गठबंधन को ना से कांग्रेस नेताओं को राहत
महागठबंधन में शामिल नेताओं के दबाव के बावजूद दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कॉंग्रेस के बीच तालमेल नहीं हो सका। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं के दवाब में आम आदमी पार्टी से गठबंधन से इंकार कर दिया था। लेकिन सोमवार के बूथ अध्यक्षों के सम्मलेन में राहुल गांधी ने आप सरकार और इसके नेताओं के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। दिल्ली की सत्ता से बेदखल कांग्रेस के नेताओं को राजधानी में मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का भारतीय जनता पार्टी को मिलजुलकर हराने का फार्मूला नहीं भाया। कांग्रेस के नेताओं को केजरीवाल की झाड़ू हाथ से पकड़ने से ज्यादा जनता के बीच मुहं दिखाने का डर था। इससे पहले केजरीवाल ने राहुल गांधी पर गठबंधन न करने के आरोप लगाते हुए दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से छह पर उम्मीदवार घोषित कर दिए थे। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव की तारीख तय होने के बाद भी विपक्षी दलों के नेताओं ने राहुल गांधी आम आदमी पार्टी के साथ सीटों पर तालमेल कर सकते हैं।
भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शन करने के लिए राहुल गांधी और कांग्रेस के नेताओं ने आम आदमी पार्टी के संयोजक केजरीवाल के साथ कई बार मंच भी सांझा किया पर अब दिल्ली में गठबंधन से इंकार के बाद फिर से राजनीति में नए समीकरण बनेंगे। केजरीवाल एक तरफ तो मोदी को हराने के लिए कांग्रेस के लिए सभी सीटें छोड़ने को तैयार थे और दूसरी तरफ उन्होंने पार्टी के छह उम्मीदवार भी घोषित कर दिए। छह उम्मीदवार घोषित करने से पहले केजरीवाल ने दिल्ली की सात सीटों परतालमेल के लिए फार्मूला भी तैयार कर लिया था। कांग्रेस और आप की तरफ से एक सीट भारतीय जनता पार्टी के बागी लोकसभा सदस्य और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के लिए छोड़ने का योजना बनाई गई थी। कांग्रेस और आप का गठबंधन टूटता देख शत्रुघ्न सिन्हा ने पहले से ही फिर से पटना से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। इसके मद्देजनर वह राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव से मिलने जेल भी गए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल मोदी को हराने और दिल्ली के पूर्ण राज्य के मुद्दे पर बार-बार कांग्रेस का साथ लेने की बात कर रहे हैं। केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन करने के लिए विपक्षी नेताओं के माध्यम से भी राहुल गांधी तक संदेश पहुंचाया। एक रैली को संबोधित करते हुए संयोजक अरविंद केजरीवाल ने यहां तक कह दिया था कि अगर भाजपा को हराना है, तो कांग्रेस को वोट करो। इसके साथ ही दोनों दलों में गठबंधन की चर्चा तेज हो गई थी। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को भरोसेमंद न मानते हुए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित आम आदमी पार्टी से हाथ मिलाने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं। दिल्ली के कांग्रेस के तमाम नेता केजरीवाल को हाथ का साथ देने के विरोध में हैं। हाल ही में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की हाल में हुई बैठक कर गठबंधन न करने का बात कही थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आठ विधायकों ने केजरीवाल को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था। केजरीवाल के रुख के कारण कांग्रेस ने समर्थन वापस से लिया था। अन्ना हजारे की अगुवाई की छेड़े गए आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा निशाने शीला दीक्षित सरकार पर साधे गए। शीला दीक्षित को सरकार बनने पर जेल भेजने की बात भी केजरीवाल ने कही थी। कांग्रेस के नेताओं ने कहना है कि आप से गठबंधन की बात तो दिल्ली विधानसभा में राजीव गांधी को मिले भारत रत्न का प्रस्ताव से बिगड़ गई थी। उस समय कांग्रेस के नेताओं ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ बड़े-बड़े बयान दिए थे। कांग्रेस से आप में गई अलका लांबा ने भी इस मुद्दे पर पार्टी छोड़ने की धमकी दी। आप ने बाद में इस मुद्दे पर बार-बार सफाई दी थी। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि केजरीवाल की 49 दिन की सरकार में उन्होंने सबसे ज्यादा दुख कांग्रेस को ही दिए।
कांग्रेस आलाकमान के केजरीवाल के प्रति नरम रुख के बावजूद दिल्ली कांग्रेस के नेता अभी तक बड़े जोर-शोर से यह ऐलान किया था कि आप से किसी भी कीमत पर गठबंधन नहीं किया जाएगा।एक बैठक के बाद दिल्ली कांग्रेस के 22 नेताओं ने बाकायदा यह साफ कर दिया है कि आप से गठबंधन नहीं किया जाए। इन नेताओं में प्रदेश कांग्रेस के तीनों कार्यकारी अध्यक्ष हारून यूसुफ,देवेंद्र यादव, राजेश लिलोठिया, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा,अर¨वदर सिंह लवली, पूर्व सांसद जय प्रकाश अग्रवाल, महाबल मिश्र,संदीप दीक्षित, पूर्व मंत्री मंगतराम सिंघल, मुख्य प्रवक्ता रमाकांत गोस्वामी आदि शामिल हैं। प्रदेश कांग्रेस की तरफ से दिल्ली मामलों के प्रभारी पी सी चाको साफ-साफ बता दिया गया है कि केजरीवाल से दूर रहना ही ठीक है।
आप और कांग्रेस की तरफ से गठबंधन तय होने से पहले ही सात सीटों के उम्मीदवार भी तय कर लिए थे। आम आदमी पार्टी की तरफ से कांग्रेस के लिए चांदनी चौक, नई दिल्ली और उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट छोड़ने की बात कही गई थी। इन सीटों पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, अजय माकन और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार को उम्मीदवार बनाया जाना था। पूर्वी दिल्ली से दो बार सांसद रहे संदीप दीक्षित को मध्यप्रदेश से चुनाव लड़ाया जाएगा। आम आदमी पार्टी उत्तर पूर्वी दिल्ली से दिलीप पांडेय,पूर्वी दिल्ली से आतिशी और दक्षिणी दिल्ली सीट से राघव चड्ढा को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया था। इस फार्मूले को लेकर दिल्ली कांग्रेस के नेता तैयार नहीं हुए
दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा, आप और कांग्रेस को मिले वोटों को लेकर केजरीवाल राहुल गांधी को मोदी को हराने का फार्मूला समझा रहे थे। केजरीवाल ने हिसाब किताब लगाया था कि पिछली बार लोकसभा में 46 फीसदी वोट भाजपा, 33 फीसदी आम आदमी पार्टी को और 15 फीसदी वोट कांग्रेस को मिला था। एक सर्वे के अनुसार केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि इस बार भाजपा 10 फीसदी नीचे जाएगी। यह कयास लगाया गया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट 10 फीसदी बढ़ सकते हैं। इस अनुमान के अनुसार लोकसभा चुनाव कांग्रेस को 25 फीसदी, आप 33 फीसदी और भाजपा 36 फीसदी वोट मिलेंगे। इस तरह एक बार फिर से भाजपा जीत जाएगी। साथ ही अगर ये 10 फीसदी वोट आम आदमी पार्टी को मिलते हैं तो उसका वोट 43 फीसदी हो जाएगा। ऐसे में दिल्ली की सातों सीट आम आदमी पार्टी जीत जाएगी। केजरीवाल का यह दावा कांग्रेस को हजम नहीं हो रहा है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि नगर निगम के चुनावों के साथ ही दिल्ली विधानसभा के उपचुनावों में कांग्रेस का वोट बढ़ा है और आप का घटा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप को 54 फीसदी वोट मिले थे। 2017 के नगर निगम चुनाव में आप का वोट प्रतिशत घटकर 26 फीसदी पहुंच गया था और भाजपा को बीजेपी को 37 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस वोट प्रतिशत 10 फीसदी से बढ़कर 21 प्रतिशत हो गया था। कांग्रेस के कई नेताओं ने साफतौर पर कहा है कि केजरीवाल का हिसाब-किताब पूरी तरह गलत है। आम आदमी पार्टी से गठबंधन करने से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा।
इसे राजनीतिक मजबूरी कहे या समय की जरूरत कि एक तरफ तो राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता एकदूसरे पर आरोप लगाते रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ मुलाकात भी करते रहते हैं। दिल्ली के साथ ही आम आदमी पार्टी ने पंजाब और हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पंजाब में तो आप पूरी तरह अमरिन्दर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। इससे पहले यह भी हिसाब-किताब लगाया जा रहा था कि दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से आप कांग्रेस को सीट तो देगी पर साथ ही पंजाब में भी कांग्रेस से सीटें मांगेगी। अरविन्द केजरीवाल की बार-बार कांग्रेस से गठबंधन की खबरों का खुद कांग्रेस के नेताओं ने इंकार किया था। पिछले साल अगस्त महीने में दिल्ली के जंतर-मंतर पर राष्ट्रीय जनता दल के विरोध प्रदर्शन में राहुल गांधी अरविन्द केजरीवाल के साथ तो मंच सांझा नहीं करते पर रांकापा अध्यक्ष शरद पवार के घर मुलाकात करते हैं और विपक्ष की रणनीति बनाते हैं। राजद की सभा में अरविंद केजरीवाल के भाषण देने के एक घंटे बाद राहुल गांधी मंच पर आए।
भाजपा का 10 फीसदी वोट घटने का जो हिसाब-किताब लगाया है कि वह पुलवामा में आतंकवादी हमले से पहले का है। इसके साथ ही पिछले साल दिसंबर में कांग्रेस की मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकारें बनाने के कारण कांग्रेस के नेताओं का हौंसला बुलंद हुआ है। भाजपा के खिलाफ जो वोटों के समीकरण का आंकडा दिखाया गया है उसके अनुसार पश्चिमी दिल्ली को छोड़कर सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी भाजपा से आगे जाएगी। वोटों के हिसाब-किताब से अनुमान लगाया गया था आप-कांग्रेस के गठबंधन से भाजपा को छह सीटों पर हार तय है। गठबंधन न बनने पर भाजपा सभी सीटों जीतेंगी यह भी तय माना जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सभी सात सीटों पर कामयाबी पाई थी। गठबंधन होने पर आप की तरफ से यह अनुमान लगाया गया है कि पश्चिमी दिल्ली सीट पर आप और कांग्रेस को 42.74 फीसदी वोट मिलेंगे और भाजपा को 48.32 फीसदी वोट मिलेंगे। पश्चिम दिल्ली से भाजपा के प्रवेश साहिब वर्मा सांसद हैं। पश्चिमी दिल्ली सीट से आम आदमी पार्टी ने अभी कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से भाजपा के महेश गिरि सांसद हैं। इस सीट पर आप और कांग्रेस के मिलने पर 48.90 फीसदी वोट मिलने का हिसाब-किताब जोडा गया। भाजपा को यहां 47.83 वोट मिलने का अनुमान लगाया गया। सर्वे के अनुसार नई दिल्ली सीट पर गठबंधन होने पर भाजपा की मीनाक्षी लेखी की हार भी तय मानी जा रही थी। नई दिल्ली में कांग्रेस-आप को 48.83 फीसदी वोट मिलते तो भाजपा को 46.32 वोट मिलते। उत्तर पश्चिम दिल्ली में भी भाजपा के लोकसभा सदस्य उदित राज की हार गठबंधन होने पर पक्की मानी गई है। आप-कांग्रेस के गठबंधन को 50.18 फीसदी वोट मिलते तो भाजपा को 46.45 फीसदी वोट मिलते। इस सीट से सांसद उदित राज कई मुद्दो पर भाजपा के खिलाफ बोलते रहे हैं तो भाजपा कार्यकर्ता भी उनसे खुश नहीं है। उत्तर पूर्वी दिल्ली से दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी सांसद हैं। इस सीट पर आप-कांग्रेस को 50.62 फीसदी वोट मिलने का दावा किया गया और भाजपा को 46.25 वोट हासिल करती। दक्षिण दिल्ली सीट से भाजपा के रमेश बिधूड़ी लोकसभा सदस्य हैं। यहां पर गठबंधन होने पर भी भाजपा से ज्यादा आगे निकलने की उम्मीद नहीं थी। यह अनुमान लगाया गया है कि गठबंधन होने के आप-कांग्रेस के उम्मीदवार को 46.83 फीसदी वोट मिलते हैं और भाजपा को 45.17 फीसदी। आप-कांग्रेस का गठबंधन होने पर चांदनी चौक में भाजपा को कठिनाई हो सकती थी। चांदनी चौक से केंद्रीय मंत्री डा.हर्षवर्धन लोकसभा में हैं। आप-कांग्रेस को 48.67 फीसदी वोट और भाजपा को 44.60 फीसदी वोट मिलते। अब केजरीवाल की भी भाषा बदल गई है। एक बार फिर से उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाने शुरु कर दिए हैं। केजरीवाल ने एक सभा में कहा भी कि अगर आप और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ती है, तो इसका फायदा भाजपा को होगा। उनकी पार्टी की ओर से कांग्रेस के साथ गठबंधन की पूरी कोशिश की गई,लेकिन वह इसके पक्ष में नहीं है। केजरीवाल ने तो यहां कह दिया है कि कांग्रेस दिल्ली और उत्तर प्रदेश में भाजपा को जिताना चाहती है। इसके बावजूद केजरीवाल उम्मीद जता रहे हैं कि मोदी को हराने के लिए कांग्रेस को आप का सहारा लेना ही होगा।
-रास बिहारी