-चुनाव नहीं लड़ेंगे चोपड़ा, बेटी संभालेगी विरासत
-दिल्ली में आक्रामक भूमिका निभाएगी प्रदेश कांग्रेस
-बढ़ते वोट शेयर से बढ़ा कार्यकर्ताओं का मनोबल
हीरेंद्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछ चुकी है। राजधानी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। दिल्ली में अपनी सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस ने चुनाव के लिए ‘आक्रामक योजना’ तैयार की है। पार्टी को भाजपा और आम आदमी पार्टी के साथ दो मोर्चों पर अलग अलग लड़ना पड़ रहा है। कांग्रेस दिल्ली में 1998 की स्थिति उत्पन्न कर चुनाव में इसका फायदा उठाना चाहती है।
कांग्रेस से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाएगी। पार्टी की कोशिश इस बार के विधानसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने और उससे भी ज्यादा सीटों पर दूसरे स्थान पर आने की है। ताकि पार्टी में मची भगदड़ पर रोक लगाई जा सके और कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाया जा सके। कारण है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। फिलहाल पार्टी इस कोशिश में है कि नेताओं और कार्यकर्ताओं को किसी भी तरह जोड़े रखा जाए। यदि किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश किया जाता है तो पार्टी में गुटबाजी बढ़ सकती है।
कांग्रेस 1998 के विधानसभा चुनाव में भी बिना किसी सीएम के चेहरे के मैदान में उतरी थी। भारी बहुमत से जीत के बाद शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद क्योंकि शीला दीक्षित ही मुख्यमंत्री रहीं इसलिए 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में ही लड़े। इस दौरान कांग्रेस पार्टी संगठन और कांग्रेस सरकार के बीच कई बार विवाद की स्थिति भी बनी। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित और तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष स्वर्गीय राम बाबू शर्मा के बीच का सियासी झगड़ा काफी चर्चा में रहा था।
फिलहाल दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने चुनाव से पहले आक्रामक भूमिका के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की रणनीति तैयार की है। इसी के तहत पार्टी रोजाना किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। पार्टी प्याज के मुद्दे को भुनाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही। कारण है कि नेताओं को उम्मीद है कि 1998 की तरह इस बार भी महंगी प्याज के मुद्दे का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने तय किया है कि प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चौपड़ा विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। वह केवल पार्टी को चुनाव लड़ाने पर फोकस करेंगे। सुभाष चोपड़ा की बेटी कालकाजी सीट पर उनकी विरासत संभालेंगी। कांग्रेस की योजना कालकाजी सीट से सुभाष चोपड़ा की बेटी को चुनाव लड़ाने की है।
हरियाणा-महाराष्ट्र के नतीजों से कांग्रेस में जोशः
हाल ही में हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढ़ा हुआ है। तेजी से पैर पसार रही भाजपा को दोनों ही राज्यों में स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका। भाजपा हरियाणा में तो जोड़-तोड़ से सरकार बनाने में सफल रही, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा का दांव उलटा पड़ गया। महाराष्ट्र में कांग्रेस के सरकार में शामिल होने का असर दिल्ली में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर पड़ा है। पार्टी नेताओं का मानना है कि आने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसका असर कांग्रेस के वोट प्रतिशत की बढ़ोतरी के रूप में देखने को मिलेगा।
कांग्रेस के वोट शेयर में हुई बढ़ोतरीः
दिल्ली में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2015 के विधानसभा चुनाव में सबसे कम रहा है। पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। कांग्रेस को 2013 के विधानसभा चुनाव में भले ही 8 सीट मिली हों, लेकिन उसको 24.06 फीसदी वोट हासिल हुए थे। हालांकि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर और ज्यादा गिर गया और कांग्रेस को 15.10 फीसदी वोट ही हासिल हुए। 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। इसके साथ ही पार्टी को अब तक के सबसे कम 9.07 फीसदी वोट हासिल हो पाए। हालांकि 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर दिल्ली में बढ़कर 21 फीसदी पर पहुंच गया था। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में इसमें और इजाफा हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर बढ़कर 22.46 फीसदी पहुंच गया है। जबकि इस चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में 2014 के मुकाबले 14.09 फीसदी की गिरावट आई है।
15 साल सत्ता के बाद कांग्रेस का बनवासः
1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीट जीत कर सरकार बनाई थी। कांग्रेस को 14 सीट हासिल हुई थीं। इस चुनाव में दिल्ली में जनता दल ने 4 सीट जीती थीं और 3 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कराई थी। लेकिन 1998 में महंगी प्याज के मुद्दे पर भाजपा की सरकार चली गई थी। 1998 में कांग्रेस ने 52 सीट जीतकर सरकार बनाई थी। भाजपा को केवल 15 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। 1998 में भी कांग्रेस बिना किसी सीएम के चेहरे के चुनाव मैदान में उतरी थी। हालांकि बीजेपी ने तब सुषमा स्वराज को सीएम का चेहरा बनाया था।
सदस्यता निरस्त होने से 4 सीट खालीः
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 23015 के चुनाव में 67 सीट पर जीत हासिल की थी। भाजपा के हिस्से में केवल 3 सीट आई थीं और कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई थी। इसके बाद राजौरी गार्डन सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीट शिरोमणि अकाली दल के मनजिंदर सिंह सिरसा ने बीजेपी के टिकट पर जीत ली थी। आप के पास फिलहाल 62 सीट हैं। भाजपा के पास 4 सीट और 4 विधायकों की सदस्यता खत्म कर दिए जाने की वजह से 70 सीट वाली दिल्ली विधानसभा में 4 सीट खाली हैं।