राम जन्मभूमि विवादः 17 नवंबर तक फैसला आने की उम्मीद

-मध्यस्थता का समय खत्म, कोर्ट के आदेश पर टिका फैसला
-दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी, अब नहीं होगा किसी अर्जी पर विचार

टीम एटूजेड/नई दिल्ली
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद में मध्यस्थता की सभी कोशिशों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस मामले में अब पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा फैसला सूनाया जाएगा। यह भी माना जा रहा है कि संविधान पीठ का यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरह भूमि के बंटवारे से संबंधित नहीं होगा। यह भी माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला 10 से 15 नवंबर के बीच सुना सकता है। सूत्रों का कहना है कि कोर्ट इस मामले पर 17 नवंबर तक अपना फैसला देने पर विचार कर रहा है। सुनवाई के बाद इस संबंध में बैंच में शामिल पांचों जजों की कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। ऐसे में फैसला आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
बता दें कि हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी बोर्ड में बांटने का आदेश जारी किया था। सुनवाई के आखिरी दिन बुधवार को मामले की सुनवाई से पहले अदालत में एक अर्जी दाखिल की गई। लेकिन पांच जजों की पीठ ने स्पष्ट कहा कि अब किसी अर्जी पर विचार नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के सूत्र बताते हैं कि इन अर्जियों में एक मध्यस्थता पैनल की ओर से लगाई गई थी।
अर्जी में कहा गया था कि कुछ पक्ष समझौते के लिए तैयार हैं और 18 अक्टूबर को बैठकर इसका सर्वमान्य हल निकालेंगे। लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अब किसी नई अर्जी पर सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने बुधवार 16 अक्टूबर को सांय 4 बजे तक मामले की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुप्रीम कोर्ट से जुड़े सूत्र बताते हैं कि कोर्ट में लगाई गई मध्यस्थता की अर्जी सही फार्मेट में नहीं थी और इस पर मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष जस्टिस एमआई कलीफुल्ला और सदस्य श्रीश्री रविशंकर के दस्तखत भी नहीं कराए गए थे। अर्जी को मध्यस्थता समिति के एक सदस्य सीनियर एडवोकेट श्रीराम पंचू की ओर से लगाया गया था। पंचू ने अदालत से तीन पहले कहा था कि यूपी सुन्नी बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी को सुरक्षा दी जाए। खास बात यह रही कि बुधवार को सुनवाई के समय फारूकी कोर्ट परिसर में भी नहीं घुसने दिया गया।
पिछले महीने भी हुई मध्यस्थता की कोशिशः
अयाध्या राम मंदिर मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पिछले महीने भी मध्यस्थता की कोशिश की गई थी। तब शीर्ष अदालत ने कहा था कि आप मध्यस्थता करते रहिए और कोर्ट सुनवाई जारी रखेगा। लेकिन तब गिने-चुने पक्ष ही इसके लिए तैयार हुए थे। हालांकि मुख्य पक्षकार रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के पक्ष में नहीं थे।
मानसिक रूप से तैयार मुस्लिम पक्षः
माना जा रहा है कि श्रीराम जन्म भूमि मंदिर मामले में मुस्लिम पक्ष मानसिक रूप से कोर्ट की ओर से आने वाले किसी भी फैसले के लिए तैयार है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक वकील का कहना है कि हम राम जन्मस्थान को हिन्दुओं के लिए छोड़ने के लिए तैयार हैं। हमारी शर्तें सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी लागू की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दुओं को 1991 के पूजा के अधिकार कानून का पालन करना चाहिए।
इसमें प्रावधान है कि अगस्त 1947 से पहले बने किसी पूजा स्थल पर कोई अपना दावा नहीं कर सकेगा। इस तारीख से पहले जो धार्मिक स्थल जिसके पास है वह बना रहेगा। मुस्लिम पक्ष के वकील का कहना है कि अयोध्या में करीब 22 मस्जिदों की मरम्मत सरकार को करवानी होगी। एक शर्त यह भी रखी गई है कि पुरातत्व विभाग के कब्जे वाले स्मारकों में से देशभर में बनी मस्जिदों को नमाज के लिए खोला जाए।
नहीं लगाई केस वापस लेने की अर्जी
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के के अध्यक्ष जुफर फारूखी ने कहा है कि उन्होंने अयोध्या मंदिर मामले में केस वापस लेने की कोई अर्जी नहीं लगाई। हालांकि मध्यस्था पैनल के साथ जो हमारी बात हुई है, उसके बारे में कोई बात सार्वजनिक नहीं की जा सकती।