30 को है सफला एकादशी… जानें इसका शुभ मुहूर्त और महत्व

-30 दिसंबर को मनाई जाएगी सफला एकादशी
-सफलता का मार्ग है सफला एकादशी

आचार्य रामगोपाल शुक्ल

हेमा शर्मा/ नई दिल्ली,
सनातन हिन्दू धर्म में सफला एकादशी का अपना एक अलग महत्व है। जैसे की नाम से ही प्रतीत होता है सफला का मतलब सफलता है। सफला एकादशी का व्रत भक्तगण जीवन में सफलता पाने के लिए बड़ी श्र्धा से करते है। सफला एकादशी को समृद्धि, सोभाग्य, और बहुतायत का मार्ग कहा जाता है।

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बता दें कि साल में 24 एकादशी आतीं हैं जिनमे सफला एकादशी को बहुत महत्व दिया जाता है। यह एकादशी पौष माह की कृष्ण पक्ष को आती है, इस वर्ष सफला एकादशी 30 दिसंबर को मनाई जाएगी। जिस प्रकार सभी एकादशीयो में विष्णु भगवान की पूजा की जाती है उसी प्रकार इस एकादशी में भी जीवन में सफलता की कामना करते हुए लोग विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करते है। इस वर्ष सफला एकादशी साल की अंतिम एकादशी के रूप में मनाई जाएगी, इस एकादशी को पौष किरिशं एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

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शुभ मुहूर्त और तिथि
आचार्य राम गोपाल शुक्ल ने सफला एकादशी के शुभ मुहूर्त और समय के बारे में बताया कि जो भक्त इस व्रत को सच्ची भक्ति के साथ करता है उसके सभी दुखो का नाश निश्चित होता है। एकादशी तिथि 29 दिसंबर 2021 बुधवार को दोपहर 4ः12 मिनट से शुरू होगी। एकादशी तिथि का समापन 30 दिसंबर गुरुवार को दोपहर 1ः40 मिनट पर होगा। सफला एकादशी का पारन मुहूर्त 31 दिसंबर 2021, शुक्रवार सुबह 7ः14 मिनट से 9ः18 मिनट तक रहेगा।
सफला एकादशी व्रत विधि
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, एकादशी की सुबह से व्रत शुरू होता है और समापन अगले दिन यानी द्वादशी को होता है। विष्णु की पूजा करते समय उन्हें तुलसी, अगरबत्ती व नारियल चढ़ाया जाता है,शाम को मंदिर में जाकर दीपक जलाते है।सफला एकादशी पर भक्तों को पूरी रात भगवान विष्णु का नाम जपना चाहिए। एकादशी व्रत के समय विष्णु मंत्र ॐ नमः भगवते वसुदेवये का जाप करना चाहिए।
सफला एकादशी का महत्व
इस एकादशी का हिंदू पंचांग में बहुत महत्व है। आचार्य राम गोपाल शुक्ल बताते हैं कि इस व्रत को करने वाले भक्त सभी प्रकार के दुखो से मुक्त हो जाते है। सफला एकादशी दशमी तिथि से प्रारम्भ होकर द्वादशी तिथि तक होती है। इस व्रत में दशमी तिथि से ही रात में एक ही बार सात्विक भोजन करना चाहिए और सूर्योदय से पहले उठकर विष्णु भगवान की पूजा अर्चना कर के भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।