राम मंदिर मामलाः केंद्र सरकार ने मांगी बिना विवाद की जमीन

हिंदू संगठनां में सरकार के फैसले पर मतभेद

टीम एटूजैड/नई दिल्ली
अयोध्या में राम मंदिर को लेकर बढ़ते हिंदू संगठनों के दबाव के बाद सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की अयोध्या मामले में गैर-विवादित जमीन मूल मालिकों को लौटाने के मामले पर हलचल तेज है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मे अर्जी दखिल कर कहा है कि 1993 में अधिग्रहीत 67 एकड़ जमीन को गैर-विवादित है। सरकार ने इसे इसके मालिकों को लौटाने की अपील की है। दूसरी ओर सरकार के इस फैसले पर हिंदू संगठनों में मतभेद पैदा हो गया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में 2.77 एकड़ जमीन को विवादित बताते हुए 3 हिस्सों में बांट दिया था। अब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जो अर्जी दी है, उसमें उसने 0.313 एकड़ जमीन को ही विवादित बताते हुए संबंधित पक्षों को वापस सौंपने की अपील की है। इस 67 एकड़ में राम जन्मभूमि न्यास की 42 एकड़ जमीन शामिल है। सरकार के इस कदम को बिना अध्यादेश लाए गैर-विवादित जमीन पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या है इस जमीन की पूरी कहानी?
1993 में 67 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था। विवादित जमीन के आसपास की जमीन का अधिग्रहण इसलिए किया गया था ताकि विवाद के निपटारे के बाद उस विवादित जमीन पर कब्जे या उपयोग में कोई बाधा नहीं हो। इसमे करीब 42 एकड़ की जमीन रामजन्म भूमि न्यास की है।
1994 में इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित जमीन पर कोर्ट का फैसला आने के बाद गैर विवादित जमीन को उनके मूल मालिकों को वापिस लौटाने पर विचार कर सकती है। 1996 में सरकार ने रामजन्म भूमि न्यास की मांग ठुकरा दी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने 1997 में खारिज कर दिया।
2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर पूजा शुरू हो गई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस याचिका पर सुनवाई के बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने 67 एकड़ पूरी जमीन पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। 2003 में असलम भूरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने अधिग्रहित जमीन वापसी पर पक्षकारों से अर्जी मांगी। राम जन्मभूमि न्यास ने अपनी गैरविवादित जमीन 42 एकड़ पर अपना मालिकाना हक हासिल करने के लिए सरकार से गुहार लगाई।
2019 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में कहा है कि राम जन्मभूमि न्यास ने अपने हिस्से की गैर विवादित जमीन की मांग की है।

सरकार को विहिप का समर्थन
केंद्र सरकार द्वारा राम जन्म भूमि न्यास की 42 एकड़ भूमि को उसे वापस दिए जाने संबंधी केंद्र सरकार की सर्वोच्च न्यायालय में दी गई अर्जी के समर्थन में विश्व हिंदू परिषद भी उतर आई है। वीएचपी ने स्वागत करते हुए कहा है कि न्यास ने यह भूमि भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर मंदिर हेतु ली थी। भारत सरकार ने 1993 में कुल 67.703 एकड़ भू भाग का अधिग्रहण किया था। यह भू भाग राम जन्म भूमि न्यास की भूमि को मिला कर था।
वीएचपी के कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार ने कहा कि इसमें से मात्र 0.313 एकड़ ही न्यायालय में विवादित है। राम जन्मभूमि न्यास की भूमि को मिलाकर शेष सभी भू भाग पर किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मो इस्माइल फारुकी वाद में कहा भी था कि बाहर का अविवादित भू भाग उनके मालिकों को वापस दिया जाएगा।

तोगड़िया ने विरोध जताया
विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष और अलग संगठन बना चुके प्रवीन भाई तोगड़िया ने केंद्र सरकार के जमीन वापस मांगने के कदम पर विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का काम राम मंदिर पर अध्यादेश लाकर कानून बनाना था। 1989 के भाजपा के प्रस्ताव में यही था। बाद में भी यही कहकर वोट मांगे। अब केंद्र सरकार राम जन्मभूमि को 67 एकड़ जमीन मांग रही है। यह तो ऐसा हुआ कि वादा था रोज ताजा दूध देने का और सरकार कह रही है कि पहले कागज पर गाय-भेंस का चित्र बनाने की इजाजत दो।