सांस्कृतिक विविधता-जैव विविधता और ‘नंदा राज जात यात्रा’ पर चर्चा का आयोजन

-पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामनगर नैनीताल के कैरियर काउंसलिंग सेल एवं जंतु विज्ञान विभाग द्वारा ऑनलाइन व्याख्यानमाला का आयोजन

गिरीश चंद्र/ रामनगर
पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामनगर नैनीताल के कैरियर काउंसलिंग सेल एवं जंतु विज्ञान विभाग द्वारा “गुरु दिवस व्याख्यान माला“ के तहत सांस्कृतिक विविधता-जैव विविधता और ‘नंदा राज जात यात्रा’ पर चर्चा का आयोजन किया गया। व्याख्यान माला की शुरूआत प्राचार्य प्रोफेसर एम.सी. पांडे ने की और डॉ भावना पंत (प्रभारी जंतु विज्ञान विभाग) ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। मुख्य वक्ता प्रोफेसर सी एस नेगी (विभागाध्यक्ष एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी) द्वारा अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया गया।

उन्होंने कहा कि “भारत ही नहीं अपितु विश्व में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग आज भी धार्मिक आस्था पर विश्वास करते हैं। हिमालय क्षेत्र में महाकुंभ के नाम से विख्यात व विश्व की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्रा ‘नंदा राज जात यात्रा’ अपने आप में अद्भुत और रोमांचकारी यात्रा है। गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्री नंदा राज जात यात्रा कई रास्तों और दुर्गम स्थानों बर्फीले पहाड़ों चोटियों से होते हुए अपने रहस्य और रोमांच को संजोए हुए हैं। 280 किलोमीटर की यात्रा 20 दिनों में 20 स्थानों से होकर गुजरती है। आमतौर पर यह यात्रा 12 वर्ष के पश्चात एक बार आयोजित की जाती है। जिसमें कुमाऊं गढ़वाल ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक विदेशी सैलानी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है।

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यह यात्रा सर्वप्रथम नौटी गांव से शुरू होकर रूपकुंड होते हुए हेमकुंड पर अपने अंतिम पड़ाव पर खत्म होती है, जो समुद्र तल से अट्ठारह सौ फीट ऊंचाई पर है। नौटी गांव पर मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ रिंगल की पवित्र राज-छतोली और चौसिंग्या खाडू़ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है । इस यात्रा का मुख्य आकर्षण चौसिंग्या खाडू़ चार सींग वाला भेड़ होता है, जो स्थानीय क्षेत्र में राजजात यात्रा शुरू होने से पहले मनौती के बाद पैदा होता है और पूरी यात्रा की अगुवाई करता ह। जो हेमकुंड में पूजा के पश्चात हिमालय की ओर प्रस्थान करता है और विलुप्त हो जाता है जो आज भी रहस्य का विषय बना है।

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पहले दशक में कुलपुरोहित , कुंवर (राज वंशज) एवं राजपुरोहित ही इस यात्रा पर प्रतिभाग करते थे किंतु वर्तमान समय में यह विशेष ख्याति प्राप्त कर चुकी है। जिसके कारण वर्तमान में पर्यावरण विशेषज्ञों व विद्वानों को पर्यावरण से संबंधित चिंता बन गई है। अत्यधिक लोगों के यात्रा में शामिल होने के कारण विभिन्न पड़ावों में रात्रि विश्राम और होने के कारण एवं भोजन व्यवस्था पर उपयोग होने वाले ईंधन से उष्मा से तापमान में वृद्धि होती है एवं ग्लेशियर के अकारों में बदलाव एवं पिघलने का सिलसिला जारी है। अधिक ऊंचाई पर पाए जाने वाला ब्रह्म कमल इस यात्रा के दौरान अपने अस्तित्व को खतरे में बनाए हुए हैं। माना जाता है कि यह मन्नत पुरी करने वाला देवी मां का सबसे विशेष प्रिय पुष्प है।

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अत्यधिक ऊंचाई में पाए जाने वाले औषधि पेड़ों पौधों की जैव विविधता पर भी प्रभाव पड़ रहा है। यात्रा के दौरान पूजा सामग्री में होने वाले सामान एवं प्लास्टिक कूड़ा अवशेषों से पहाड़ियों पर गंदगी का आलम बना है।” इस संदर्भ में आयोजन सचिव डॉ भावना पंत ने कहा कि इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने हेतु समाज में जनजागृति पर्यावरण से संबंधित जानकारी को साझा करना होगा ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर जैव विविधता पर प्रभाव भी ना पड़े और हमारी मान्यता और संस्कृति भी बनी रहे।

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हर 12 वर्ष के बाद मनाई जाने वाली इस यात्रा को सुचारू रूप से मनाने में अपनी संस्कृति अपने रिवाज अपने पर्यावरण संसार को भी सुरक्षित रखें तभी हम सच्चे अर्थों में कुलदेवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे। जंतु विज्ञानं विभाग की फैकल्टी डॉ रागिनी गुप्ता ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे। अंत में जंतु विज्ञान विभाग के डॉ प्रदीप पांडे ने समस्त अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। बता दें कि पिछली बार इस यात्रा का आयोजन साल 2014 में किया गया था, इससे पहले इसका आयोजन साल 2000 में किया गया था। भविष्य में आयोजित की जाने वाली यात्रा के लिए अभी तारीख निश्चित नहीं की गई है।
ऑनलाइन व्याख्यान में एस.सी पंत रिटायर्ड ए.सी .एफ , डॉ रागिनी गुप्ता , डॉ० प्रीति त्रिवेदी , डॉ गिरीश पंत, डॉ० एस एस मोरिया , डॉ ०जगमोहन नेगी , डॉ० के .के. पंत , किरण कर्नाटक, डा० निवेदिता अवस्थी, डा. शिप्रा पंत, डा. धीरेन्द्र सिंह, डा० कुसुम गुप्ता, डा० अनुराग श्रीवास्तव, डा० दीपक खाती, डा. योगेश, डा. प्रमोद पांडे, डॉ० प्रतिमा , मीडिया विशेषज्ञ गिरीश चन्द्र शर्मा आदि शामिल हुए ।