हिन्दीभाषी राज्यों में बसपा की आक्रामक नीति

रास बिहारी

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने ये बताने की कोशश की है कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी से उनकी सीधी टक्कर है। प्रदेश में कांग्रेस का वजूद नहीं है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भले ही कह रहे हैं कि कांग्रेस उनके गठबंधन में हैं और उनके लिए दो सीटें छोड़ी हैं। सपा अध्यक्ष के समर्थन में कांग्रेस ने भी कहा है कि सपा-बसपा के प्रमुख नेताओं के मुकाबले पार्टी के उम्मीदवार नहीं उतारे जाएंगे। सपा-बसपा ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हैसियत केवल दो सीट की आंकते हुए हिन्दी पट्टी के अन्य राज्यों में भी तालमेल किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों की एकजुटता के बहाने सपा अध्यक्ष ने बसपा अध्यक्ष मायावती की हर शर्त को मान लिया है। मध्यप्रदेश में सपा केवल बालाघाट, टीकमगढ़ और खुजराहो लोकसभा सीट से सपा के प्रत्याशी उतारेगी और बाकी 26 सीटों पर बसपा मैदान में होगी। उत्तराखंड की पांच सीटों में से केवल एक पौड़ी गढ़वाल की सीट सपा को मिली है। बिहार में बसपा ने अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा की है। पिछले लोकसभा चुनाव में कोई सीट न जीतने वाली बसपा ने इस बार राजनीति में मजबूती से पैर जमाने के लिए नई रणनीति तैयार की है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद बसपा और कांग्रेस में कुछ नजदीकी बनी थी पर बाद में मायावती ने भाजपा के साथ कांग्रेस को भी कोसना शुरु कर दिया है। राजनीति में मायावती की रणनीति को लेकर कोई दावा नहीं कर सकता है। सपा से गठबंधन करके भी मायावती ने यही दिखाया कि राजनीति में विश्वसनीयता कुछ नहीं है। अखिलेश ने मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती सरकार के कार्यों की जांच शुरु कराई थी। भाजपा के साथ अखिलेश ने हमेशा मायावती को निशाने पर रखा था।

मायावती ने बसपा का आधार बढ़ाने के लिए मध्यप्रदेश और बिहार को चुना है। बिहार में लोकसभा की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ने से महागठबंधन को तगड़ा झटका लगा है। मायावती को मध्यप्रदेश से बहुत उम्मीद है। पिछले लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में भाजपा ने 29 में 27 सीटें और कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं। बसपा ने 2009 में एक सीट जीती थी। बसपा मध्य प्रदेश में 1991 से सक्रिय है। 1991, 1996 और 2009 में बसपा ने रीवा सीट जीती थी। 1999 में बसपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह को सतना सीट से हराया था। समाजवादी पार्टी की मध्य प्रदेश आज तक किसी सीट पर कामयाबी नहीं मिली। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा ने 227 सीटों पर चुनाव लड़ा और दो सीटें जीती और वोट मिले पांच फीसदी। एससीएसटी एक्ट लागू होने के बावजूद बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ। बसपा का वोट लगातार राज्य में खिसकता जा रहा है। 2008 में बसपा को 8.72 फीसदी, 2013 में 6.29 फीसदी और 2018 में गिरकर 5.01 फीसदी पर पहुंच गया। सपा ने 2003 में अच्छा प्रदर्शन किया था। 2014 के लोकसभा बसपा को 3.79 फीसदी सपा को 2.20 फीसदी वोट मिले थे। मध्य प्रदेश में दोनों दल पहली बार मिलकर लड़ रहे हैं। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश से सटी सीटों पर बसपा-सपा के उम्मीदवारों के कारण तिकोनी टक्कर से भाजपा को ही फायदा होगा।

इस बार मायावती ने उत्तर प्रदेश एक बार फिर मुस्लिम और ब्राह्मण कार्ड खेलने की रणनीति बनाई है। बसपा उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 38 पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। 38 सीटों में से 10 आरक्षित सीटें हैं। बाकी 28 सीटों में से 10-11 मुस्लिम उम्मीदवार होंगे। छह मुस्लिम उम्मीदवार तय भी हो गए हैं।बसपा ने गाजीपुर से अफजल अंसारी, धारूहारा अरशद सिद्दीकी, डुमरियागंज आफताब आलम अंसारी, मेरठ हाजी याकूब, सहारनपुर फजलुर रहमान और बिजनौर से इकबाल ठेकेदार को उम्मीदवार बनाया है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता 19 फीसदी के आसपास है। पिछले चुनावों में ब्राह्रमणों से मिले समर्थन के कारण इस बार मायावती नौ ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारेगी। 2007 में दलित, ब्राह्मण और गैर यादव ओबीसी से मिले समर्थन के कारण ही मायावती ने सरकार बनाने में कामयाबी पाई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने 19 और सपा ने 14 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। मोदी लहर में ये सब चुनाव हार गए। मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से बसपा ने 99 और सपा ने 62 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। बसपा के 99 में से पांच उम्मीदवार ही जीत पाए और सपा के मुस्लिम 17 उम्मीदवार जीते। बसपा के पास कोई मजबूत मुस्लिम नेता न होने के कारण दिक्कतें भी बहुत हैं। इसी तरह का संकट सपा के सामने भी हैं। सपा के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री ने अखिलेश को मायावती के सामने समर्पण करने पर फटकारा है तो लोकसभा में एक बार फिर मोदी सरकार का नारा देकर भी संकट खड़ा कर दिया है। बसपा की रणनीति को लेकर सपा में मायावती की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। यह माना जा रहा है कि चुनाव बाद मायावती अखिलेश को झटका दे सकती है। सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद भाजपा में थोड़ी चिंता जरूर है पर भय नहीं है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में 74 सीटें जीतने का दावा किया है। सपा-बसपा ने गठबंधन के तहत तीन सीटें राष्ट्रीय लोकदल को दी है। इनमें से दो सीटों पर अजित सिंह और उनके बेटे चुनाव लड़ेंगे। तीसरी सीट लोकदल के निशान पर सपा का उम्मीदवार लड़ेगा। पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसी समय ताकत रखने वाले अजित सिंह को गठबंधन करने के लिए बार-बार अखिलेश की मनुहार करनी पड़ी। पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा ने सभी सीटों पर कामयाबी पाई थी। सपा-बसपा के गठबंधन में न रखने से नाराज कांग्रेस ने पूरी मजबूती से चुनाव लड़ने का ऐलान तो किया पर अभी ज्यादा उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है। तीन राज्यों में चुनाव जीतने और भाजपा के एक सांसद के कांग्रेस में आने से पार्टी दम दिखाने की कोशिश तो कर रही है पर तिकोने मुकाबले में कांग्रेस की हालत ज्यादा अच्छी नहीं लग रही है। सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल में एकदूसरे की वोट दूसरे को दिलाने की समस्या भी है। यादव और दलित तथा जाट-जाटवों के बीच पुरानी राजनीतिक रंजिश रही है। सपा और बसपा के कई नेता अपनी-अपनी टिकट कटने की आशंका से पार्टी से नाराज हो गए हैं। इनमें कई दबंग नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाने शुरु कर दिए हैं।