‘सत्ता बदली पर नहीं हुआ राजधानी की शिक्षा व्यवस्था में सुधार!’

-‘ठोस व्यवस्था करने के बजाय स्वीमिंग पूल्स में कमियां एवं विद्यालय भवनों में दरारें ढूंढते रहे मंत्री’

जगदीश ममगांई

देश की राजधानी दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के बावजूद शिक्षा व्यवस्था कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। सरकार बदलने के बाद विद्यार्थी, अभिभावक, शिक्षक आदि शिक्षा व्यवस्था बेहतर होने की बजाए चरमरा जाने से परेशान हैं। आम आदमी पार्टी सरकार के शासन में केन्द्र-एलजी-दिल्ली सरकार के टकराव के कारण जो कमियां थी, उम्मीद थी कि अब सर्वत्र बीजेपी शासन के चलते दिल्ली वासी लाभान्वित होंगे और राजधानी की शिक्षा व्यवस्था देश में सबसे बेहतरीन होगी।
1 अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र आरंभ हो गया है लेकिन अधिकतर सरकारी विद्यालयों में सभी विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं, कई विद्यालयों में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षा के लिए जाने वाले विद्यार्थियों के मूल विषयों तक के शिक्षक नहीं हैं। अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए माता-पिता के पास उन्हें कोचिंग संस्थान में भेज कर आर्थिक दबाव झेलना ही विकल्प है। दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों के 64,096 पद स्वीकृत हैं। परंतु लगभग 34 हजार नियमित शिक्षक ही हैं, इनमें से हर माह सेवानिवृत भी हो रहे हैं। दिल्ली नगर निगम के विद्यालयों में भी लगभग 8 हजार नियमित शिक्षकों की कमी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी नीत केन्द्र सरकार की नई ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ दिल्ली में लागू है। इसमें गेस्ट टीचर प्रणाली को वर्ष 2022 तक पूर्णतया समाप्त कर स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति करने को कहा गया है। साथ ही कक्षा 9 से 12 के दौरान हर स्कूली छात्र को कम से कम एक व्यवसायिक पाठ्यक्रम चुनना जरुरी है। परंतु प्रत्येक व्यवसायिक पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली सरकार ने अभी तक शिक्षक ही नियुक्त नहीं किए हैं।
शैक्षणिक सत्र आरंभ होते समय, लगभग 3 माह पूर्व मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जल्द से जल्द रिक्त पदों पर नियुक्ति करने का आग्रह किया गया था। दिल्ली के सरकारी व निगम, दोनों के स्कूलों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति दिल्ली सरकार के ‘दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड’ के माध्यम से होनी है। नियुक्ति करने के लिए दिल्ली सरकार ग्रीष्मकाल की छुट्टियों का लाभ उठाते हुए 38 हजार नियमित शिक्षकों की भर्ती कर सकती थी। दैनिक-अनुबंधों पर काम कर रहे पूर्ववर्त्ती गेस्ट टीचरों की नियुक्ति का नवीनीकरण किया गया है, इसके बावजूद दिल्ली सरकार के 1070 विद्यालयों में से 500 से अधिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है। लेकिन दिल्ली सरकार के मंत्री स्कूलों के स्वीमिंग पूल में कमी ढूंढने व निर्मित भवनों में दरार तलाशने में जुटे रहे। विद्यालयों के भवन कितने ही शानदार बन जाएं लेकिन बिना शिक्षकों के शिक्षा कैसे मिल पाएगी!
दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनते ही उद्यमिता मानसिकता पाठ्यक्रम (ईएमसी), हैप्पीनेस पाठ्यक्रम, वैल्यू ऐजूकेशन की उपयोगिता व प्रदर्शन की समीक्षा किए बिना इसे निष्क्रिय कर दिया है। किराड़ी व सीमापुरी में नए बने तवद्यालयों में बच्चों का एडमिशन नहीं किया क्योंकि बिजली का कनेक्शन लगाने के लिए शिक्षा विभाग ने कई महीने पहले मांग के बावजूद उसके लिए बजट जारी नहीं किया। जो बिजली का कनेक्शन 24 घंटे में लग जाता है, शिक्षा व बिजली मंत्री एक ही होने के बावजूद महीनों तक नए बने विद्यालय भवनों में बिजली क्यों नहीं लगी? न्यायालय ने फटकार लगाई तो स्कूल चालू हो गया!
अप्रैल में शैक्षणिक सत्र शुरु होने से बेतहाशा बढ़ी फीस के भुगतान करने में असमर्थ माता-पिता लगभग 3 महीने से अपने बच्चों के भविष्य की चिंता में परेशान होकर मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा विभाग व विद्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं। कुछ माता-पिता कोर्ट भी गए। दिल्ली सरकार ने ’दिल्ली स्कूल फीस (फीस निर्धारण पारदर्शिता नियमन) विधेयक 2025’ के निमित्त 13 मई को सदन बुलाया पर रद्द कर दिया। 10 जून को दिल्ली सरकार ने कैबिनेट में अध्यादेश पारित करने की बात कही पर 23 दिन के बाद भी अधिसूचित क्यों नहीं हुआ?
(लेखक जगदीश ममगांई दिल्ली संबंधित मामलों के विशेष जानकार हैं, दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी एवं दिल्ली नगर निगम में कई पदों पर रह चुके हैं, साथ ही दिल्ली यूनिवर्सिटी कोर्ट के सदस्य व कोटा विश्वविद्यालय उप-कुलपति चयन समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं)