-एनआईए कोर्ट ने सुनाया फैसला
एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली, 25 मई, 2022
प्रतिबंधित संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चीफ यासीन मलिकको टेरर फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यासीन मलिक को अलग-अलग धाराओं में सजा सुनाई गई है। दो धाराओं के तहत उम्रकैद जबकि 4 धाराओं के तहत 10 साल की सजा मिली है। यासीन मलिक की सारी सजा एक साथ चलेंगी। हालांकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अलगाववादी नेता यासीन मलिक के लिए फांसी की सजा की मांग की थी।
कुल 9 धाराओं में सुनाई गई सजाकुल 9 धाराओं में सुनाई गई सजा
कोर्ट ने यासीन मलिक को कुल 9 धाराओं में सजा सुनाई है। साथ ही जुर्माना भी लगाया गया है। इसमें 120बी में 10 साल की सजा और 10 हजार जुर्माना, 121 में उम्रकैद की सजा और 10 हजार जुर्माना, 121 ए में 10 साल की सजा और 10 हजार जुर्माना, यूएपीए की धारा 13 में 5 साल और 5 हजार जुर्माना, यूएपीए की धारा 15 में 10 साल की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माना, यूएपीए की धारा 17 में उम्रकैद सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना, यूएपीए की धारा 18 में 10 साल की सजा और 10 हजार जुर्माना लगाया है। इसके अलावा यूएपीए की धारा 38 और 39 में 5 साल की सजा और 5 हजार रुपये जुर्माना लगाया गया है।
यासीन मलिक को एनआईए कोर्ट ने टेरर फंडिंग के एक केस में दोषी ठहराया था। यासीन मलिक ने केस की सुनवाई के दौरान कबूल लिया था कि वह कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में शामिल था। अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने टेरर फंडिंग मामले में अवैध गतिविधियां (रोकथाम) कानून (न्।च्।) के तहत लगाए गए आरोपों समेत उस पर लगे सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया था। मलिक ने न्यायाधीश से कहा था कि वह अपनी सजा का फैसला अदालत पर छोड़ रहा है। कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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एनआईए कोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के सरगना यासीन मलिक को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत 19 मई को दोषी करार दिया था। कोर्ट ने एनआईए के अधिकारियों को मलिक पर जुर्माना लगाए जाने के लिए उसकी वित्तीय स्थिति का आकलन करने के निर्देश दिए थे। मलिक ने अदालत में कहा था कि वह खुद के खिलाफ लगाए आरोपों का विरोध नहीं करता।
टेरर फंडिंग केस में क्या-क्या कबूला?
यासीन मलिक पर आपराधिक साजिश रचने, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, अन्य गैरकानूनी गतिविधियों और कश्मीर में शांति भंग करने का आरोप है। मलिक ने इस मामले में अपना गुनाह कबूल कर लिया था। सुनवाई की आखिरी तारीख पर उसने अदालत के सामने बताया कि वह धारा 16 (आतंकवादी अधिनियम), 17 (आतंकवादी अधिनियम के लिए धन जुटाने), 18 (आतंकवादी कृत्य करने की साजिश), यूएपीए की धारा 20 (एक आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होने के नाते) और भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और 124-ए (देशद्रोह) सहित अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का मुकाबला नहीं करेगा।
यासीन मलिक के अलावा इन पर भी आरोप तय
कोर्ट ने पूर्व में, फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, शब्बीर शाह, मसरत आलम, मोहम्मद युसूफ शाह, आफताब अहमद शाह, अल्ताफ अहमद शाह, नईम खान, मोहम्मद अकबर खांडे, राजा मेहराजुद्दीन कलवल, बशीर अहमद भट, जहूर अहमद शाह वटाली, शब्बीर अहमद शाह, अब्दुल राशिद शेख और नवल किशोर कपूर समेत कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए थे।
लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और हिज्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के खिलाफ भी आरोपपत्र दाखिल किया गया, जिन्हें मामले में भगोड़ा अपराधी बताया गया है। यह मामला विभिन्न आतंकी संगठनों- लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल-मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और जैश-ए-मोहम्मद से संबंधित है। यह जम्मू-कश्मीर की स्थिति को बिगाड़ने के लिए आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।