यादों के झरोखे सेः भागीरथ पैलेस यानी बेगम समरू का महल

यादों के झरोखे सेः

पूनम सिंह/ नई दिल्ली
साल 1639 में मुगल बादशाह शाहजहां ने मुगलिया सल्तनत की राजधानी को आगरा से स्थानांतरित कर दिल्ली लाने का निर्णय किया था। बादशाह आगरा की भयंकर गर्मी से परेशान थे। शाहजहां को अपनी नई राजधानी शाहजहानाबाद और लालकिले का निर्माण कराने में करीब नौ साल लगे। सन् 1648 में जाकर फारसी मिश्रित वास्तुकला पर आधारित शाहजहानाबाद का काम पूरा हो सका।

          1857 में कुछ इस तरह की दिखती थी बेगम समरू की कोठी

नए शहर की फसील के दरवाजों के नाम उन स्थानों पर रखे गए जहां के लिए उन दरवाजों से रास्ते जाते थे। शाहजहानाबाद के 13 दरवाजे बनवाए गए। कश्मीरी दरवाजा, अजमेरी दरवाजा, लाहौरी दरवाजा, काबुली दरवाजा, दिल्ली दरवाजा आदि। दिल्ली के नाम पर दिल्ली दरवाजे का नाम कोई हैरत की बात नहीं है क्योंकि शाहजहां ने जो शहर बनवाया था वह दिल्ली नहीं शाहजहाबाद था और दिल्ली उसके दक्षिण में थी।
शाहजहां ने यहां कुछ खास इमारतों जैसे जामा मस्जिद, फतेहपुरी मस्जिद और अकबराबादी मस्जिद (अब यहां सुभाष पार्क है), बेगम का बाग (वर्तमान गांधी ग्राउंड), तीस हजारी बाग (अब यहां कोर्ट और कार्यालय है) सहित महल और शानदार हवेलियां बनवाईं। इन्हें बनवाने में जहांआरा बेगम का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
सन् 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली में मुगलिया तख्त को पलटने के साथ दिल्ली की काया पलट थी। शाहजहां के दौर की बहुत-सी इमारतें, बाजार और मस्जिदें ढहा दी गई। जो कुछ बचा रहा उन इमारतों का आकार और रूप बदल गया।
जामा मस्जिद के आस पास के महल और चांदनी चौक की हवेलियां बहुत शानदार बनाई गई थीं। कला महल शाहजहां के काल की इमारत थी, किला बनने से पहले शाहजहां आगरा से आकर यहां ठहरा करते थे। अब यहां स्कूल की इमारत है। रंग महल, चांदनी महल, शीश महल, इमली महल मुगल काल की इमारतें थीं। रंग महल मिर्जा जमशेदबख्त ने बनवाया था।
चांदनी महल और शीश महल मुहम्मद शाह रंगीले के जमाने में बना था। इमली महल भी एक शानदार इमारत थी। सन् 1857 के बाद अंग्रेजों ने इसे नीलाम कर दिया और लाला सुल्तान सिंह ने खरीद कर इसे एक नए ढंग से बनवाया।
जामा मस्जिद के दक्षिणी दरवाजे के सामने सड़क मटिया महल का बाजार कहलाती है। यहां दाई ओर एक बड़ा महल था। शाहजहां ने यह महल भी लाल किला बनने से पहले हरम की औरतों के ठहरने के लिए बनवाया था। इस बाजार की सबसे पुरानी हवेली लाल किले के लाहौरी दरवाजे के पास नहर के किनारे स्थित थी। यह नवाब शाइस्ता खां की बारहदरी कहलाती थी। शाइस्ता खां शाहजहां के ससुर और उनके मंत्री आसफ खां के बेटे थे। मुगल शासन के अंतिम दौर में यह हवेली टूटकर बराबर हो गई थी।
लाल किले से थोड़ी दूर आगे चांदनी चौक में दाएं हाथ को कुमार टाकीज के पीछे अब से करीब दो सौ बरस पुरानी एक शानदार ऐतिहासिक इमारत है जिसे आजकल भागीरथ पैलेस कहा जाता है। इसे पहले बेगम समरू की कोठी कहा जाता था।

           आजादी के बाद का बेगम समरू की कोठी का चित्र

शाह आलम द्वितीय ने बेगम समरू की बहादुरी और वफादारी से खुश होकर बेगम के बाग (शाही बाग) का एक हिस्सा उसे इनाम में दे दिया था। शाहजादी जहांआरा बेगम के लगवाए हुए इस बाग में इससे पहले किसी मुगल बादशाह ने कभी कोई इमारत नहीं बनाई थी। बेगम समरू की कोठी विदेशी वास्तुकला का नमूना है (बेगम समरू की पुरानी हवेली जो जरनैल बीबी की हवेली कहलाती थी, कोड़िया पुल के पास उस जगह थी जहां आजकल रेलवे का गोदाम है। जब अंग्रेजों ने 1857 के बाद कलकत्ता दरवाजे से लेकर काबुली दरवाजे तक सड़क निकाली और रेल की पटरी बिछाई तो यह हवेली भी ढहा दी गई)।
वर्ष 1857 में बेगम समरू की कोठी में दिल्ली बैंक था। यहां हिन्दुस्तानी सेनाओं ने दिल्ली वालों से मिलकर बड़ा जबरदस्त हमला किया था। तीन घंटे की लगातार लड़ाई में बैंक का अंग्रेज मैनेजर ब्रेसफोर्ड मार डाला गया और सिपाहियों ने बैंक को लूट लिया। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बेगम समरू की कोठी को दिल्ली के प्रसिद्व वकील शिवनारायण ने खरीद लिया था लेकिन आजकल यहां बैंक भी है, होटल भी है और बहुत सी दुकानें भी हैं और यह कोठी भगीरथ पैलेस कहलाती है।
-क्रमशः जारी…