समस्त पापों को नष्ट करने वाली योगिनी एकादशी… यहां जानें पूजा-विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त

-सोमवार 5 जुलाई को करें भगवान विष्णु की उपासना
-पूरी होगी मनोकामना, विधि-विधान से करें पूजा-व्रत

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
सनातन संस्कृति एवं हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। एकादशी की तिथि कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में हर महीने में दो बार पड़ती है। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को ‘योगिनी एकादशी’ कहा जाता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय होने की वजह से इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस महीने में योगिनी एकादशी सोमवार 5 जुलाई, 2021 को पड़ रही है।

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योगिनी एकादशी का व्रत एवं पूजन करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। घर के मंदिर में दीप जलाऐं और भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें। इसके साथ ही भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें। यदि संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें। अब भगवान की आरती करें और भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। योगिनी एकादशी के पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
योगिनी एकादशी कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहने लगे कि भगवन! मैंने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुना है अब आप मुझे आषाढ़ कृष्ण एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें। इसे किस नाम से जाना जाता है और इसका क्या माहात्म्य है? ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से समस्त पापों का नाश हो जाता है। यह व्रत इस लोक में सभी सुखों को भागने के साथ परलोक में मुक्ति देने वाला है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है अतः मैं तुम्हें पुराणों में वर्णित कथा सुनाता हूं।

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स्वर्गधाम में एक अलकापुरी नामक नगरी होती थी। वहां कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह बहुत बड़ा शिव भक्त था और रोजाना भगवान शिव की पूजा किया करता था। उसकी पूजा के लिए हेम नाम का एक माली फूल लाया करता था। हेम की बेहद सुंदर थी और उसका नाम विशालाक्षी था। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन काम-वासना के अधीन होकर वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
उधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया है। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया।

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हेम माली भय से कांपता हुआ ‍राजा के सामने उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- कि ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूज्य, ईश्वरों के आराध्य भगवान शिवजी का अनादर किया है। इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’ कुबेर के शाप के कारण हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी समय पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दुःख भोगे, भयानक जंगल में रहकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा।

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हेम माली को रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, लेकिन भगवान शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान बना रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। जो कि ब्रह्मा जी से भी अधिक वृद्ध थे और उनका आश्रम ब्रह्मा जी की सभा के समान लगता था। हेम माली वहां जाकर ऋषि मार्कंण्डेय के पैरों में गिर पड़ा। उसे देखकर मार्कंण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई? हेम माली ने अपना सारा वृतांत कहकर सुना दिया। यह सुनकर ऋषि बोले- ‘निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं। यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे।’
यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया और उसने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। भगवान कृष्ण ने आगे कहा कि ‘हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
योगिनी एकादशी महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस पावन दिन व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एकादशी पर पूजा हेतु करें इस सामग्री का उपयोग
एकादशी पूजा के लिए निम्न सामग्री का उपयोग किया जाता है। इसमें भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी जी का चित्र अथवा मूर्ति, ताजा पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन एवं मिष्ठान्न आदि।
इस वर्ष योगिनी एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि रविवार 4 जुलाई, 2021 को सांय 7 बजकर 55 मिनट पर प्रारंभ होगी और सोमवार 5 जुलाई, 2021 को रात्रि 10 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। व्रत का पारायण मंगलवार 6 जुलाई को प्रातः 5 बजकर 29 मिनट से 8 बजकर 16 मिनट तक किया जा सकेगा।\

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