-हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजे भाजपा के लिए आइना
-बीजेपी को दिल्ली के लिए बनानी होगी नए सिरे से रणनीति
शक्ति राठौर/नई दिल्ली
मोदी फोबिया में डूबी बीजेपी के लिए महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे आइना साबित हुए हैं। पीएम मोदी के नाम पर दिल्ली विधानसभा चुनाव की वैतरिणी पार करने का सपना देख रहे दिल्ली बीजेपी के नेताओं को करारा झटका लगा है। सियासी जानकारों की मानें तो अब भी बीजेपी ने सबक नहीं लिया और जमीन पर उतर कर काम नहीं किया तो दिल्ली में सत्ता की वापसी का सपना पांच साल लंबा और हो जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में कश्मीर से धारा 370, पाकिस्तान के घर में घुसने, मिशन मंगल जैसे मुद्दों को लेकर उतरी थी। लेकिन दोनों राज्यों की जनता ने विधानसभा चुनाव में इन भारी-भरकम राष्ट्रीय मुद्दों को नकार दिया। यही कारण है कि दोनों राज्यों में बीजेपी के आठ-आठ मंत्री चुनाव हार गए। केवल यही नहीं लोकसभा चुनाव के मुकाबले दोनों ही राज्यों में बीजेपी का वोट प्रतिशत भी कम हो गया। सत्ता में वापसी भले ही कर ली हो लेकिन स्थानीय मुद्दों को दरकिनार करना बीजेपी को दोनों ही राज्यों में भारी पड़ा।
बता दें कि बीते 21 साल से बीजेपी दिल्ली की सत्ता से बाहर है। 1993 से 1998 तक दिल्ली में बीजेपी की सरकार रही थी। 1998 में बेतहाशा बढ़ी प्याज की कीमतों के मुद्दे पर कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया था। तब से अब तक दिल्ली बीजेपी के नेता हर बार सत्ता में वापसी का सपना देखते हैं। लेकिन यह सपना हकीकत में तब्दील नहीं हो पा रहा। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों ने एक बार फिर बीजेपी के रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
15 साल रहा शीला दीक्षित का राजः
1998 में कांग्रेस ने दिल्ली में भारी जीत हासिल करते हुए शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बनाया था। इसके पश्चात 2003 में एक बार फिर कांग्रेस ने बीजेपी को करारी शिकस्त देते हुए दिल्ली में सरकार बनाई थी। इसके पश्चात 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा और शीला दीक्षित एक बार फिर मुख्यमंत्री बनीं। 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया था। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उतरे। लेकिन किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ। कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार चलाई और इस्तीफा दे दिया। इसके पश्चात 2015 में विधानसभा चुनाव हुए और आम आदमी पार्टी ने क्लीन स्वीप करते हुए 70 में से 67 सीटों पर चुनाव जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई। अब 2020 की शुरूआत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में एक बार फिर बीजेपी के सामने सत्ता में वापसी का यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है।
बदलना होगा नजरियाः
दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगे थे। खास बात यह रही कि पार्टी के कार्यकर्ता कुछ खास घरों को छोड़कर दूसरी जगह वोट मांगने तक नहीं गए। लोकसभा चुनाव में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को वोट डालने की पर्ची तक पहुंचाना जरूरी नहीं समझा। पिछले दिनों चले सदस्यता अभियान में भी यही हाल देखने को मिला। ज्यादातर इलाकों में बीजेपी नेताओं ने अपने अपने यहां केवल फोटो खिंचवाने के लिए सदस्यता कैंप का आयोजन किया। कोई भी कार्यकर्ता लोगों को सदस्य बनाने के लिए उनके घर तक नहीं गया। अब दो राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी रणनीतिकारों को अपने नजरिए में बदलाव करना होगा, नहीं तो बीजेपी का सत्ता का बनवास और लंबा खिंच सकता है।