फिर भंग होने की ओर MCD का एक और कदम… बिना आयुक्त और निगम सचिव के पास हुआ ‘स्टेंडिंग कमेटी’ का ऐतिहासिक पस्ताव

-बड़े प्रस्तावों को बिना स्टेंडिंग कमेटी के गठन के पास करने के मामले में कानूनी दांव-पेंच में फंस सकती हैं शैली ओबरॉयः विशेषज्ञ
-बीजेपी पार्षदों ने निगम सचिव को बनाया बंधक, कार्यालय के गेट के आगे बैठे रहे निगम पार्षद

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्लीः 15 जनवरी।
दिल्ली नगर निगम (MCD) के इतिहास में सोमवार को ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। ऐसा पहली बार हुआ जब आम आदमी पार्टी (AAP) शासित दिल्ली नगर निगम की स्टेंडिंग कमेटी (Standing Committee) के अधिकारों को सदन को देने का प्रस्ताव पास कर दिया गया। ना बैठक की औपचारिक शुरूआत हुई, ना किसी ने ऐजेंडा में शामिल प्रस्तावों को पढ़ा, नहीं निगम आयुक्त मौजूद थे और नाही निगम सचिव अपनी कुर्सी पर थे। परंतु मेयर शैली ओबरॉय ने करीब साढ़े चार घंटों के लंबे इंतजार के बाद सदन में आकर ‘‘दोनों प्रस्ताव पास’’ कह दिया।
खास बात यह रही कि मेयर ने बैठक कार्यवाही को अगली बैठक तक के लिए स्थगित करने की घोषणा भी नहीं की। बता दें कि बैठक की शुरूआत दोपहर 2 बजे से होनी थी, परंतु बीजेपी पार्षदों के हंगामे की वजह से बैठक नहीं हो सकी। बीजेपी के कुछ पार्षदों ने निगम सचिव कार्यालय के दरवाजे के आगे बैठकर उन्हें एक तरह से बंधक बना लिया। मामला दिल्ली पुलिस तक पहुंचा और पुलिस अधिकारियों ने बीजेपी पार्षदों के साथ बातचीत करके निगम सचिव को करीब साढ़े पांच बजे सदन में पहुंचाया।
परंतु सदन में बीजेपी पार्षदों ने स्टेंडिंग कमेटी के अधिकारों को सदन को दिये जाने के विरोध में मेयर के आसन के आसपास डेरा जमा दिया। कुछ मिनट के इंतजार के बाद निगम सचिव वापस अपने कार्यालय में चले गये। इसके बाद करीब 6ः30 बजे मेयर शैली ओबरॉय सदन में आईं और भारी विरोध और हंगामे के बीच एजेंडा में शामिल दो प्रस्तावों को पास करने की घोषणा कर दी। संविधान विशेषज्ञों और नगर निगम की राजनीति के जानकारों का कहना है कि एमसीडी एक्टः 1957 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जहां निगम की सबसे पॉवरफुल कमेटी के अधिकारों को सीधे सदन को दे दिया जाये। उनका यह भी कहना है कि मेयर के द्वारा अपने अधिकारों के संविधान विरूद्ध प्रयोग किये जाने की वजह से उपराज्यपाल निगम को भंग करने की सिफारिश भी कर सकते हैं।
संविधान के विरूद्ध है निर्णयः सुभाष आर्य
दिल्ली नगर निगम की सत्ता में कई वर्षों तक नेता सदन एवं मेयर रह चुके सुभाष आर्य का कहना है कि एमसीडी एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जहां निगम की स्थायी समिति के अधिकारों को सीधे सदन को दिया जा सके। संविधान में स्टेंडिंग कमेटी के गठन का प्रावधान है। इस कमेटी के कुल 18 सदस्य होते हैं, इनमें से 12 सदस्य सीधे 12 जोन से चुनकर आते हैं और 6 सदस्यों का चुनाव सीधे सदन से होता है। स्टेंडिंग कमेटी का एक चेयरमैन और एक डिप्टी चेयरमैन होता है। यही कमेटी नगर निगम से जुड़े सभी बड़े मामलों पर विचार-विमर्श के बाद निर्णय लेती है और इसके बाद उन प्रस्तावों को सदन की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। सदन को यह अधिकार होता है कि वह इसे स्वीकार करे या फिर अस्वीकार करे या इसे पुनर्विचार के लिए स्टेंडिंग कमेटी को वापस भेज दे। परंतु कानून में कहीं भी स्टैंडिंग कमेटी के अधिकारों को सदन को देने का प्रावधान नहीं है। अतः सोमवार को दिल्ली नगर निगम के सदन की बैठक में लिया गया निर्णय असंवैधानिक है।
बिना स्टेंडिंग कमेटी की सिफारिश के लिये गये निर्णयों के चलते कानूनी दांव-पेंच में फंस सकती हैं मेयरः शर्मा
एडवोकेट राकेश शर्मा का कहना है कि नगर निगम के सभी बड़े निर्णय निगम की स्टैंडिंग कमेटी लेती है। आम तौर पर निगम में मेयर के द्वारा किसी भी कार्य के लिए एंटीसिपेटरी इजाजत देने का चलन बन गया है। जबकि ऐसा उन्हीं मामलों में किया जा सकता है, जब बहुत ज्यादा इमरजेंसी का मामला हो। इसके बावजूद ऐसे प्रस्तावों को स्टेंडिंग कमेटी की अगली बैठक में पास कराने का प्रावधान है। परंतु नगर निगम के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब सदन कार्य कर रहा हो और स्टेंडिंग कमेटी का गठन नहीं हुआ है। यदि मेयर शैली ओबरॉय ने कोई बड़े निर्णय लिये हैं तो वह कानूनी दांव पेंच में फंस सकती हैं, क्योंकि ऐसे निर्णय केवल स्टेंडिंग कमेटी की बैठकों में पास करने के बाद ही लिये जा सकते हैं।
एडवोकेट राकेश शर्मा ने कहा कि यह एक तरह से एमसीडी के भंग होने की ओर बढ़ाया गया एक और कदम है। कारण है कि आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने के बाद से वार्ड कमेटियों और स्टेंडिंग कमेटी के साथ ही विभिन्न समितियों एवं उपसमितियों का गठन नहीं किया है। जबकि इन समितियों के लिए हर वर्ष चुनाव कराये जाने का प्रावधान है। स्टेंडिंग कमेटी के मामले में लिये गये निर्णय के बाद निगम आयुक्त की रिपोर्ट पर उपराज्यपाल सीधे केंद्र सरकार से नगर निगम को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।
बीजेपी पार्षदों ने निगम सचिव को बनाया बंधक


दिल्ली नगर निगम के सदन की बैठक शुरू होने से पूर्व ही कुछ बीजेपी पार्षद निगम सचिव के कार्यालय के दरवाजे के बाहर धरने पर बैठ गये। जिसकी वजह से निगम सचिव अपने कार्यालय से बाहर ही नहीं निकल सके। यह जद्दोजेहद करीब साढ़े तीन घंटे तक चलती रही। इसके पश्चात दिल्ली पुलिस के समझाने-बुझाने के बाद बीजेपी पार्षद निगम सचिव कार्यालय के दरवाजे से हटे और उन्हें सदन की बैठक में जाने दिया गया। परंतु निगम सचिव कुछ समय इंतजार करने के बाद अपने कार्यालय में वापस लौट गये, क्योंकि मेयर के आसन के आसपास बीजेपी की महिला पार्षदों ने कब्जा कर रखा था।
सदन को कार्यव्यवस्था को बदलने का अधिकार है, कानून बदलने का नहींः विशेषज्ञ
संविधान विशेषज्ञों का कहना है दिल्ली नगर निगम का सदन सवोच्च है और उसे कार्य की व्यवस्था को बदलने का अधिकार है। परंतु एमसीडी एक्ट को बदलने का अधिकार नहीं है। क्योंकि यह कानून देश की संसद से पास होता है, अतः इसमें कोई बदलाव भी संसद के द्वारा ही किया जा सकता है। फिलहाल जो कानून लागू है इसमें स्टेंडिंग कमेटी के गठन का अधिकार है, इसके अधिकारों को स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि दिल्ली नगर निगम के सदन ने कई बार पार्षदों के भत्तों को बढ़ाने और वेतन दिये जाने का प्रस्ताव पारित किया है। इसके बावजूद ना तो पार्षदों को वेतन मिलना शुरू हुआ है और नाही उनके भत्तों में कोई बढ़ातरी हो सकी है। ऐसे में सोमवार को स्टेंडिंग कमेटी के अधिकारों को सदन के अधिकार क्षेत्र में स्थानांतरित किये जाने का निर्णय भी कोई मायने नहीं रखता है।
बीजेपी पार्षदों ने आयुक्त को सोंपा ज्ञापन
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री वीरेंद्र सचदेवा ने सदन की बैठकें आयोजित करने की कोशिश करके दिल्ली विधानसभा सदन और दिल्ली नगर निगम के सामान्य सदन की संवैधानिक पवित्रता को नष्ट करने के लिए आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की निंदा की है। सचदेवा ने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि आम आदमी पार्टी ने निरंकुश तरीके से आज एमसीडी की स्थायी समिति की शक्तियों को एमसीडी के जनरल हाउस में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव लाकर दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की, जिससे हमारे भाजपा पार्षदों को कड़ा विरोध दर्ज कराना पड़ा।
विपक्ष के नेता सरदार राजा इकबाल सिंह के नेतृत्व में हमारे पार्षदों ने मुखर विरोध दर्ज कराया और महापौर को असंवैधानिक एजेंडे को पेश करने नही दिया और अंततः महापौर को बिना किसी कार्यवाही के सदन को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सचदेवा ने कहा है कि स्थायी समिति चुनाव में हार के डर से आम आदमी पार्टी के नेता मनोनीत पार्षदों के मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गये और कोई कानूनी रोक नहीं होने के बावजूद स्थायी समिति का चुनाव नहीं होने दे रहे हैं। विपक्ष के नेता सरदार राजा इकबाल सिंह ने कहा है कि आम आदमी पार्टी के असंवैधानिक कृत्यों ने आज हमें दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 की पवित्रता को बचाने के लिए एमसीडी सदन की बैठक को बाधित करने के लिए मजबूर किया है।