मोदी सरकार लाई किसानों के हित में अध्यादेश… राजनीतिक रोटियां सेंक रहा विपक्ष!

-करोड़ों लघु और सीमान्त किसानों व ग्राहकों के लिए राहत भरा कदम हैं नऐ कानून, ‘विरोध के लिए विरोध कर रहा विपक्ष’
                                                         जगदीश ममगांई

केन्द्र सरकार द्वारा किसानों को प्रभावित करने वाले तीन अध्यादेश पारित कर निसंदेह हिम्मत का कार्य किया है। किसान नीत इन अध्यादेशों का राजनीतिक व सोशल मीडिया एवं ‘व्हाट्स एप’ विश्वविद्यालय में विरोध रचा जा रहा है। जिनको कृषि नीति व मंडी प्रबन्धन का ककहरा भी नहीं पता वह भी इसके विरोध में कुतर्क गढ़ रहे हैं। केन्द्र सरकार विशेषकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस फैसले पर अपना एकाधिकार बताने व सरकार की पीठ थपथपाने के बजाए परंपरागत रूप से इस मामले में भी कांग्रेस को लपेटने की बेकार कोशिश में खद का श्रेय गंवा रही है। बीजेपी नेता कांग्रेस के 2014 के लोकसभा चुनावी घोषणापत्र में एपीएमसी अधिनियम को निरस्त करने के उनके थोथे वादे का उल्लेख कर उन्हें इसकी सृजनता का श्रेय प्रदान कर रहे हैं। कांग्रेस को तो पता ही था कि वह शासन में नहीं आने वाले इसलिए घोषणापत्र तो … मैं 1993-98 के दौरान मंडी समिति का पदाधिकारी रहा हूं, इसलिए यह जानता हूं कि ‘आढ़ती, एपीएमसी व धनवान सरमायेदार किसानों’ का गठजोड़ करोड़ों लघु और सीमान्त किसानों को ठगने के पर्याय बन गए हैं।
एक किसान और उसका परिवार वर्ष भर विपरीत प्राकृतिक परिस्थिति, धनाभाव व नाकारा सरकारी नीतियों के बावजूद अपनी कड़ी मेहनत व संघर्षशील जज्बे के कारण हर बार पहले से अधिक पैदावार करता है लेकिन निर्वाह मात्र के लिए कमाई कर पाता है। उसके हाथ खाली ही रहते हैं, जबकि मंडी का एक आढ़ती केवल दलाली (कमीशन) के बल पर न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध है बल्कि शानो-शौकत से जीता है। मंडी समिति के सदस्य व आढ़ती करोड़ोंपति हो जाते हैं और किसान खाकपति ही रहता है।
‘आढ़ती, एपीएमसी व धनवान सरमायेदार किसानों’ का गठजोड़ कागजों में छदम् व्यापारी, अच्छी-खासी फसलों की गुणवत्ता को दोयम दर्जे का बताकर छदम् कंपनी बना औने-पौने दामों में किसानों को फसल बेचने पर मजबूर करते हैं, मंडी कर व दलाली के फर्जी पर्चे बनाकर आम किसान व सरकार से छल करते हैं।
राज्य सरकारें मंडी राजनीति के माध्यम से किसानों पर अंकुश व उनसे होने वाली कमाई पर पकड़ खोने के डर से इस कृत्रिम विरोध को हवा देकर, किसान हितैषी होने का दिखावा कर रही हैं। एनडीए में सत्ता सुख भोग इस्तीफे की नौटंकी करने वाले दल खुद सरमायेदार किसानों के साथी हैं।
देश में लगभग 21.6 करोड़ सीमांत व लघु किसान हैं जिनके पास केवल एक से दो हेक्टेयर कृषि भूमि है। जोत का आकार छोटा है एवं खेती की लागत बढ़ती जा रही है, उत्पादन के उपरान्त ढुलाई व मंडियों में अपने अनाज की उचित दाम पर खरीद हेतु जुगाड़ के चलते लागत के मुकाबले बाजार मूल्य काफी कम मिलता है।
सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा देर से करती है, उस पर ढुलाई वाहनों की अनुपलब्धता व मंडी समिति का शोषण उस पर भारी पड़ता है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चक्रवात आदि से खेत में खड़ी/कटी फसलों को नुकसान का अंदेशा तथा मौसमानुसार अगली फसल के लिए बीज रोपण करना होता है इसलिए किसान को जल्द से जल्द अपनी फसल बेचनी होती है। उसकी इस कमजोरी का फायदा मंडी माफिया उठाता है।
क्या कभी सुना है कि किसी सरमायेदार किसान, मंडी समिति के पदाधिकारी या आढ़ती ने गरीबी व कर्ज के कारण आत्महत्या की है? लघु और सीमान्त किसान ही हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष आत्महत्या का जहर पीने को मजबूर होते हैं। यहां यह बताना भी जरूरी है कि भारत सरकार ने संसद में तीन अध्यादेश प्रस्तुत किए हैं।
किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) 2020 का नया कानून, आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 एवं मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा 2020 (सशक्तीकरण और संरक्षण)।
किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) 2020 के नये कानून में किसान को अपना उत्पादन स्थानीय स्तर पर या देश के किसी भी हिस्से में जनता, कंपनी या मंडी को बेचने की छूट मिलेगी। इससे एक ओर तो किसान के हाथ में जल्द व नकद पैसा आएगा, दूसरी ओर मंडी समिति टैक्स, आढ़ती की दलाली व व्यापारी का लाभांश बचने से किसान से जनता को उत्पादन सस्ते दाम पर मिलेगा। या फिर कहा जा सकता है कि बिचौलियों का कमीशन बचने से किसान को अपनी उपज का ज्यादा दाम मिल सकेगा।
मंडी टैक्स की दरें भी एक खाद्यान्न से दूसरे खाद्यान्न में, एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग हैं, जैसे पंजाब/हरियाणा के मुकाबले दिल्ली में मंडी टैक्स काफी कम है तो ऐसे में पंजाब या हरियाणा का किसान अपना उत्पादन दिल्ली में क्यों न बेचकर मुनाफा ज्यादा कमाए। मुझे याद है कि जनता पार्टी की सरकार ने भी इस प्रकार की नीति अपनाई थी जिससे महंगाई कम हुई थी।
अब तक लागू आवश्यक वस्तु अधिनियम के अनुसार सरकार किसी वस्तु को आवश्यक घोषित कर, उस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित कर सकती है और भंडारण सीमा लागू कर सकती है यानि एक निश्चित मात्रा में खाद्य पदार्थों को आपको भंडारण करना ही होगा, आप उसे नहीं बेच सकते हो। भारत में भंडारण की सुविधा अपर्याप्त है, सरकारी गोदामों में भी अनाज सड़ने व बरबाद होने की कई घटनाएं होती रहती हैं। खाद्य पदार्थों के भंडारण पर मौजूदा प्रतिबंधों को हटाने के लिए भारत सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर रही है।
तीसरा, मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा 2020 (सशक्तीकरण और संरक्षण) का कानून है जिसमें कंपनियों और बड़े व्यवसायियों को अनुबंध पर भूमि ले खेती करने/कराने की छूट मिलेगी। यह थोड़ा जटिल है, इसे और पारदर्शी, सशक्त व किसान संरक्षित बनाए जाने की आवश्यकता है।
केन्द्र सरकार व सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को चाहिए कि वह लगभग 21.6 करोड़ लघु और सीमान्त किसान को भरोसे में लें, जो सोशल मीडिया एवं ‘व्हाट्स एप’ विश्वविद्यालय से दूर रहते हैं उन्हें संपर्क कर उनका हित समझाएं, इससे कम दामों पर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता से लाभान्वित होने वाली जनता को जानकारी प्रदान करें।

(लेखक जगदीश ममगांई, दिल्ली से संबंधित दो किताबों के लेखक, शहरी मामलों के विशेष जानकार, दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष, एनजीओ स्वतंत्र प्रहरी के अध्यक्ष, वीसी चयन समिति कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट के पूर्व सदस्य हैं।)