बंगाल में छिन सकती है दीदी की कुर्सी!

-विधानसभा की सदस्यता में फंसा पेंच
-विधान परिषद के गठन पर भी संशय

एसएस ब्यूरो/कोलकाता
राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की चर्चा के बीच बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कुर्सी एक और मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। अगले चार महीनों में दीदी की मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन सकती है। माना जा रहा है कि उनकी कुर्सी संवैधानिक संकट की वजह से जा सकती है। ऐसे में उन्हें खुद इस्तीफा देकर किसी और को राज्य की कमान सोंपनी होगी। कारण है कि वह अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं, ऐसे में वह छह महीने से ज्यादा सूबे की मुख्यमंत्री नहीं रह सकती हैं।

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बता दें कि जिस तरह से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने संवैधानिक संकट और अनुच्छेद 164 का हवाला देते हुए इस्तीफे की बात कही है। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार कोई मंत्री अगर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं होता है तो उस समय सीमा के खत्म होने के बाद मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा। इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी ही दिख रही है। यहां सीएम ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं।

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ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के दिन से छह महीने के अंदर यानी 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता है। उन्होंने अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है। लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के अंदर चुनाव हो सकें। कोरोना की वजह से केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सभी चुनाव स्थगित किए हुए हैं। चुनाव प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में अगर नवंबर तक भवानीपुर उपचुनाव के बारे में चुनाव आयोग फैसला नहीं लेता है तो ममता की गद्दी के लिए भी खतरा हो सकता है।
खाली गया ममता का विधान परिषद वाला दांव
फिलहाल पश्चिम बंगाल में विधान परिषद नहीं है। जब आयोग विधानसभा चुनाव करा रहा था तब कई राजनीतिक दलों ने आयोग पर लोगों की जान से खेलने के आरोप लगाए थे। ऐसे में अब जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि चुनाव कराने से किसी की जान को खतरा नहीं है तो चुनाव होने की सूरत बनती नहीं दिख रही है। ममता ने हालातों को समझते हुए विधान परिषद वाला रास्ता निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने विधानसभा के जरिए प्रस्ताव पास कराया कि राज्य में विधान परिषद का गठन हो। लेकिन बिना लोकसभा की मंजूरी के यह संभव नहीं है। केंद्र सरकार के साथ उनके रिश्ते जगजाहिर हैं। ऐसे में विधान परिषद वाला रास्ता भी मुमकिन नजर नहीं आ रहा है।
सीएम उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर आया था संकट
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी इसी तरह की मुश्किल में फंस चुके हैं। उन्होंने 28 नवंबर 2019 को जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो किसी सदन के सदस्य नहीं थे। उन्हें 27 मई 2020 तक किसी सदन का सदस्य बनना था। उनके लिए तसल्ली की बात यह थी कि महाराष्ट्र में विधान परिषद है और उसकी सात सीटों के लिए अप्रैल 2020 में चुनाव होने थे। अन्यथा ठाकरे की सीएम की कुर्सी भी जा सकती थी।