न्यूनतम वेतन नहीं देने पर जेल व सजा का प्रावधान
टीम एटूजैड/नई दिल्ली
अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के कारोबारियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। दिल्ली में अब मजदूरों और कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं करने पर कारोबारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दिल्ली सरकार के श्रम विभाग ने इस मामले में बाजारों और सार्वजनिक स्थलों पर जाकर छापेमारी शुरू कर दी है। जिन कारोबारी संस्थानों में निर्धारित वेतन नहीं दिया जा रहा उन्हें श्रम अदालत में हाजिर होने के लिए नोटिस जारी किए जा रहे हैं। बता दें कि दिल्ली सरकार ने फिलहाल निम्नानुसार न्यूनतम वेतन निर्धारित किया हैः-
श्रेणी वेतन
अकुशल 14,000
अर्धकुशल 15,400
कुशल 16,962
छापेमारी की कार्रवाई
दिल्ली सरकार के श्रम विभाग ने न्यूनतम वेतन की जांच के लिए 9 टीम गठित की हैं। इन दलों ने अपने अपने इलाकों में जाकर इस बात की जांच शुरू कर दी है कि कर्मचारियों को उचित वेतन दिया जा रहा है या नहीं। गत सोमवार को दिल्ली के उत्तर पश्चिम जिला में 20 स्थानों पर छापेमारी की गई। इस दौरान खुद श्रम मंत्री गोपाल राय ने संजय गांधी अस्पताल का दौरा किया। यहां कांट्रेक्टर के द्वारा रखे गए कर्मचारियों को उचित वेतन नहीं दिए जाने की शिकायत मिली। इसके बाद कांट्रेक्टर को 24 दिसंबर को श्रम अदालत में आकर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया है।
जेल और सजा का प्रावधान
न्यूनतम वेतन अधिनियम में निर्धारित वेतन नहीं दिए जाने पर नियोक्ता को 3 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा यदि कोई दुकानदार या कारोबारी अपने यहां रखे गए कर्मचारी को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित किया गया वेतन नहीं देता है तो उसके ऊपर 50 हजार रूपये तक का जुर्माना भी किया जा सकता है। न्यूनतम वेतन संबंधी शिकायतें करने के िलिए सरकार ने टोल फ्री नंबर 155214 जारी किया है।
मंत्री और विधायक चला रहे अभियान
आम आदमी पार्टी के मंत्री और विधायक न्यूनतम वेतन दिलाने के अभियान में जुट गए हैं। श्रम मत्री गोपाल राय ने खुद इस अभियान के तहत कई जगह का दौरा किया। वहीं आम आदमी पार्टी के विधायक भी इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाने में जुटे हैं। चांदनी चौक से आम आदमी पार्टी की विधायक अल्का लांबा सहित कई विधायकों ने इस अभियान में हिस्सा लिया है। अल्का लांबा ने कहा कि न्यूनतम वेतन नियमों का उल्लंघन करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
हर सरकार ने लागू किया न्यूनतम वेतन कानून
आम आदमी पार्टी से पहले की कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने न्यूनतम वेतन कानून को सख्ती से लागू करने की कोशिश की है। इसके लिए पहले भी अभियान चलाए जाते रहे हैं। हर साल फरवरी और अगस्त महीनों में न्यूनतम वेतन की दरों पर पुनर्विचार कर इन्हें लागू किया जाता रहा है। केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में यह मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। अब कोर्ट के आदेश पर ही इसे दोबारा से लागू किया गया है।
कोरा प्रचार, नहीं होती कार्रवाई
मजदूरों और कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित रखने और उन्हें न्यूनतम मजदूरी दिलाने के लिए हर सरकार इस कानून को सख्ती से लागू करने का ढिंढोरा पीटती रही है। श्रम विभाग के निरीक्षक एक-दो कारोबारी संस्थानों पर जाते हैं और इसके बाद यह कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली जाती है। राजधानी के थोक बाजारों में अब भी 7-8 हजार से 12-13 हजार रूपये तक कर्मचारियों को मासिक वेतन दिया जा रहा है। लेकिन बेरोजगारी होने के चलते कोई कर्मचारी अपने मालिक की शिकायत श्रम अधिकारियों या अदालत में जाकर नहीं करता। यदि कोई करता भी है तो उसे अपना रोजगार छोड़ना पड़ता है और उसे लंबी कानूनी लड़ाई में उलझना पड़ जाता है।