देश की राजधानी दिल्ली हमेशा से सियासी अखाड़े का केंद्र रही है। कारण है कि पूरे देश की बागडोर दिल्ली के हाथ में है। बीते 62 साल में दिल्ली ने अब तक 107 सांसद दिए हैं। लेकिन इनमें से अब तक केवल एक मुस्लिम को ही लोकसभा में दिल्ली से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिल सका। विधायकों की उबात करें तो इनका आंकड़ा कुछ अटपटा हो सकता है, क्योंकि अब तक यहां 420 विधायक चुने जा चुके हैं। इनमें से 27 मुस्लिम विधायक बने हैं। हालांकि 12 महिलाओं को भी अब तक लोकसभा में दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। पेश है दिल्ली के सियासी मैदान पर हीरेन्द्र सिंह की रिपोर्टः-
टिकट मिला पर नहीं मिला मुस्लिमों का साथ
सन् 1947 में देश को मिली आजादी के बाद से साल 2014 तक के लोकसभा चुनाव के दौरान 62 साल के सियासी सफर में दिल्ली से 107 सांसद चुने गए हैं। राजधानी में मुस्लिमों की आबादी करीब 12.86 फीसदी और मतदाता करीब 12 फीसदी हैं। लेकिन मुस्लिम समाज से लोकसभा में केवल एक सांसद को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। यहां से 1977 में सिकंदर बख्त सांसद बने थे। उन्होंने चांदनी चैक सीट से भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीता था। सिंकदर बख्त इसके बाद 1980 में जनसंघ और 1984 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरे, लेकिन दोनों ही बार मुस्लिमों ने उनका साथ नहीं दिया और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। उनके बाद भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और
अब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की किसी भी सीट पर किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया। इस विषय में फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मुकर्रम अहमद का कहना है कि राजनीतिक दल जीतने वाले प्रत्याशी तो टिकट देते हैं तो इसमें बुरा भी कुछ नहीं है।
तीन बार दो-दो महिलाएं पहुंचीं
दिल्ली में महिला मतदाताओं की संख्या करीब 45 फीसदी है। बीते 62 साल में केवल 12 महिलाओं चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंच पाई हैं। दिल्ली में अब तक लोकसभा के लिए 16 बार चुनाव हो चुके हैं। शुरू में दिल्ली में लोकसभा की चार सीट थीं। इसके बाद सीटों की संख्या बढ़कर 5 हो गई। 1967 में लोकसभा के लिए सीटों की संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गई थी। बीते 62 साल में अब तक 107 सांसद चुनकर लोकसभा पहुंच चुके हैं। लेकिन इनमें से महिला सांसदों की संख्या महज 12 है। लोकसभा के लिए दिल्ली में 16 बार चुनाव हो चुके हैं और फिलहाल महिला मतदाताओं की संख्या करीब 1.41 करोड़ है। तीन बार ऐसा मौका आया है जब दो-दो महिलाएं चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंची थीं। इसमें से नई दिल्ली से सुचेता कृपलानी, दक्षिण दिल्ली से सुषमा स्वराज, आरक्षित सीट से कृष्णा तीरथ और मीरा कुमार दो-दो बार चुनी र्गइं। 2014 में मीनाक्षी लेखी, 1999 में डॉ. अनीता आर्या एकएक बार चुनकर दिल्ली की लोकसभा सीट से लोकसभा पहुंची। 3 मौकों पर 7 में से 2 सांसद महिलाएं रहीं। 1971 में सुभद्रा जोशी और मुकुल बनर्जी, 1996 और 1998 में सुषमा स्वराज और कांग्रेस की मीरा कुमार ने बाजी मारी थी।
लेखी और आर्य को छोड़ सबको मिली कुर्सी
दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाली महिलाओं को केंद्र में मंत्री या फिर लोकसभा अध्यक्ष जैसे पद की कुर्सी मिलती रही है। कांग्रेस दिल्ली से जीतने वाली अपनी सभी महिला सांसदों को यह सम्मान दिया। लेकिन भाजपा ने अपने सांसदों के साथ ऐसा नहीं किया। भाजपा की डॉ. अनीता आर्या और मीनाक्षी लेखी ऐसी ही सांसद रहीं जिन्हें केंद्र सरकार में कोई जिम्मेदारी नहीं मिली। दिल्ली से जीतकर जाने वाली बाकी महिला सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी मिलती रही है। लोकसभा चुनाव हारने वाली महिलाओं में भाजपा की स्मृति ईरानी चांदनी चैक, कांग्रेस की शीला दीक्षित पूर्वी दिल्ली, कांग्रेस की ही वी मोहिनी गिरी, भाजपा की मीरा कांवरिया और आम आदमी पार्टी की राखी बिडलान के नाम शामिल हैं।
विधानसभा के लिए 6 चुनाव और 27 मुस्लिम विधायक
दिल्ली विधानसभा के लिए 1993 से 2015 तक 6 बार चुनाव हो चुके हैं। इस दौरान 420 विधायक चुने गए हैं। इनमें मुस्लिम विधायकों की संख्या 27 रही है। चुने जा चुके मुस्लिम विधायकों में हारून युसुफ 5 बार, हसन अहमद 2 बार, मतीन अहमद 5 बार, परवेज हाशमी 4 बार, शोएब इकबाल 5 बार और आसिफ मोहम्मद खान को 2 बार विधानसभा में चुनकर पहुंचने का मौका मिला है। 2015 में चुने गए अमानतुल्ला खान, इमरान हुसैन, आसिम अहमद खान और मोहम्मद इशराक एक-एक बार विधायक बने हैं।