चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम विद्यार्थियों व शिक्षकों के साथ छल, महंगाई के दौर में शिक्षण खर्च का अतिरिक्त बोझ : जगदीश ममगांई

-दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा स्नातक पाठ्यक्रम को 4 वर्षीय किये जाने पर विरोध जताया

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट के सदस्य रहे जनता विद्यार्थी मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष जगदीश ममगांई ने दिल्ली विश्वविद्यालय में आगामी सत्र से चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पुनः लागू किए जाने पर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को पत्र लिखकर, इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने का आग्रह किया गया है।

जगदीश ममगांई ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने इससे पूर्व भी वर्ष 2013 के सत्र से स्नातक पाठ्यक्रम को तीन वर्ष से चार वर्ष कर दिया था, विद्यार्थियों व शिक्षकों ने इसके विरुद्ध विरोध-प्रदर्शन किए तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी इस प्रस्ताव को न केवल नकार दिया था बल्कि दिल्ली विश्वविद्यालय को दिए जा रहे अनुदान और डिग्री की मान्यता खत्म करने की चेतावनी भी दी थी। छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् व दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ ने भी चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम किए जाने का विरोध किया था।

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तत्कालीन विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने न केवल इसका विरोध किया था बल्कि अपने घोषणा पत्र में भी कहा था कि वो इस फैसले को वापस कराएंगे। स्नातक पाठ्यक्रम को चार वर्षीय करने की आवश्यकता एवं औचित्य सिद्ध करने में असफल रहने पर अंतोगत्वा वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के उपरान्त, दिल्ली विश्वविद्यालय ने इसे वापस ले लिया गया था।

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ममगांई ने आगे कहा कि दिल्ली के छात्रों के साथ ऐसे प्रयोग कब तक चलते रहेंगे? शिक्षण का एक वर्ष और बढ़ाने से विद्यार्थियों को आखिर क्या लाभ होगा? महंगाई के दौर में सीमित आय में अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने वाले माता-पिता पर एक साल की फीस और शिक्षण के खर्चे का यह अतिरिक्त बोझ होगा तथा एक और साल तक बच्चा घर-परिवार के लिए कमाई नहीं कर सकेगा। विश्वविद्यालय में पहले ही शिक्षकों के खाली पदों पर नियुक्ति नहीं हो रही है, एक वर्ष शिक्षण तो और बढ़ा देंगे पर शिक्षक कहां से आएंगे?
यह समझा जा सकता है कि बेरोजगारों का लंबी होती सूची में स्नातक कर निकले लाखों नए युवाओं को एक साल तक सूची में न जुड़ने से बढ़ते बेरोजगारों की लंबी होती सूची कुछ समय के लिए रोक, सरकार राहत की सांस ले सकती है। पर शिक्षा प्राप्त करने के लिए साल बढ़ाने की बजाए बेहतर होता कि साल कम कर सरकार रोजगारन्मुख शिक्षण देने की पहल करती, रोजगार सृजन के नए अवसरों को तलाशती जिससे बेरोजगार युवाओं में उपज रही कुंठा पर अंकुश लग सकता है।