता है कि उनका खुद का पानी का जहाज (साहिबी) था जो डच और अंग्रेजों से व्यापार करने के लिए सात समंदर पार जाता था। वह आगरा के किले के बाहर अपने महल में वह रहती थीं। उनके अलावा किसी शाही महिला को यह आजादी नहीं थी। यहां तक कि उनकी छोटी बहन रोशनआरा भी किले में ही रहती थीं। सन् 1657 में मुगल बादशाह शाहजहां गंभीर बीमार पड़ गए। इसके बाद उनके बेटों दाराशिकोह और औरंगजेब में गद्दी के लिए तलवारें खिंच गईं। जहांआरा ने शाहजहां के बड़े बेटे दाराशिकोह का साथ दिया। दाराशिकोह को हार का सामना करना पड़ा और सत्ता औरंगजेब के हाथ लगी। औरंगजेब ने पिता शाहजहां को कैदखाने में डाल दिया। जहांआरा भी पिता के साथ जेल में देखरेख के लिए रहने लगीं। खुद का विरोध करने के बावजूद औरंगजेब ने जहांआरा को पादशाह बेगम बनाए रखा। जहांआरा आजीवन अविवाहित रहीं। और सन् 1681 में 67 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।
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